बिहार के सहरसा जिले के महपुरा गांव में स्थित संत बाबा कारू स्थान एक विशेष धार्मिक स्थल के रूप में जाना जाता है। नवरात्रि के अवसर पर यहां एक अनूठी परंपरा देखने को मिलती है, जब मंदिर में हजारों लीटर दूध का चढ़ावा चढ़ाया जाता है और दूध की एक धारा बहती नजर आती है। यह मंदिर कोशी नदी के किनारे स्थित है, और सप्तमी व अष्टमी को यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु पूजा करने पहुंचते हैं।
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ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
इस मंदिर का इतिहास 17वीं सदी से जुड़ा हुआ है। मान्यता है कि संत बाबा कारू खिरहर ने यहां कठोर तपस्या की थी। उनके तप और सेवा भावना से प्रभावित होकर स्थानीय लोगों ने इस स्थल को धार्मिक रूप में मान्यता दी। वर्षों से यह स्थान श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र बना हुआ है, जहां बाबा कारू की पूजा होती है।
दूध की धारा और विशेष चढ़ावा
नवरात्रि के दो दिनों में यहां लगभग 4000 लीटर दूध चढ़ाया जाता है। दूध इतनी मात्रा में चढ़ाया जाता है कि मंदिर से होकर एक दूध की धारा बहती है, जो सीधे कोशी नदी में जाकर मिलती है। यह दृश्य भक्तों के लिए एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है। इस दूध से खीर बनाई जाती है, जिसे प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं के बीच वितरित किया जाता है।
पशुपालकों की बड़ी भूमिका
इस परंपरा में सबसे बड़ी भागीदारी पशुपालकों की होती है। आसपास के जिलों और पड़ोसी राज्यों से भी पशुपालक यहां दूध लेकर पहुंचते हैं और इसे श्रद्धा से बाबा को अर्पित करते हैं। यह आयोजन धार्मिक के साथ-साथ एक सामाजिक आयोजन का रूप भी ले चुका है, जिसमें पूरे क्षेत्र की सहभागिता होती है।
सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व
यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसका सांस्कृतिक और सामाजिक पहलू भी बहुत मजबूत है। यहां होने वाले आयोजन से लोगों में एकता और समर्पण की भावना पैदा होती है। स्थानीय प्रशासन भी श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए विशेष प्रबंध करता है। सड़कों से लेकर नदी किनारे तक की सफाई और व्यवस्था मंदिर समिति और प्रशासन के सहयोग से की जाती है।
श्रद्धालुओं की आस्था
हर साल नवरात्रि के दौरान यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं। लोग दूध, दही, फल, चूड़ा आदि बाबा को अर्पित करते हैं और मन्नतें मांगते हैं। मंदिर में उमड़ने वाली भीड़ यह दर्शाती है कि यह स्थल लोगों की आस्था का जीवंत प्रतीक बन चुका है।
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