भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने लगातार दूसरी बार अपनी मॉनेटरी पॉलिसी बैठक में रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया है और इसे 5.50% पर स्थिर रखा है। इसका मतलब है कि बैंकों के लोन महंगे नहीं होंगे और आपकी EMI में कोई बढ़ोतरी नहीं होगी। इससे पहले अगस्त में भी रेपो रेट में बदलाव नहीं किया गया था।
RBI ने इस बार देश की GDP ग्रोथ का अनुमान 6.5% से बढ़ाकर 6.8% कर दिया है। यह फैसला 29 सितंबर से 1 अक्टूबर तक हुई मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी की बैठक में लिया गया। RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने 1 अक्टूबर को इसकी जानकारी दी।
गवर्नर ने कहा कि कमेटी के सभी सदस्य ब्याज दरों को स्थिर रखने के पक्ष में थे। GST में कटौती और महंगाई में कमी के चलते यह निर्णय लिया गया है।
विषयसूची
रेपो रेट क्या है?
रेपो रेट वह दर है जिस पर RBI बैंकों को लोन देता है। इसमें बदलाव न होने का मतलब है कि ब्याज दरें स्थिर रहेंगी — न तो बढ़ेंगी और न घटेंगी।
इस साल रेपो रेट में बदलाव का ट्रैक
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फरवरी: रेपो रेट 6.50% से घटाकर 6.25% किया गया (पहली कटौती, लगभग 5 साल में पहली बार)।
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अप्रैल: 0.25% और कटौती।
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जून: 0.50% और कटौती।
इस तरह, इस साल कुल 1% की कटौती की गई है। 
RBI रेपो रेट क्यों बदलता है?
RBI का रेपो रेट पॉलिसी रेट का एक अहम टूल है, जिसका इस्तेमाल महंगाई और आर्थिक स्थिति को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
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महंगाई बढ़ने पर : रेपो रेट बढ़ाकर बैंकिंग लोन महंगे किए जाते हैं, जिससे बाजार में पैसे का प्रवाह कम होता है और महंगाई घटती है।
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अर्थव्यवस्था धीमी होने पर: रेपो रेट घटाकर बैंकिंग लोन सस्ते किए जाते हैं, जिससे पैसे का प्रवाह बढ़ता है और अर्थव्यवस्था में सुधार होता है।
 
RBI की बैठक
मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी में 6 सदस्य होते हैं — 3 RBI के और 3 केंद्र सरकार के। यह बैठक हर दो महीने में होती है। वित्त वर्ष 2025-26 में कुल 6 बैठकें होंगी, जिनमें पहली 7-9 अप्रैल को हुई थी। इस बार RBI ने महंगाई में कमी को देखते हुए रेपो रेट को स्थिर रखा है।
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