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Phule Movie Review: दलितों के योगदान को उजागर करने वाली एक सशक्त फिल्म

नई दिल्ली । महाराष्ट्र के महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले और उनकी पत्नी सावित्री फुले की जीवनी पर आधारित फिल्म ‘फुले’ ने दर्शकों के सामने एक सशक्त और प्रेरणादायक कहानी प्रस्तुत की है। यह फिल्म व्यावसायिक फिल्मों से अलग है, जिसमें आमतौर पर गाने-बजाने का तत्व नहीं है। यह फिल्म सच्ची घटनाओं पर आधारित है और पीडीए (पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों का एकता) के विचार की नींव को प्रस्तुत करती है, जिसे ज्योतिबा फुले ने आजादी से पहले स्थापित किया था। फिल्म का उद्देश्य उन ऐतिहासिक संघर्षों को उजागर करना है, जो समाज में समानता और शिक्षा के अधिकार की लड़ाई के रूप में लड़े गए थे।

समाज में समानता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम

‘फुले’ फिल्म में ज्योतिबा फुले की शिक्षा के महत्व को दर्शाया गया है। फिल्म में यह दिखाया गया है कि कैसे उन्होंने दलितों और महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलवाने के लिए संघर्ष किया। सावित्री फुले के साथ मिलकर उन्होंने महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला और समाज में जातिवाद को खत्म करने के लिए कड़ी मेहनत की। यह फिल्म समाज के उन दबे कुचले वर्गों की कहानी को सामने लाती है, जिन्हें ज्योतिबा फुले ने अपनी शिक्षा से जागरूक किया। फुले दंपती का संघर्ष केवल शिक्षा तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने जातिवाद और सामाजिक असमानता के खिलाफ भी आवाज उठाई।

स्त्री शिक्षा और सामाजिक समरसता की यात्रा

फिल्म ‘फुले’ में स्त्री शिक्षा और सामाजिक समरसता को प्रमुखता से दिखाया गया है। एक ब्राह्मण परिवार द्वारा अपने घर में लड़कियों के लिए स्कूल खोलने की अनुमति दी जाती है, लेकिन समाज के कुछ हिंदू पुजारी और मुस्लिम मौलवी इसका विरोध करते हैं। इसके बावजूद, ज्योतिबा और सावित्री फुले ने अपने कार्यों से यह साबित किया कि समाज में समानता लाना संभव है। फिल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे फुले ने दलितों की शादी में मंत्रोच्चारण कर यह साबित किया कि वर्ण व्यवस्था का आधार सामाजिक नहीं, बल्कि आर्थिक था।

सिनेमा के नए दृष्टिकोण को पेश करती फिल्म

अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित फिल्म ‘फुले’ ने एक नये दृष्टिकोण से भारतीय सिनेमा को प्रस्तुत किया है। यह फिल्म न केवल समाज के पिछड़े वर्ग की कहानी बताती है, बल्कि यह ब्राह्मणों के द्वारा दलितों पर किए गए अत्याचारों का भी सच सामने लाती है। फिल्म का उद्देश्य समाज के उन अंधेरे पहलुओं को उजागर करना है, जिन्हें छुपाया गया है।

अद्वितीय अभिनय और तकनीकी पक्ष

फिल्म में प्रतीक गांधी और पत्रलेखा के अभिनय की सराहना की जा रही है। प्रतीक गांधी ने ज्योतिबा फुले के किरदार में जो गहराई और समर्पण दिखाया है, वह दर्शकों को प्रभावित करता है। पत्रलेखा ने सावित्री फुले के रूप में एक सशक्त महिला का चित्रण किया है, हालांकि शुरुआत में उनकी अभिनय शैली में कुछ कठिनाइयाँ थीं। सहायक कलाकारों में विनय पाठक और एलेक्स ओ नील का काम भी प्रभावशाली रहा है।

फिल्म ‘फुले’ न केवल एक ऐतिहासिक कहानी है, बल्कि यह समाज को समानता और शिक्षा के महत्व को समझाने का एक अहम प्रयास है। इस फिल्म को हर भारतीय को देखना चाहिए, खासकर छात्रों को, ताकि वे समाज में समानता की भावना को समझ सकें। यह फिल्म शिक्षा, सामाजिक समरसता और संघर्ष के महत्व को दर्शाते हुए भारतीय सिनेमा में एक नया आयाम प्रस्तुत करती है।

Rita Sharma

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