Trump- Munir Meeting: क्या ईरान के परमाणु जखीरे का ठिकाना बनेगा पाकिस्तान?

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By Pradeep dabas

🕒 Published 1 month ago (9:15 AM)

Trump- Munir Meeting: ऐसी खबरें तेज हैं कि डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के खिलाफ जंग में उतरने की योजना को हरी झंडी दे दी है और इसके लिए मुनीर से सहयोग मांगा गया है। माइकल रुबिन के अनुसार, ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने के लिए अमेरिकी सेना को ईरान में प्रवेश करना होगा। रुबिन ने एएनआई से बात करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति में, एक संभावना यह भी है कि मामला शांत होने के बाद ईरान की परमाणु सामग्री को पाकिस्तान की निगरानी में सौंप दिया जाए। हालांकि, रुबिन ने इस बात पर जोर दिया कि इस तरह की ईरानी परमाणु सामग्री रखने या सहयोग के लिए पाकिस्तान को किसी भी प्रकार की वित्तीय मदद नहीं दी जानी चाहिए।

ईरान-पाकिस्तान की ‘दोस्ती’ पर सवाल: रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता

रुबिन का कहना है कि पाकिस्तान और ईरान भले ही कभी-कभी एक-दूसरे का सहयोग करते हों, लेकिन असल में वे एक-दूसरे के रणनीतिक प्रतिद्वंदी हैं। उन्होंने याद दिलाया कि 1998 में जब पाकिस्तान ने परमाणु परीक्षण किया था, तब ईरान में अधिकतर लोगों का मानना था कि यह परीक्षण उन्हीं के लिए किया गया था। रुबिन के अनुसार, यदि अमेरिका ईरान के परमाणु कार्यक्रम को बंद करवाता है, तो यह पाकिस्तान के लिए फायदेमंद ही होगा, क्योंकि ईरानी परमाणु कार्यक्रम पाकिस्तान के लिए एक रणनीतिक चुनौती की तरह है।

युद्ध की स्थिति में पाकिस्तान की भूमिका और ट्रंप के संकेत

माइकल रुबिन ने कहा कि ट्रंप ईरान के परमाणु कार्यक्रम को ठप करने के लिए दृढ़ हैं। ऐसा करने के लिए अमेरिका को अपनी फौज और स्पेशल फोर्सेज के कमांडो ईरान में उतारने पड़ सकते हैं, जिसकी मंजूरी भी शायद मिल जाए। यदि ऐसा होता है और ईरान की परमाणु सामग्री को वहां से हटाना पड़ता है, तो उसे कहीं न कहीं तो रखना होगा, और शायद इसीलिए पाकिस्तान से बात हो रही है।

गौरतलब है कि पाकिस्तान और ईरान के बीच 900 किलोमीटर की साझा सीमा है। ऐसे में, यदि अमेरिका ईरान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई का फैसला करता है, तो उसे पाकिस्तान में एक मजबूत ठिकाना मिल सकता है, ठीक उसी तरह जैसे अफगानिस्तान में कार्रवाई के दौरान अमेरिका ने पाकिस्तान का इस्तेमाल किया था। ट्रंप ने भी मुनीर के साथ मीटिंग के बाद साफ संकेत दिया था कि पाकिस्तान ईरान को बहुत अच्छी तरह से जानता है और वहां जो हो रहा है, उससे वह खुश नहीं है। उन्होंने यह भी कहा था कि पाकिस्तान इजराइल के लिए भी बुरा नहीं है।

हालांकि, रुबिन ने चेतावनी दी है कि विदेश मंत्रालय के बोर्ड रूम में होने वाली “अच्छी-अच्छी बातें” हमेशा जमीन पर खरी नहीं उतरतीं। उन्होंने दोहराया कि पाकिस्तान को किसी भी हाल में सहयोग या ईरानी परमाणु सामग्री के लिए पैसे देकर मदद नहीं की जानी चाहिए। ट्रंप और अमेरिकी सैन्य अधिकारियों द्वारा पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ जंग में सहयोगी बताने को रुबिन ने “राजनयिक बयानबाजी” से ज्यादा कुछ नहीं बताया, जिसके लिए उन्होंने पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन रूजवेल्ट का उदाहरण दिया, जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान सोवियत संघ के जोसेफ स्टालिन को करीबी सहयोगी करार दिया था।

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