शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का बड़ा बयान: “क्या अपने आप धमाका हो गया?… मुंबई अब चमत्कारी हो गई है?”

By Hindustan Uday

🕒 Published 1 week ago (2:56 AM)

मुंबई में बुधवार को आयोजित एक विशेष संवाददाता सम्मेलन में जगद्गुरु शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कई समसामयिक विषयों पर अपनी राय रखी। उन्होंने धर्म और न्याय को लेकर गहरे सवाल उठाते हुए “धर्म न्यायालय” की स्थापना की घोषणा की, जिसकी प्रक्रिया अगले 15 दिनों में शुरू की जाएगी।

धर्मिक मामलों के लिए अलग न्याय व्यवस्था की मांग

शंकराचार्य ने कहा कि मौजूदा अदालतें अक्सर धार्मिक मुद्दों की गहराई और संवेदनशीलता को समझ नहीं पातीं, जिससे धार्मिक समुदायों में असंतोष बढ़ता है। इसी वजह से, धर्मिक मामलों के लिए एक समर्पित न्यायिक व्यवस्था की आवश्यकता महसूस हो रही है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर असहमति

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद को लेकर दायर याचिका को खारिज किए जाने पर शंकराचार्य ने हैरानी जताई। उन्होंने कहा कि जब प्रसाद जैसी पवित्र वस्तु में मिलावट का संदेह हो, तो उस पर विचार होना चाहिए था।

7/11 धमाकों पर सवाल, न्याय प्रणाली पर तीखी टिप्पणी

मुंबई के 7/11 बम धमाकों पर बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा दिए गए फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए शंकराचार्य ने कहा, “क्या यह घटना अपने आप हो गई? अगर दोषी नहीं मिले, तो क्या मृतकों को किसी ने नहीं मारा?” उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में यदि 11 साल तक फैसले में देरी हो और फिर भी पीड़ितों को न्याय न मिले, तो यह व्यवस्था पर बड़ा प्रश्नचिह्न है।

गाय के दूध को लेकर वैज्ञानिकों पर सवाल

उन्होंने देसी गायों के दूध में A2 और विदेशी नस्ल के दूध में A1 प्रोटीन को लेकर वैज्ञानिक वर्गीकरण पर आपत्ति जताई। उनका सवाल था कि जब भगवान के प्रसाद के लिए दूध चुना जा रहा है, तो क्या यह भी वैज्ञानिकों द्वारा तय किया जाएगा? उन्होंने इसे आस्था में हस्तक्षेप बताया।

कबूतरों के अधिकारों की वकालत

कबूतरों को दाना खिलाने से होने वाली बीमारियों पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव पर भी उन्होंने विरोध दर्ज किया। उन्होंने कहा कि यदि मनुष्यों में भी बैक्टीरिया हैं तो क्या उन्हें भी हटा देना चाहिए? उन्होंने कबूतरों के पुनर्वास की मांग की और कहा कि हम ही उन्हें दाना डालने के आदी बनाते हैं, तो अब उन्हें यूं नहीं छोड़ा जा सकता।

गौमाता के लिए सरकारी प्रोटोकॉल की जरूरत

उन्होंने कहा कि केवल नामकरण से कोई “गौमाता” नहीं बनती। सरकार को उनके खान-पान, देखभाल और संरक्षण के लिए एक स्पष्ट प्रोटोकॉल तैयार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि अगले 15 दिनों में वे इस विषय पर मुख्यमंत्री और अन्य संबंधित मंत्रियों से चर्चा की पहल करेंगे।

भाषा विवाद पर शंकराचार्य की राय

महाराष्ट्र में भाषा को लेकर उठे विवाद पर उन्होंने कहा कि वे स्वयं मराठी सीख रहे हैं और जल्द ही मराठी में संवाद करेंगे। उन्होंने हिंदी और मराठी को राजभाषा घोषित किए जाने की प्रक्रिया पर भी प्रकाश डाला।

राज ठाकरे की भाषा पर आलोचना

मनसे प्रमुख राज ठाकरे द्वारा की गई “डुबो डुबो के मारेंगे” जैसी टिप्पणी पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए शंकराचार्य ने कहा कि यह हिंसा की भाषा है, और ऐसे लोग समाज में अकेले पड़ जाते हैं। उन्होंने कहा कि अगर कहना ही था तो “भीगो-भीगो के मारेंगे” जैसे मुहावरे का प्रयोग करते, जिससे बात व्यंग्यात्मक रह जाती, न कि हिंसक।

एकनाथ शिंदे के काम की सराहना

शंकराचार्य ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे की प्रशंसा करते हुए कहा कि उनके नाम पर “स्वर्णाक्षरों में लिखी जाने वाली पुस्तक” तैयार की जा रही है। उन्होंने यह भी कहा कि जो नेता अच्छा काम करता है, उसकी सराहना होनी चाहिए, चाहे वह किसी भी दल से हो।

शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के इन बयानों से स्पष्ट है कि वे सिर्फ धार्मिक मामलों तक सीमित नहीं रहना चाहते, बल्कि सामाजिक और न्यायिक मसलों में भी खुलकर अपनी बात रखना चाहते हैं। उनकी प्रस्तावित “धर्म न्यायालय” व्यवस्था और हालिया घटनाओं पर उनकी राय आने वाले समय में बहस का बड़ा मुद्दा बन सकती है।

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