अब लैब में तैयार होंगे स्पर्म और एग, इनफर्टिलिटी से जूझ रहे करोड़ों लोगों के लिए नई उम्मीद

By Hindustan Uday

🕒 Published 4 weeks ago (9:04 PM)

नई दिल्ली। दुनिया की गिरती प्रजनन दर और बढ़ती इनफर्टिलिटी की चुनौती के बीच जापान के वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक की दिशा में कदम बढ़ा दिया है, जो भविष्य में करोड़ों कपल्स, समलैंगिक जोड़ों और कैंसर पीड़ितों के लिए संतान प्राप्ति का रास्ता खोल सकती है। ओसाका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर कात्सुहिको हायाशी ने दावा किया है कि आने वाले 7 वर्षों में लैब में स्पर्म और एग तैयार करने की तकनीक पूरी तरह विकसित हो जाएगी।

क्या है इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG)?

इस क्रांतिकारी तकनीक का नाम है — इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG)। इसके जरिए वैज्ञानिक किसी व्यक्ति की त्वचा या रक्त कोशिकाओं से स्टेम सेल्स बनाते हैं, जिन्हें बाद में जर्म कोशिकाओं में बदल दिया जाता है। यही जर्म कोशिकाएं आगे चलकर स्पर्म या एग में परिवर्तित होती हैं। इस तकनीक से जैविक रूप से संतान उत्पन्न करना संभव हो सकता है, चाहे वह व्यक्ति कभी भी प्राकृतिक रूप से माता-पिता बनने में असमर्थ रहा हो।

चूहों पर प्रयोग सफल

प्रो. हायाशी की टीम ने चूहों पर यह प्रयोग सफलतापूर्वक किया है। उन्होंने एक ऐसा चूहा तैयार किया है, जिसके दो पिता हैं – यह समलैंगिक जोड़ों के लिए भी संतान प्राप्ति की उम्मीद बनाता है। उन्होंने यह भी बताया कि दुनिया भर से उन्हें इनफर्टिलिटी से जूझ रहे मरीजों के ईमेल आते हैं, जो इस तकनीक को लेकर बेहद उत्साहित हैं।

लैब में इंसानी स्पर्म और एग बनना अब दूर नहीं

ओसाका यूनिवर्सिटी के अलावा कैलिफोर्निया की स्टार्टअप कंपनी Conception Biosciences भी इस दिशा में तेजी से काम कर रही है। कंपनी के CEO मैट क्रिसिलॉफ के अनुसार, लैब में स्पर्म और एग बनाने की क्षमता जनसंख्या संकट को हल करने में बड़ी भूमिका निभा सकती है। इस स्टार्टअप को OpenAI के को-फाउंडर सैम ऑल्टमैन का भी समर्थन मिला है।

अभी भी कुछ वैज्ञानिक चुनौतियाँ

हालांकि तकनीक तेजी से विकसित हो रही है, लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव एग बनाना अभी भी सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य है। प्रो. हायाशी के मुताबिक, महिलाओं की कोशिकाओं से स्पर्म बनाना फिलहाल एक तकनीकी चुनौती बनी हुई है, मगर असंभव नहीं। एडिनबर्ग यूनिवर्सिटी और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने भी इस रिसर्च को सराहा है, मगर साथ ही यह चेतावनी भी दी है कि तकनीक को पहले पूरी तरह सुरक्षित साबित करना होगा।

नैतिकता और सुरक्षा का सवाल

प्रो. हायाशी ने यह स्पष्ट किया कि भले ही उन्होंने दो पुरुषों से एक चूहा बनाया हो, लेकिन यह स्वाभाविक नहीं था। विज्ञान में सफलता के साथ नैतिकता और सुरक्षा का संतुलन बनाए रखना बेहद ज़रूरी है। उनका कहना है कि जब हम प्रकृति के विरुद्ध जाकर जीवन रचते हैं, तो हमें हर कदम पर ज़िम्मेदारी से काम लेना होगा।

इस रिसर्च के सफल होने पर दुनिया में प्रजनन की परिभाषा ही बदल सकती है। इनफर्टिलिटी से जूझ रहे लोगों को संतान प्राप्ति की आशा जगेगी और समलैंगिक व उम्रदराज जोड़ों को भी मातृत्व-पितृत्व का अनुभव मिल सकेगा। लेकिन अभी यह तकनीक पूरी तरह आम लोगों तक पहुंचने में कम से कम 5 से 7 साल का वक्त ले सकती है।

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