🕒 Published 3 months ago (3:47 PM)
नई दिल्ली। दुनिया से जुड़ने का सबसे आसान जरिया माने जाने वाला सोशल मीडिया, आज अकेलेपन की सबसे बड़ी वजह बनता जा रहा है। इंस्टाग्राम, फेसबुक और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर हजारों फॉलोवर्स और सैकड़ों लाइक्स मिलने के बावजूद लोग खुद को पहले से ज्यादा अकेला महसूस कर रहे हैं।
“डिजिटल कनेक्शन” लेकिन “रियल इमोशन” नहीं
सोशल मीडिया पर दोस्त तो बनते हैं, लेकिन वह दोस्ती असल जिंदगी में कितनी टिकाऊ होती है, यह सवाल उठने लगा है। कई बार लोग उम्मीद करते हैं कि वर्चुअल कनेक्शन रियल सपोर्ट देंगे, लेकिन हकीकत में भावनात्मक जुड़ाव की कमी उन्हें मानसिक थकावट की ओर ले जाती है।
क्यों होता है सोशल मीडिया से अकेलापन?
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तुलना की आदत
जब आप सोशल मीडिया पर दूसरों की सफलता, खुशहाल रिश्ते या आलीशान जीवन देखते हैं, तो अनजाने में आप अपनी जिंदगी की तुलना उनसे करने लगते हैं। यह तुलना धीरे-धीरे ईर्ष्या, असंतोष और खुद को कमतर समझने की भावना में बदल जाती है। -
क्षणिक खुशी, स्थायी खालीपन
किसी नए दोस्त की रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करना या पोस्ट पर ज्यादा लाइक्स आना कुछ पल के लिए खुशी देता है, लेकिन यह खुशी टिकाऊ नहीं होती। ये डोपामिन हिट्स धीरे-धीरे मानसिक निर्भरता में बदल जाते हैं, जिससे असल रिश्तों की अहमियत कम हो जाती है। -
रियल बातचीत की कमी
सोशल मीडिया बातचीत में भावनाएं, बॉडी लैंग्वेज और टोन गायब होता है। लोग मिसअंडरस्टैंडिंग का शिकार होते हैं और महसूस करते हैं कि सामने वाला उन्हें नहीं समझ रहा। यही दूरी सोशल आइसोलेशन की पहली सीढ़ी बनती है।
क्या है सोशल आइसोलेशन?
सोशल आइसोलेशन का मतलब होता है किसी व्यक्ति का समाज से धीरे-धीरे कटना — न मिलना, न बात करना और ना ही किसी सामाजिक आयोजन में शामिल होना। यह स्थिति डिप्रेशन और एंग्जायटी जैसे मानसिक रोगों को जन्म देती है।
सोशल मीडिया में “फेक कनेक्टिविटी” का सच
500 दोस्त होने का यह मतलब नहीं कि आपके पास कोई ऐसा है जिससे आप दिल की बात साझा कर सकें। सोशल मीडिया रिश्तों की गहराई नहीं, केवल संख्या दिखाता है। ऐसे में व्यक्ति दिखावे की इस भीड़ में खुद को और अधिक अकेला और खोया हुआ महसूस करता है।
क्या है समाधान?
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सोशल मीडिया डिटॉक्स: हफ्ते में कुछ दिन या घंटे सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रहें।
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रियल कनेक्शन बनाएं: पुराने दोस्तों, परिवार या सहयोगियों से आमने-सामने मिलें।
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अपनी तुलना खुद से करें: दूसरों से बेहतर बनने की बजाय, कल के मुकाबले आज खुद में सुधार लाएं।
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डिजिटल हेल्थ को गंभीरता से लें: ऐप ट्रैकर्स से सोशल मीडिया यूज़ मॉनिटर करें और जरूरत पड़ने पर प्रोफेशनल काउंसलिंग लें।
सोशल मीडिया हमें जोड़ने के लिए बना है, लेकिन यह जुड़ाव तभी सार्थक होता है जब भावनाएं, समय और समझदारी साथ हो। वरना ये कनेक्शन एक दिन हमें इतना अकेला कर देता है कि हम भीड़ में होकर भी खुद को अनसुना और अदृश्य महसूस करने लगते हैं।