🕒 Published 5 months ago (12:38 PM)
दूसरे चरण के पांचवें दिन बजट सत्र मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में विशेष रूप से महाकुंभ को संबोधित किया। उन्होंने इस मेले को भारत की आध्यात्मिक चेतना का प्रतीक बताते हुए कहा कि महाकुंभ से अनेक अमृत निकले हैं और इसे राष्ट्रीय एकता का पवित्र प्रसाद कहा।
प्रधानमंत्री मोदी ने महाकुंभ के बारे में उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए कहा कि इस भव्य आयोजन ने देशभर में एक नई आध्यात्मिक चेतना को जन्म दिया है। उन्होंने कहा कि महाकुंभ में राष्ट्रीय चेतना के दर्शन हुए और पूरे देश ने इसकी ऊर्जा और उमंग को महसूस किया। उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि इस बार युवा पीढ़ी ने भी पूरे भाव से महाकुंभ में भाग लिया, जो भारत के सांस्कृतिक उत्थान का प्रमाण है।

मॉरीशस यात्रा और सांस्कृतिक गौरव
प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी हाल की मॉरीशस यात्रा का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि वहां के गंगा तालाब में त्रिवेणी का पवित्र जल अर्पित किया गया, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर सम्मान दिलाने का प्रतीक है। उन्होंने कहा कि “अनेकता में एकता” हमारी सबसे बड़ी ताकत है और इसे निरंतर समृद्ध करना हम सभी का कर्तव्य है।
राहुल गांधी का पलटवार

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री के महाकुंभ पर दिए गए वक्तव्य पर प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, “वह प्रधानमंत्री की बात का समर्थन करना चाहते हैं क्योंकि कुंभ भारत की परंपरा, संस्कृति और इतिहास का अभिन्न अंग है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा, “प्रधानमंत्री को उन लोगों को श्रद्धांजलि देनी चाहिए थे जो कुंभ के दौरान अपनी जान गंवा चुके हैं। साथ ही, उन्होंने यह भी जोड़ा कि जो युवा महाकुंभ में गए थे, वे रोजगार की मांग कर रहे हैं और प्रधानमंत्री को इस मुद्दे पर भी बात करनी चाहिए थी।
महाकुंभ: केवल धार्मिक आयोजन नहीं
महाकुंभ सिर्फ आस्था और आध्यात्मिकता का संगम नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और राष्ट्रीय एकता का उत्सव भी है। यह आयोजन दिखाता है कि भारत में धर्म और अध्यात्म केवल पूजा-पाठ तक सीमित नहीं हैं, बल्कि वे समाज को जोड़ने और राष्ट्रीय चेतना को मजबूत करने का कार्य भी करते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी के बयान और राहुल गांधी की प्रतिक्रिया ने इस आयोजन को केवल एक धार्मिक उत्सव से आगे ले जाकर एक राष्ट्रीय बहस का मुद्दा बना दिया है। क्या महाकुंभ केवल आस्था का पर्व रहेगा, या फिर यह सामाजिक और राजनीतिक चर्चा का केंद्र बनता रहेगा? यह आने वाले समय में स्पष्ट होगा।
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