सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा के किसानों को बड़ी राहत देते हुए अपने ही अप्रैल 2022 के फैसले को पलट दिया है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि गाँव की आम जमीन (Village Common Lands) ग्राम पंचायतों को दी जाए, लेकिन अब अदालत ने साफ कर दिया है कि यह जमीन असली मालिकों को ही लौटाई जानी चाहिए।
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हाईकोर्ट का फैसला बरकरार
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की अगुवाई वाली बेंच ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट की 2003 की फुल बेंच के फैसले को सही माना। कोर्ट ने कहा कि चकबंदी (Consolidation) के दौरान जो ज़मीन सामान्य उपयोग के लिए चिन्हित नहीं की गई, वह राज्य या पंचायत के पास नहीं रहेगी, बल्कि ज़मीन मालिकों के पास ही रहेगी।
क्या है ‘बचत भूमि’ ?
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ‘बचत भूमि’ (Bachat Land) या अनुपयोगी भूमि, यानी वह जमीन जो सामूहिक कार्यों (जैसे सड़क, स्कूल, चरागाह) के लिए इस्तेमाल की गई भूमि के बाद बच जाती है, उसे उन्हीं ज़मीन मालिकों को लौटाया जाना चाहिए, जिन्होंने योगदान दिया था। यह बंटवारा उनके योगदान के अनुपात में होगा।
अदालत की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तक किसी जमीन को खास तौर पर सामूहिक प्रयोजनों के लिए आरक्षित नहीं किया जाता और उसका कब्ज़ा पंचायत को नहीं सौंपा जाता, तब तक वह ज़मीन पंचायत की नहीं बल्कि मालिकों की मानी जाएगी।
मामला क्या है?
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पूर्वी पंजाब होल्डिंग्स (Consolidation and Prevention of Fragmentation) एक्ट, 1948 के तहत ग्रामीणों को सामूहिक जरूरतों जैसे सड़क, स्कूल या चरागाह के लिए अपनी कुछ जमीन देनी पड़ती थी।
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1992 में हरियाणा सरकार ने पंजाब विलेज कॉमन लैंड्स (Regulation) एक्ट, 1961 में संशोधन करके इस योगदान की गई भूमि को भी ‘शमीलात देह’ (गाँव की आम भूमि) में शामिल कर लिया।
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शमीलात देह का मतलब है वह जमीन जो पूरे गाँव की होती है, न कि किसी एक मालिक की।
अब सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि ऐसी बचत भूमि मालिकों को ही लौटाई जाएगी।
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