Rahul Gandhi : कांग्रेस की स्वीकारोक्ति की राजनीति: क्या बदलेगा इससे पार्टी का भविष्य?

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By Rita Sharma

🕒 Published 1 month ago (3:57 AM)

नई दिल्ली 5 मई 2025। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने हाल ही में अमेरिका में सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया कि 1980 के दशक में कांग्रेस सरकार से कई बड़ी गलतियां हुईं। उन्होंने यहां तक कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों की जिम्मेदारी लेने को वह तैयार हैं। यह बयान ऐसे वक्त में आया है जब कांग्रेस लगातार तीसरी बार केंद्र की सत्ता से बाहर हो चुकी है और अब संगठन को नए रूप में पेश करने की कोशिश कर रही है। राहुल की यह स्वीकारोक्ति पार्टी की किसी बड़ी रणनीति का हिस्सा मानी जा सकती है।

बदलते राजनीतिक तेवर

2014 से कांग्रेस लगातार केंद्र की सत्ता में वापसी की कोशिश कर रही है, लेकिन सफलता अब तक हाथ नहीं लगी। राज्यों में भी कांग्रेस का प्रभाव लगातार कम हो रहा है। चाहे अकेले लड़ना हो या गठबंधन करना — पार्टी को अब तक कोई ठोस लाभ नहीं मिल सका है। दिल्ली और हरियाणा में कांग्रेस की रणनीति नाकाम रही, जबकि महाराष्ट्र में मजबूत गठबंधन और हालिया लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन के बावजूद विधानसभा में सफलता नहीं मिल सकी।

ऐसे में राहुल गांधी का गलतियों को स्वीकार करना कांग्रेस के बदलते रवैये की ओर इशारा करता है। मंदिरों में दर्शन से लेकर खुद को जनेऊधारी बताने तक की कोशिशें इस बदलाव का संकेत रही हैं। अब उनकी स्वीकारोक्ति पार्टी को एक नई दिशा देने का प्रयास प्रतीत हो रही है।

क्या भाजपा से प्रेरणा ले रही है कांग्रेस?

कई विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस का यह बदला हुआ रुख भाजपा की रणनीति से प्रेरित हो सकता है। हाल ही में केंद्र सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लिया, जबकि पहले वह इससे इनकार करती रही थी। कांग्रेस ने इस मुद्दे को अपने चुनावी एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया था, लेकिन भाजपा के कदम ने उसका यह हथियार कमजोर कर दिया।

संभव है कि इस झटके के बाद कांग्रेस नेतृत्व ने यह महसूस किया हो कि उसे आत्मचिंतन के साथ एक नई राजनीतिक भाषा गढ़नी होगी — जिसमें पुरानी गलतियों की स्वीकारोक्ति से जनता के बीच भरोसा दोबारा कायम किया जा सके।

इतिहास की कुछ भूलें

कांग्रेस की ऐतिहासिक गलतियों की बात करें तो उनमें आपातकाल लागू करना, ऑपरेशन ब्लू स्टार और 1984 के सिख दंगे शामिल हैं। इन घटनाओं ने कांग्रेस की छवि को लंबे समय तक नुकसान पहुंचाया। पंजाब जैसे राज्य में कांग्रेस आज तक स्थायी रूप से पैर नहीं जमा पाई है।

इसके अलावा शाह बानो प्रकरण में कांग्रेस ने जिस तरह से अपने रुख में कट्टरता दिखाई, उसने उदार मुस्लिम मतदाताओं को भी निराश किया। आरिफ मोहम्मद खान जैसे नेताओं का पार्टी से जाना इसी का नतीजा था। इसके चलते मुस्लिम मतदाता धीरे-धीरे क्षेत्रीय दलों की ओर झुकने लगे, जैसे तृणमूल कांग्रेस, सपा और आरजेडी।

2014 की हार के बाद एके एंटोनी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि कांग्रेस को मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण नुकसान हुआ है। वहीं सिख समुदाय पहले ही पार्टी से नाराज़ था, और ब्राह्मण मतदाता भी भाजपा के हिन्दुत्व एजेंडे की ओर झुक चुके थे।

क्या मिल पाएगा कांग्रेस को लाभ?

राहुल गांधी की यह स्वीकारोक्ति पार्टी के भीतर एक नए विमर्श की शुरुआत तो कर सकती है, लेकिन क्या इससे कांग्रेस को राजनीतिक लाभ मिल पाएगा, यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगी। फिलहाल इतना तय है कि कांग्रेस अपनी पुरानी गलतियों को स्वीकार कर एक नई राजनीतिक शैली अपनाने की ओर कदम बढ़ा रही है — जो आने वाले चुनावी समर में उसके लिए नई संभावनाएं खोल सकती है।

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