Secret of NDA’s Victory, आज सवाल सिर्फ एक नहीं—कई हैं । क्या बिहार ने वाकई बदलाव के नाम पर फिर भरोसा नीतीश-मोदी की जोड़ी को सौंप दिया? क्या 2025 का यह चुनाव जीत की रणनीति था… या विपक्ष की हार की कहानी? क्या बागी, बाहुबली और बहनों का यह समीकरण पहले से ही सेट था? और सबसे बड़ा सवाल—क्या बिहार का यह जनादेश विकास की जीत है, या माइक्रो मैनेजमेंट की महारथ?
विषयसूची
बिहार में NDA (एनडीए) की उस प्रचंड जीत, Secret of NDA’s Victory
बात करेंगे बिहार में NDA (एनडीए) की उस प्रचंड जीत की, जिसने महागठबंधन को धूल चटा दी । वो जीत जो 2010 के बाद पहली बार इतनी एकतरफा दिखी । वो जीत जिसने 6 पार्टियों वाले महागठबंधन को डबल डिजिट में पहुंचने तक नहीं दिया । आखिर ऐसा क्या हुआ बिहार में? क्या सिर्फ फ्री बिजली, कैश ट्रांसफर और काठ-गोदावरी जैसे पुराने मुद्दे चल गए… या इसके पीछे कुछ और गहरा था?
चुनाव के सबसे बड़े रहस्य,Secret of NDA’s Victory
नीतीश कुमार। वो नीतीश जिन्हें कुछ महीनों पहले तक “बीमार”, “कमजोर”, यहां तक कि राजनीति छोड़ने की चर्चा में बताया जा रहा था… वही नीतीश अचानक 81 रैलियों में दिखाई दिए। सीट बंटवारे में, टिकट वितरण में उन्होंने अपनी पकड़ दोबारा साबित की । अंदरखाने की मीटिंग्स से लेकर गठबंधन को एकजुट रखने तक, नीतीश ने इस बार सब कुछ कंट्रोल किया । सवाल उठता है—क्या नीतीश सिर्फ शांत थे… या विपक्ष को झांसा दे रहे थे? क्या Mahagathbandhan पूरी तरह नीतीश को underestimate कर चुका था?
NDA (एनडीए) ने पिछली गलती से सबसे बड़ा सबक सीख लिया?
सिर्फ नीतीश नहीं… इस बार बीजेपी भी ज़मीन पर पहले से कहीं ज्यादा ट्यून में दिखी । शहाबाद का इलाका याद है? वही इलाका जहां 2020 में चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की वजह से जेडीयू-बीजेपी का पूरा खेल बिगड़ गया था। इस बार दोनों NDA (एनडीए) के अंदर थे । बीजेपी ने चुनाव से पहले पवन सिंह और कुशवाहा के बीच टूटे सामाजिक समीकरणों को जोड़ दिया। सवाल ये—क्या यह चुनाव जातीय गोलबंदी का गेम था? क्या एनडीए ने पिछली गलती से सबसे बड़ा सबक सीख लिया?
महिलाओं के अकाउंट में 10-10 हजार का सीधा ट्रांसफर
लेकिन यहां एक और बड़ा फैक्टर था… महिलाएं । खासकर जीविका दीदी। चुनाव से ठीक पहले 1.5 करोड़ महिलाओं के अकाउंट में 10-10 हजार का सीधा ट्रांसफर । अब सोचिए—क्या कोई भी राजनीतिक दल इस तरह का सोशल इंजीनियरिंग समझ सकता था? सवाल यही है—क्या यह Empowerment था या Election Management? आप भी बताइए , क्या यह कदम आपकी नजर में Welfare है या Direct Politics?
चुनाव से पहले ही बागियों को मैनेज किया,Secret of NDA’s Victory
अब आते हैं उस रणनीति पर जिसने महागठबंधन की हवा निकाल दी—पहले बात बागी प्रबंधन की….एनडीए ने कम से कम 20 सीटों पर चुनाव से पहले ही बागियों को मैनेज कर लिया। अलीनगर, बैकुंठपुर, राजनगर, गोपालगंज—यह वे सीटें थीं जहां बागी खुद एनडीए के लिए खतरा बन सकते थे। लेकिन चुनाव से पहले सब सेट। सब शांत। सब लाइन में। सवाल उठता है—क्या विपक्ष यह समझ ही नहीं पाया कि खेल मैदान पर नहीं, बैकस्टेज में सेट हो रहा है?
जंगलराज, कट्टा, रंगदार शब्दों को हवा
वोटर्स के दिल-दिमाग में भावनाएं भी मायने रखती हैं… और इस बार एनडीए ने जंगलराज, कट्टा, रंगदार—इन शब्दों को लगातार हवा दी। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने हर रैली में इसे मुद्दा बनाया। आरजेडी बार-बार बचाव में दिखी, लेकिन जवाब में कुछ ठोस नहीं दे पाई। सवाल यह है—क्या विपक्ष पिछले 15 साल से उसी “जंगलराज” की छवि का बोझ ढो रहा है, जिसे वो मिटा नहीं पा रहा?
125 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा,Secret of NDA’s Victory
अब बात करते हैं फ्रीबीज और वेलफेयर की । नीतीश सरकार ने चुनाव से कुछ हफ्ते पहले 125 यूनिट फ्री बिजली की घोषणा कर दी। ग्रामीण इलाकों में इसका जबरदस्त असर दिखा। गांव-गांव में इस फैसले ने वोट को एक दिशा में मोड़ दिया। क्या यह Welfare था, या एक Timing Masterstroke? यह बहस अभी जारी है।
जातीय संगठनों के टूटे धागों को जोड़ा,Secret of NDA’s Victory
याद रखिए—लोकसभा चुनाव में शहाबाद इलाके में एनडीए को करारी हार मिली थी। वहां कोईरी और राजपूत समुदाय पूरी तरह बंट गया था। इस बार बीजेपी ने दोनों समुदायों को एक मंच पर खड़े कर दिया। क्या जातीय संगठनों के टूटे धागों को जोड़ना ही इस जीत की असली कुंजी था?
टिकट बंटवारे को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ
अब यहां से कहानी और दिलचस्प हो जाती है… टिकट बंटवारे को लेकर कोई बड़ा विवाद नहीं हुआ। कोई खुली बयानबाज़ी नहीं । न अंदरखाने लड़ाई बाहर आई, न किसी नेता की असंतुष्टि कैमरे पर दिखी। यह एनडीए की ऐसी मैनेजमेंट स्किल थी जिसे महागठबंधन छू भी नहीं पाया। यह चुनाव शायद पहला चुनाव था जहां दोनों बड़े दल—जेडीयू और बीजेपी—एक ही सुर में दिखे ।
एनडीए बिना सीएम फेस के मैदान में उतरा
लेकिन बिहार की राजनीति बाहुबलियों के बिना कैसे पूरी होती? मोकामा, एकमा, ब्रह्मपुर, तरारी—इन सीटों पर एनडीए ने स्ट्रॉन्गमैन उतारे और यह पैंतरा फिट भी बैठा। सवाल यह कि क्या बिहार में आज भी जीत “संगठन” से ज्यादा “वर्चस्व” पर निर्भर है? और सबसे बड़ा कारण—एनडीए बिना सीएम फेस के मैदान में उतरा। पिछली बार एनडीए ने नीतीश कुमार को पहले ही सीएम घोषित कर दिया था । इससे बीजेपी का वोटर नाराज हुआ था। इस बार गलती नहीं दोहराई। रिजल्ट बताता है—यह दांव एकदम सही पड़ा।
अब एक सवाल है—क्या बिहार में 2025 का जनादेश Development का जनादेश है? या Political Management का? क्या विपक्ष ने गलती की, या NDA (एनडीए) ने मास्टरस्ट्रोक मारा?
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