🕒 Published 1 month ago (6:32 PM)
नई दिल्ली, सनातन धर्म के अनुसार प्रत्येक साल में 24 और हर महीने दो एकादशी होती हैं । लेकिन जब अधिक मास होता है तो इस एकादशियों की संख्या 26 हो जाती है और एक साल में 13 महीने हो जाते है। हिंदू धर्म ग्रंथों में प्रत्येक एकादशी अलग-अलग महत्व और विशेषता है। इन्हीं विशेषताओं के कारण इन सभी एकादशियों के नाम भी अलग हैं ।
आज 21 जून को है योगिनी एकादशी का व्रत
इन्हीं एकादशियों में एक है योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi vrat 2025 kab hai)जो आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष में आती है । अब आषाढ़ मास का कृष्ण पक्ष चल रहा है । और आ रही है योगिनी एकादशी जो 21 जून को है। धर्म ग्रंथों के अनुसार कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी का अपना एक अलग महत्व है। योगिनी एकादशी का व्रत विष्णु की कृपा पाने का एक अचूक उपाय है। इस व्रत से जीवन में न केवल खुशियां आती हैं बल्कि आपके संकटों से भी मुक्ति भी मिलती है। योगिनी एकादशी का उपवास 21जून को रखा जाएगा।
उपवास में क्या करें
कहा जाता है कि यूं तो एकादशी (ग्यास) का उपवास दसवीं तिथि को ही शुरू हो जाता है लेकिन कुछ लोग एकादशी के दिन से ही उपवास की शुरूआत करते हैं। जो भी व्यक्ति योगिनी एकादशी का उपवास रखते हैं वे एकादशी को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत हो जाएं। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की एक साथ पूजा-अर्चना करें । भगवान को चंदन और मां लक्ष्मी को कुमकुम का तिलक लगाएं । फिर धूप दीप करें और उसके बाद पूजा में गुड़-चना प्रसाद, मौसमी फल, फूल और नैवेद्य आदि अर्पित करें । पूजा के बाद योगिनी एकादशी की व्रत जरूर पढ़े और सुने जिससे इस व्रत का फल कई गुणा बढ़ जाता है ।
योगिनी एकादशी व्रत से बैकुंठ धाम की प्राप्ति
योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से व्यक्ति को पाप कर्मों से मुक्ति के साथ मृत्यु के बाद बैकुंठ धाम की प्राप्ति होती है। शास्त्रों पर इस बात का वर्णन है कि एक एकादशी के व्रत के प्रभाव से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य मिल जाता है। यदि आप आर्थिक संकट का सामना कर रहे हो तो योगिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को तुलसी अर्पित करें और संध्याकाल में तुलसी के पास दीपक जलाएं और तुलसी की 7 बार परिक्रमा लगाएं।
व्रत में करें अन्न और वस्त्रों का दान
योगिनी एकादशी पर अन्नदान जिसमें गेहूं, चावल, चने की दाल, गुड़, चना आदि का दान करें। यदि आपकी इच्छा हो भूखे और गरीबों और असहाय, विकलांगों ,अंधों को भोजन अवश्य कराएं। किसी अनाथ ,वृद्ध आश्रम और अंधे कोढ़ी आश्रमों में जाकर भोजन और वस्त्रों का दान भी करें। फिर देखों कैसे आपके जीवन में खुशियों का आगमन शुरू होता है। क्यों कि व्रत तो सिर्फ आप तक ही सीमित है लेकिन दान का पुण्य तो आपकों पीढ़ियों तक को संकटों से मुक्त कर देता है।
आइये आपको बताते हैं योगिनी एकादशी व्रत कथा!
बात है महाभारत काल खंड की , धर्मराज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण बोले कि हे त्रिलोकीनाथ ! मैंने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी की कथा तो सुनी है क्या मुझे आषाढ़ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी की कथा सुना सकते हैं । श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर को बताया कि आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम योगिनी एकादशी है। एकादशी व्रत से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। यह व्रत इस लोक में भोग तथा परलोक में मुक्ति देने वाला है।
राजा कुबेर और हेममाली की कहानी
श्री कृष्ण बोले यह एकादशी तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। तुम्हें मैं पुराण में कही हुई कथा सुनाता हूं इसे ध्यानपूर्वक सुनो कुबेर नाम का एक राजा अलकापुरी नगरी में कुबेर नामक राजा राज करता था। वह शिव का अनन्य भक्त था । हेममाली नाम का एक यक्ष राजा की सेवा में रहता था। वह राजा के लिए रोज फूल लेकर आया करता था। हेममाली की पत्नी विशालाक्षी बहुत सुंदर थी। एक दिन जब हेममाली मानसरोवर से पुष्प लेकर आया, किन्तु कामासक्त होने के कारण अपनी स्त्री के साथ रमण में लग गया और पूजा के लिए फूल ले जाने में दोपहर हो गई।
जब राजा ने दिया हेममाली को श्राप
हेममाली की राह देखते-देखते जब दोपहर हो गई तो राजा को क्रोध आया तो राजा ने अपने सेवकों को हेममाली के बा।रे में पता लगाने की आज्ञा दी। सेवकों ने पूरी खबर आकर राजा को दी इस बात को सुन राजा कुबेर ने हेममाली को बुलाने की आज्ञा दी। डर से काँपता हुआ हेममाली राजा के सामने उपस्थित हुआ। उसे देखकर कुबेर को अत्यन्त क्रोध आया । राजा ने कहा तूने मेरे परम पूजनीय देवों के भी देव भगवान शिवजी का अपमान किया है। मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तू स्त्री के वियोग में तड़पे और मृत्युलोक में जाकर कोढ़ी का जीवन व्यतीत करे।
हेममाली ने मार्कण्डेय ऋषि से पूछा श्राप से मुक्ति का उपाय
कुबेर के श्रापवश हेममाली तत्क्षण स्वर्ग से पृथ्वी पर आ गिरा और कोढ़ी हो गया। उसकी स्त्री भी उससे बिछड़ गई। मृत्युलोक में आकर उसने अनेक कष्ट भोगे, किन्तु शिव की कृपा से उसे पूर्व जन्म पूरा याद रहा। परेशान दुखी हेममाली हिमालय में मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। मार्कण्डेय ऋषि को देखकर उन्हें प्रणाम करके उनके चरणों में गिर पड़ा। हेममाली की हालत देखकर मार्कण्डेय ऋषि ने पूछा कि तू कैसे कोढ़ी हुआ । महर्षि की बात सुनकर हेममाली ने पूरी कहानी सुना दी।हेममाली ने ऋषि से श्राप से मुक्ति का उपाय भी पूछा।
मार्कण्डेय ऋषि ने बताया योगिनी एकादशी का व्रत
इस पर मार्कण्डेय ऋषि ने हेममाली को बताया कि तू योगिनी एकादशी का व्रत रख जिससे तेरे सारे पाप नष्ट हो जाएंगे। यह आषाढ़ माह के कृष्ण पक्ष एकादशी को रखा जाता है। महर्षि के बताए अनुसार हेममाली योगिनी एकादशी का विधानपूर्वक व्रत करने लगा। इस व्रत के प्रभाव से अपने पुराने स्वरूप में आ गया और अपनी स्त्री के साथ सुखपूर्वक रहने लगा। यह कथा सुनाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठर को कहा कि हे राजन! इस योगिनी एकादशी की कथा का फल 88000 ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है।