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पुष्पम प्रिया चौधरी: क्या 2025 में जातिवाद को पीछे छोड़, बिहार की राजनीति को नई दिशा दे पाएंगी?

पटना: बिहार की राजनीति वर्षों से जातिगत समीकरणों, खानदानी विरासत और वोट बैंक की राजनीति के इर्द-गिर्द घूमती रही है। ऐसे माहौल में साल 2020 में एक ऐसा नाम उभरा जिसने इस जड़ता को चुनौती देने की कोशिश की — पुष्पम प्रिया चौधरी। अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन, 8 मार्च 2020 को जब उन्होंने खुद को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित करते हुए अखबारों के पहले पन्ने पर विज्ञापन छपवाया, तब पूरे राज्य की राजनीति में हलचल मच गई।

आधुनिक सोच, विदेशी शिक्षा, स्थानीय जड़ें
पुष्पम प्रिया का जन्म 13 जून 1987 को दरभंगा, बिहार में हुआ। उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा दरभंगा के होली क्रॉस मिशनरी स्कूल से पूरी की और स्नातक की पढ़ाई पुणे के सिम्बायोसिस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी से की। आगे की पढ़ाई के लिए उन्होंने यूनाइटेड किंगडम का रुख किया, जहाँ उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ ससेक्स से डेवलपमेंट स्टडीज़ में मास्टर्स और लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन की डिग्री प्राप्त की।

विदेश से लौटकर उन्होंने कुछ समय बिहार सरकार के स्वास्थ्य और पर्यटन विभागों में सलाहकार के तौर पर काम किया, जिससे उन्हें प्रशासनिक अनुभव भी मिला।

राजनीतिक पृष्ठभूमि और परिवार का प्रभाव
पुष्पम भले ही खुद को वैकल्पिक राजनीति की प्रतीक मानती हैं, लेकिन उनका परिवार राजनीति से अछूता नहीं रहा। उनके पिता विनोद चौधरी जनता दल (यू) से विधान पार्षद रह चुके हैं, वहीं दादा उमाकांत चौधरी समता पार्टी के संस्थापक सदस्यों में से थे। उनके चाचा विनय चौधरी वर्तमान में जदयू विधायक हैं।

प्लुरल्स पार्टी की शुरुआत और साहसिक प्रयोग
2020 में पुष्पम ने ‘प्लुरल्स पार्टी’ की नींव रखी, एक ऐसी पार्टी जो खुद को पारंपरिक राजनीतिक ढांचे से अलग बताती है। उन्होंने जाति और धर्म आधारित राजनीति का खुलकर विरोध किया। उनके उम्मीदवारों के नामांकन में धर्म के स्थान पर “बिहारी” और जाति के स्थान पर “प्रोफेशन” लिखा गया — जो बिहार की चुनावी राजनीति में अब तक अनदेखा प्रयोग था।

हालांकि परिणाम उनके पक्ष में नहीं रहे। पुष्पम खुद दो सीटों — बांकीपुर (पटना) और बिस्फी (मधुबनी) से चुनाव लड़ीं लेकिन हार गईं। दोनों सीटों से कुल मिलाकर उन्हें केवल 6710 वोट मिले।

2025: क्या बदलेगा खेल?
अब जब बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की तारीखों की घोषणा हो चुकी है, पुष्पम प्रिया फिर से मैदान में हैं। इस बार उनकी पार्टी सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही है। पिछली बार “शतरंज” चुनाव चिह्न पर लड़ने वाली पार्टी को अब “सिटी” (सीटी) प्रतीक मिला है।

इस बार का उनका सबसे साहसिक कदम है — पार्टी की 50% सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रखना। यह न केवल महिला सशक्तिकरण का मजबूत संदेश है, बल्कि बिहार की राजनीति में लैंगिक प्रतिनिधित्व को लेकर एक साहसिक शुरुआत भी हो सकती है।

क्या बिहार तैयार है बदलाव के लिए?
बिहार की एक बड़ी आबादी युवा है, जो नौकरी, शिक्षा और विकास जैसे मुद्दों को लेकर चिंतित है। पुष्पम प्रिया इन्हीं सवालों के इर्द-गिर्द अपनी राजनीति गढ़ रही हैं। हालांकि उनके सामने RJD, JDU और BJP जैसे पुराने और मजबूत दलों की चुनौती है, लेकिन यदि वह लोगों को जातिगत और पारिवारिक राजनीति से हटकर सोचने को प्रेरित कर सकीं, तो यह बिहार में राजनीति के नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है।

अब देखना यह होगा कि क्या पुष्पम प्रिया चौधरी इस बार मतदाताओं को केवल नया चेहरा नहीं, बल्कि एक मजबूत विकल्प भी दे पाएंगी? क्या बिहार बदलाव के लिए तैयार है? और सबसे अहम — क्या इस बार जातिवाद का चक्रव्यूह टूटेगा?

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