नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 जुलाई से ब्रिटेन और फिर 25 जुलाई से मालदीव की आधिकारिक यात्रा पर जा रहे हैं। इस दौरे का उद्देश्य भारत के व्यापारिक, रक्षा और तकनीकी रिश्तों को इन दोनों देशों के साथ और मजबूत करना है।
ब्रिटेन में द्विपक्षीय समझौते होंगे अहम
लंदन यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री मोदी की मुलाकात ब्रिटिश प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर से होगी। यह बातचीत ब्रिटेन के प्रधानमंत्री के लंदन से बाहर स्थित आधिकारिक निवास ‘चेकर्स’ में होगी। इस मीटिंग में भारत-ब्रिटेन के बीच लंबित मुक्त व्यापार समझौता (FTA) को अंतिम रूप दिए जाने की संभावना है। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल और ब्रिटेन के व्यापार मंत्री जोनाथन रेनॉल्ड्स इस समझौते पर हस्ताक्षर कर सकते हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में भी दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है। साउथेम्प्टन विश्वविद्यालय ने गुरुग्राम में नया परिसर शुरू किया है, जो भारत की नई शिक्षा नीति के तहत खोला गया पहला विदेशी विश्वविद्यालय बन गया है। कई और ब्रिटिश संस्थानों के भारत में शाखाएं खोलने की योजना है।
तकनीक और सुरक्षा में भी साझेदारी
भारत और ब्रिटेन के बीच टेक्नोलॉजी सुरक्षा पहल (TSI) के तहत दूरसंचार, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, बायोटेक्नोलॉजी, सेमीकंडक्टर और क्वांटम कंप्यूटिंग जैसे क्षेत्रों में सहयोग को लेकर चर्चा होगी। यह रणनीतिक साझेदारी दोनों देशों को नई तकनीकी ऊंचाइयों तक ले जा सकती है।
मालदीव यात्रा: रणनीतिक रिश्तों को नई दिशा
ब्रिटेन के दौरे के बाद प्रधानमंत्री मोदी 25 से 26 जुलाई तक मालदीव की यात्रा करेंगे। इस दौरान वे मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू के साथ बैठक करेंगे। प्रधानमंत्री मोदी भारत द्वारा समर्थित कई बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का उद्घाटन भी करेंगे।
यह दौरा खासतौर पर इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि मुइज्जू के राष्ट्रपति बनने के बाद यह किसी भी राष्ट्राध्यक्ष की पहली औपचारिक यात्रा होगी। मोदी 26 जुलाई को मालदीव के स्वतंत्रता दिवस समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत करेंगे।
भारत की ‘पड़ोसी प्रथम नीति’ को बल
मालदीव भारत की ‘पड़ोसी पहले’ नीति और ‘सागर विजन’ (Security and Growth for All in the Region) का अहम हिस्सा है। भारत और मालदीव ने पिछले वर्ष एक साझा आर्थिक और समुद्री सुरक्षा साझेदारी पर सहमति जताई थी। प्रधानमंत्री मोदी की यह यात्रा भारत की विदेश नीति में एक नया मोड़ साबित हो सकती है, जो व्यापार, शिक्षा, तकनीक और पड़ोसी देशों के साथ रिश्तों को सशक्त बनाएगी।
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