प्रयागराज में गंगा-यमुना का पानी स्नान योग्य नहीं, CPCB रिपोर्ट में खुलासा

By Ankit Kumar

🕒 Published 6 months ago (5:37 AM)

प्रयागराज महाकुंभ में अब तक 54 करोड़ से अधिक श्रद्धालु गंगा-यमुना के संगम में आस्था की डुबकी लगा चुके हैं। लेकिन इस बीच सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की एक रिपोर्ट ने चिंता बढ़ा दी है। रिपोर्ट के अनुसार, प्रयागराज में गंगा और यमुना नदी का पानी स्नान करने योग्य नहीं है। CPCB ने 17 फरवरी को अपनी रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) में पेश की, जिसमें दोनों नदियों के जल में प्रदूषण की गंभीर स्थिति उजागर हुई।

CPCB ने किया व्यापक जल परीक्षण

CPCB ने 9 से 21 जनवरी 2025 के बीच प्रयागराज में 73 स्थानों से जल के नमूने लिए। इन नमूनों की जांच छह प्रमुख मानकों पर की गई, जिसमें पीएच स्तर, फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया, बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD), केमिकल ऑक्सीजन डिमांड (COD), डिजॉल्वड ऑक्सीजन (DO) शामिल थे। रिपोर्ट के मुताबिक, पानी में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मात्रा मानक से अधिक पाई गई, जो जल की अशुद्धता और संक्रमण के उच्च स्तर को दर्शाती है। हालांकि, अन्य पांच मानकों पर जल की गुणवत्ता संतोषजनक पाई गई।

 

संगम क्षेत्र में जल की स्थिति ज्यादा खराब

CPCB की रिपोर्ट के अनुसार, संगम क्षेत्र में जल की स्थिति सबसे अधिक चिंताजनक है। संगम से लिए गए सैंपल में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया 100 की बजाय 2000 प्रति मिलीलीटर दर्ज किया गया, जबकि टोटल फीकल कोलीफॉर्म 4500 था। वहीं, गंगा पर बने शास्त्री ब्रिज के पास यह संख्या 3200 तक पहुंच गई।

कुछ प्रमुख स्थानों पर जल की गुणवत्ता:

  • संगम: फीकल कोलीफॉर्म – 2000, टोटल फीकल कोलीफॉर्म – 4500
  • शास्त्री ब्रिज: फीकल कोलीफॉर्म – 3200, टोटल फीकल कोलीफॉर्म – 4700
  • फाफामऊ: फीकल कोलीफॉर्म – 790
  • राजापुर मेहदौरी: फीकल कोलीफॉर्म – 930
  • झूंसी: फीकल कोलीफॉर्म – 920
  • अरैल घाट, नैनी: फीकल कोलीफॉर्म – 680

फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया के खतरे

बीएचयू के गंगा शोधकर्ता प्रो. बी.डी. त्रिपाठी के अनुसार, पानी में अधिक मात्रा में फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया की मौजूदगी स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकती है। यदि यह पानी स्नान या पीने में इस्तेमाल होता है, तो यह त्वचा रोग, पेट के संक्रमण और अन्य जलजनित बीमारियों का कारण बन सकता है। CPCB के अनुसार, जल में फीकल कोलीफॉर्म की स्वीकार्य सीमा 100 प्रति मिलीलीटर होनी चाहिए, लेकिन प्रयागराज में यह सीमा कई स्थानों पर हजारों की संख्या में पाई गई।

गंगा सफाई अभियान और जल शुद्धिकरण की कोशिशें

महाकुंभ के दौरान गंगा को स्वच्छ बनाए रखने की जिम्मेदारी प्रयागराज नगर निगम और उत्तर प्रदेश जल निगम के पास है। नगर निगम के अनुसार, 23 अनटैप्ड नालों के अपशिष्ट जल को शोधित करने के लिए जियो-ट्यूब तकनीक का उपयोग किया जा रहा है। 1 जनवरी से 4 फरवरी तक 3,660 MLD शोधित जल गंगा में छोड़ा गया। लेकिन जल गुणवत्ता की स्थिति अभी भी गंभीर बनी हुई है।

 

2019 के कुंभ में भी प्रदूषण की थी यही स्थिति

यह पहली बार नहीं है जब कुंभ मेले के दौरान जल प्रदूषण की स्थिति उजागर हुई हो। 2019 के कुंभ में भी CPCB की रिपोर्ट में संकेत दिया गया था कि प्रमुख स्नान के दिनों में पानी की गुणवत्ता खराब थी। 2019 में करसर घाट पर बीओडी और फीकल कोलीफॉर्म का स्तर निर्धारित सीमा से अधिक था। यह दर्शाता है कि कुंभ के दौरान बढ़ते मानवजनित गतिविधियों और औद्योगिक कचरे के कारण जल प्रदूषण की समस्या लगातार बनी हुई है।

जल प्रदूषण के प्रमुख कारण:

1. सीवेज और औद्योगिक कचरा: बड़ी मात्रा में अनुपचारित अपशिष्ट जल गंगा और यमुना में प्रवाहित किया जाता है।

2. श्रद्धालुओं की संख्या: कुंभ मेले में करोड़ों श्रद्धालु स्नान करते हैं, जिससे जैविक और रासायनिक कचरे की मात्रा बढ़ जाती है।

3. अवैध नालों का जल प्रवाह: कई अनियंत्रित नाले सीधा गंगा और यमुना में गिरते हैं।

4. धार्मिक अनुष्ठान: धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त फूल, वस्त्र और अन्य सामग्री भी जल को दूषित करते हैं।

समाधान और उपाय:

  • सख्त पर्यावरणीय नियमों का पालन: उद्योगों और नगरपालिकाओं को गंदे पानी के उपचार की सख्त निगरानी करनी चाहिए।
  • सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की संख्या बढ़ाना: गंगा के किनारे अधिक जल शुद्धिकरण संयंत्र स्थापित किए जाने चाहिए।
  • जनजागरूकता अभियान: श्रद्धालुओं और स्थानीय लोगों को जल प्रदूषण के प्रभावों के बारे में शिक्षित करना आवश्यक है।
  • रिवर पुलिसिंग: नदी में कचरा डालने और अनधिकृत नालों को बंद करने के लिए एक समर्पित टीम की तैनाती।

प्रयागराज में गंगा-यमुना का जल वर्तमान में स्नान योग्य नहीं है, जो न केवल श्रद्धालुओं बल्कि पूरे पर्यावरण के लिए गंभीर चिंता का विषय है। CPCB की रिपोर्ट ने इस संकट की गंभीरता को उजागर किया है। हालांकि, सरकार और प्रशासन जल शुद्धिकरण के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन यह स्पष्ट है कि अभी भी अधिक सुधार की आवश्यकता है। गंगा और यमुना को स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त बनाए रखने के लिए सामूहिक प्रयासों की जरूरत है, ताकि भविष्य में कुंभ जैसे महोत्सवों में श्रद्धालु बिना किसी स्वास्थ्य जोखिम के आस्था की डुबकी लगा सकें।

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