भोपाल। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शनिवार को मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में महान शासिका लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनकी स्मृति में 300 रुपये का विशेष सिक्का और एक स्मारक डाक टिकट जारी किया। सिक्के पर अहिल्याबाई की छवि अंकित है और यह उनकी धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक सेवाओं का प्रतीक माना जा रहा है।
इस मौके पर पीएम मोदी ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय देवी अहिल्याबाई पुरस्कार की शुरुआत की, जिसके तहत जनजातीय, लोक और पारंपरिक कलाओं में योगदान देने वाली महिला कलाकारों को सम्मानित किया जाएगा।
कौन थीं महारानी अहिल्याबाई होलकर?
महारानी अहिल्याबाई होलकर का जन्म 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के अहमदनगर ज़िले के चौंडी गांव में हुआ था। बेहद सामान्य परिवार से आने वाली अहिल्याबाई की किस्मत उस वक्त बदली जब मालवा के शासक मल्हार राव होलकर ने पुणे यात्रा के दौरान उन्हें गरीबों को खाना खिलाते देखा। उनकी करुणा और सेवा भाव से प्रभावित होकर मल्हार राव ने उन्हें अपनी बहू बनाने का फैसला लिया और उनका विवाह अपने पुत्र खांडेराव होलकर से करवा दिया।
कठिन परिस्थितियों में संभाली सत्ता
विवाह के कुछ सालों बाद ही अहिल्याबाई को बड़े व्यक्तिगत संकटों का सामना करना पड़ा। पहले उनके पति खांडेराव युद्ध में मारे गए, फिर कुछ वर्षों में उनके ससुर और पुत्र का भी निधन हो गया। इन हालातों में अहिल्याबाई ने पेशवा से निवेदन किया कि वे स्वयं मालवा की शासन व्यवस्था संभालना चाहती हैं, जिसे स्वीकार कर लिया गया।
सुशासन की मिसाल बनीं अहिल्याबाई
शासन संभालने के बाद अहिल्याबाई होलकर ने मालवा को एक आदर्श और लोककल्याणकारी राज्य में बदल दिया। उन्होंने धार्मिक स्थलों का निर्माण करवाया, तीर्थयात्रियों के लिए व्यवस्था की और व्यापार, शिक्षा तथा न्याय प्रणाली को मजबूत किया। उनके राज में महिलाएं सुरक्षित थीं और किसानों को विशेष समर्थन मिला।
अंग्रेजों ने भी मानी महानता
अहिल्याबाई की प्रशंसा सिर्फ भारतीय इतिहासकारों ने ही नहीं की, बल्कि अंग्रेज इतिहासकारों और लेखकों ने भी उनके न्यायप्रिय और दयालु स्वभाव को सराहा। एनी बेसेंट जैसी हस्तियों ने भी अहिल्याबाई की प्रशंसा करते हुए उन्हें महान महिला शासकों में स्थान दिया।
‘मां-साहब’ के नाम से प्रसिद्ध
आज भी मालवा क्षेत्र में उन्हें श्रद्धा से ‘मां साहब’ कहकर याद किया जाता है। उनके द्वारा किए गए सामाजिक, धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यों के लिए देशभर में लोग उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। उनकी 300वीं जयंती पर यह विशेष सिक्का जारी करना देश के लिए एक ऐतिहासिक क्षण है।
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