खरगे की टिप्पणी पर बवाल, राज्यसभा में मांगी माफी!

Photo of author

By Pragati Tomer

खरगे की टिप्पणी पर बवाल, राज्यसभा में मांगी माफी!

नई दिल्ली: संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण हमेशा की तरह बहस, चर्चाओं और राजनीतिक हमलों का केंद्र रहा है। हालांकि, इस बार चर्चा का केंद्र कुछ और ही बन गया जब राज्यसभा में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने एक ऐसा बयान दिया जिसने सदन में हंगामा खड़ा कर दिया। खरगे की टिप्पणी पर बवाल उठते ही सदन की कार्यवाही में अवरोध उत्पन्न हुआ और बीजेपी के सदस्यों ने इस बयान पर कड़ी आपत्ति जताई। बीजेपी की माफी की मांग के बाद अंततः मल्लिकार्जुन खरगे ने अपनी बात पर माफी मांग ली।

खरगे की टिप्पणी: कैसे मचा बवाल?

मंगलवार को राज्यसभा में नई शिक्षा नीति पर चर्चा चल रही थी। चर्चा के दौरान डिप्टी स्पीकर हरिवंश कार्यवाही का संचालन कर रहे थे। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को बोलने का अवसर दिया गया था। इसी दौरान कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे खड़े हो गए और उन्होंने कुछ बोलने की कोशिश की। डिप्टी स्पीकर ने खरगे को याद दिलाया कि उन्हें सुबह के सत्र में बोलने का मौका दिया जा चुका है। खरगे ने जवाब दिया कि जब वे बोले थे तब शिक्षा मंत्री मौजूद नहीं थे। इस पर डिप्टी स्पीकर ने उन्हें बैठने के लिए कहा, लेकिन इस बात पर खरगे भड़क गए और एक टिप्पणी कर दी। उन्होंने कहा, “आपको क्या-क्या ठोकना है, हम ठीक से ठोकेंगे।” खरगे की टिप्पणी पर बवाल यहीं से शुरू हुआ।

बीजेपी ने क्यों जताई आपत्ति?

खरगे की इस टिप्पणी को लेकर सदन में बैठे बीजेपी के सदस्यों ने तुरंत हंगामा शुरू कर दिया। बीजेपी के नेताओं ने इस बयान को असंसदीय और अनुचित बताया। खरगे की टिप्पणी पर बवाल उस समय और बढ़ गया जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा में नेता सदन जेपी नड्डा ने इस बयान की कड़ी आलोचना की। नड्डा ने कहा कि खरगे जैसे अनुभवी नेता को इस तरह की भाषा का उपयोग करना शोभा नहीं देता। उनके अनुसार, यह बयान संसदीय गरिमा के खिलाफ था और इसके लिए खरगे को माफी मांगनी चाहिए।

खरगे की टिप्पणी पर बवाल

जेपी नड्डा का कड़ा रुख

जेपी नड्डा ने अपने बयान में कहा कि खरगे विपक्ष के नेता होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वे सदन में मर्यादित भाषा का इस्तेमाल करें। उन्होंने यह भी कहा कि खरगे ने खुद विपक्षी दलों के लिए प्रशिक्षण की नसीहत दी थी, लेकिन अब शायद उन्हें ही इसकी जरूरत है। नड्डा ने कहा, “इस तरह की टिप्पणियां संसद की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं।” इस बयान के बाद सदन में खरगे की टिप्पणी पर बवाल और बढ़ गया, और सदन की कार्यवाही बाधित हो गई।

खरगे की माफी

बीजेपी के भारी विरोध के बाद, खरगे ने डिप्टी स्पीकर हरिवंश से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि उनकी टिप्पणी सरकार की नीतियों के संदर्भ में थी, न कि डिप्टी स्पीकर के प्रति व्यक्तिगत रूप से। उन्होंने कहा, “उपसभापति जी, अगर मेरी बात से आपको ठेस पहुंची है तो मैं माफी मांगता हूं। मेरा इरादा आपको ठेस पहुंचाने का नहीं था, बल्कि मैं सरकार की नीतियों के विरोध में बात कर रहा था।” खरगे की टिप्पणी पर बवाल शांत करने के लिए उनकी इस माफी को बीजेपी ने स्वीकार किया, जिसके बाद सदन की कार्यवाही फिर से शुरू हो पाई।

‘हम ठीक से ठोकेंगे’ – विवाद का केंद्र

खरगे की टिप्पणी पर बवाल इसलिए खड़ा हुआ क्योंकि यह बयान असंसदीय और अव्यवस्थित भाषा का प्रतीक माना गया। संसद में चर्चा के दौरान ऐसे बयानों का इस्तेमाल पहले भी विवादों का कारण बन चुका है। हालांकि, खरगे ने यह स्पष्ट किया कि उनकी टिप्पणी सरकार की नीतियों के प्रति थी, फिर भी बीजेपी ने इसे डिप्टी स्पीकर के खिलाफ मानते हुए विरोध जताया। इस विवाद से यह भी साफ होता है कि राजनीति में भाषाई संयम कितना महत्वपूर्ण है, खासकर जब आप देश के उच्च सदन में होते हैं।

सुबह के सत्र में खरगे का बीजेपी पर हमला

इससे पहले, राज्यसभा के सुबह के सत्र में भी मल्लिकार्जुन खरगे ने बीजेपी पर जमकर हमला बोला था। उन्होंने कहा था कि सरकार के मंत्री और नेता समय पर सदन में उपस्थित नहीं होते, जो संसदीय प्रक्रिया का उल्लंघन है। खरगे ने कहा था कि नेता सदन जेपी नड्डा ने विपक्ष को सदन के नियमों का प्रशिक्षण देने की बात कही थी, लेकिन उनके खुद के नेता और मंत्री सदन में समय पर नहीं पहुंचते। उन्होंने इसे “शर्म की बात” कहकर तंज कसा था। खरगे की टिप्पणी पर बवाल उठने की एक और वजह यही बयान भी था, जिससे सदन में पहले से ही तनातनी का माहौल था।

खरगे की टिप्पणी पर बवाल: संसद की गरिमा

संसद भारतीय लोकतंत्र का उच्चतम मंच है, जहां बहस और विचार-विमर्श के जरिए नीतियों पर निर्णय लिया जाता है। लेकिन इस मंच पर भाषा की मर्यादा भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। खरगे की टिप्पणी पर बवाल इसलिए हुआ क्योंकि ऐसी टिप्पणियां संसद की गरिमा को प्रभावित करती हैं। संसदीय मर्यादाओं का पालन करना हर सदस्य की जिम्मेदारी होती है, और यह सुनिश्चित करना भी कि चर्चा का स्तर उच्च रहे।

खरगे की टिप्पणी पर बवाल

सदन में हंगामे का लंबा इतिहास

खरगे की टिप्पणी पर बवाल कोई नया मामला नहीं है। भारतीय संसद में हंगामा और बहसें हमेशा से चर्चा का विषय रही हैं। कई बार असंसदीय भाषा के उपयोग पर भी हंगामा हुआ है और सदस्यों को माफी मांगनी पड़ी है। हालांकि, इस बार यह मामला इसलिए अधिक गंभीर हो गया क्योंकि खरगे ने डिप्टी स्पीकर के प्रति इस टिप्पणी को स्पष्ट किया और बाद में माफी भी मांगी।

संसद की मर्यादा और राजनीति

भारतीय संसद में विपक्ष और सरकार के बीच तीखी बहसें होती रही हैं, लेकिन यह जरूरी है कि हर बार भाषाई मर्यादा का पालन किया जाए। संसद का कार्य देश के मुद्दों पर गंभीर चर्चा करना है, न कि व्यक्तिगत हमलों या असंसदीय टिप्पणियों से उसे बाधित करना। खरगे की टिप्पणी पर बवाल इसी बात की ओर संकेत करता है कि नेताओं को अपनी भाषा और व्यवहार पर विशेष ध्यान देना चाहिए, ताकि संसद की गरिमा बनी रहे और लोकतांत्रिक प्रक्रिया सुचारू रूप से चल सके।

निष्कर्ष

खरगे की टिप्पणी पर बवाल ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या राजनीति में भाषा की मर्यादा का पालन किया जा रहा है या नहीं। इस तरह के विवाद से यह साफ होता है कि संसद में भाषाई संयम और गरिमा बनाए रखना बेहद जरूरी है। मल्लिकार्जुन खरगे ने अपनी टिप्पणी पर माफी मांगकर इस विवाद को शांत किया, लेकिन यह घटना भारतीय राजनीति में चर्चा का विषय बनी रही। संसद में नेताओं को चाहिए कि वे बहस और चर्चा को सकारात्मक दिशा में ले जाएं, न कि विवादों की ओर।

अधिक जानकारी और ताज़ा ख़बरों के लिए जुड़े रहें hindustanuday.com के साथ।

Leave a Comment