रूस ने परमाणु क्षमता वाली नई मिसाइल “ब्यूरेवस्तनिक (Burevestnik)” का सफल परीक्षण किया है । यह दावा रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने किया है । साथ ही पुतिन ने कहा कि ऐसी मिसाइल जिसका हमने परीक्षण किया है वह किसी के पास नहीं है ।
इसका एक वीडियो रविवार को रूस के राष्ट्रपति के ऑफिस से जारी किया गया है । इसी वीडियों में पुतिन सेना अधिकारियों के साथ इस घोषणा को साझा कर रहे हैं ।
इस वीडियो के आने के बाद पूरी दुनिया का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है । अब सोचने वाली बात यह है कि क्या रूस इतनी खतरनाक मिसाइल बनाने में सफल हो गया है या फिर केवल यह एक दावा ही है।
विषयसूची
क्या है ब्यूरेवस्तनिक मिसाइल?
रूस की यह खतरनाक मिसाइल Burevestnik (9M730) एक न्यूक्लियर-पावर्ड क्रूज़ है । इस मिसाइल में एक छोटा परमाणु रिएक्टर लगाया गया है जो इसे निरंतर एनर्जी देता रहेगा । यदि देखा जाए तो यह मिसाइल लंबी दूरी तक टारगेट को भेद सकती है ।
अगर रूस के दावे में सच्चाई है तो यह मिसाइल हजारों किलोमीटर तक जा सकती है । गौरतलब है कि 1950–60 के दशक में इसी तकनीक पर “Project Pluto” के तहत अमेरिका ने भी कार्य किया था । जिसे बाद में पर्यावरण के खतरे को देखते हुए बंद कर दिया गया था ।
क्या 15 घंटे में 14,000 किमी उड़ान संभव है?
पुतिन ने वीडियो में जो दावा किया वह यह है कि मिसाइल की जो गति है वह 15 घंटे में 14,000 किलोमीटर की है । यानी इसकी औसत रफ्तार करीब 933 किमी प्रति घंटा की होगी जो किसी सबसोनिक विमान की गति के समान है ।
तकनीकी रूप से माने तो यह गति संभव है, लेकिन असल चुनौती तो यह है इतना छोटा और हल्का परमाणु रिएक्टर को बनाना साथ ही उसे सुरक्षित तरीके से मिसाइल में फिट भी करना।
इतना ही काफी नहीं है बल्कि उड़ान के दौरान रेडिएशन लीक न हो इसका भी पूरा का पूरा ध्यान रखना आवश्यक है । इन्हीं सभी कारणों के चलते दुनिया का कोई भी देश व्यवहारिक स्तर पर इस तकनीक को लागू नहीं कर पा रहा है ।
क्यों है इतनी मुश्किल तकनीक?
एक परमाणु मिसाइल में जो रिएक्टर लगाया जाता है वह लगातार गर्मी और विकिरण (radiation) पैदा करता है । यदि रिएक्टर को ढक दो तो मिसाइल भारी हो जाती है, और अगर नहीं ढका जाए तो यह पर्यावरण और लोगों के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकता है ।
बता दें कि साल 2019 में रूस ने एक मिसाइल का परीक्षण किया था तो उस दौरान रेडिएशन लीक हो गया था । जिसका असर यह हुआ कि जहां रेडिएशन लीक हुई वहां के एरिया में विकिरण का स्तर बढ़ गया । यह दिखाता है कि यह मिसाइल की यह तकनीक न केवल कठिन है बल्कि पर्यावरण के लिए संभावित रूप से बहुत ही विनाशकारी भी है।
क्या किसी और देश के पास ऐसी मिसाइल है?
अभी तक दुनिया के किसी भी देश ने ऐसी मिसाइल के सफल परीक्षण का कोई भी सार्वजनिक प्रमाण नहीं दिया है । परमाणु शक्ति संपंन देश अमेरिका चीन , हाइपरसोनिक मिसाइलों, और SLBM सिस्टम्स पर अपना ध्यान केंद्रित कर रही हैं । परंतु न्यूक्लियर-पावर्ड क्रूज़ मिसाइल जैसी तकनीक अभी भी रिसर्च और प्रैक्टिकल स्तर पर ही है।
दुनिया के लिए खतरा या नई चुनौती?
अगर रूस के दावे में सच्चाई है तो यह मौजूदा मिसाइल-डिफेंस सिस्टम्स के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है, क्योंकि इसकी उड़ान दिशा और समय का अंदाज़ा लगाना बहुत ही मुश्किल होगा ।
दुर्भाग्यवश यदि यह मिसाइल फेल हो जाती है या गिरती है, तो यह पूरे इलाके में रेडियोधर्मी प्रदूषण फैल जाएगा जो कि मानव सभ्यता के लिए एक गंभीर खतरा हो सकता है ।
बात केवल यहीं तक सीमित नहीं रहेगी ऐसे हथियारों के चलते दुनिया में नई हथियार होड़ (Arms Race) शुरू हो सकती है, जो वैश्विक सुरक्षा और पर्यावरणीय संतुलन दोनों के लिए बेहद खतरनाक साबित होगी ।
नतीजा
रूस का मिसाइल का दावा सुनने में भले ही भविष्य की सुपर तकनीक जैसा लगे, लेकिन बिना ठोस सबूतों के इसे पूरी तरह सच मानना मुश्किल है । इतिहास और तकनीकी विश्लेषण बताते हैं कि न्यूक्लियर-प्रेरित मिसाइलें संभव तो हैं, लेकिन बेहद जटिल, महंगी और जोखिमभरी ।
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