डेनमार्क में हाल ही में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां जन्म के केवल एक घंटे बाद ही नवजात बच्ची को उसकी मां से अलग कर दिया गया। अधिकारियों ने बच्ची को फोस्टर केयर में भेज दिया, जबकि यह कार्रवाई एक विवादित टेस्ट के आधार पर की गई थी, जिसे पहले ही इनुइट मूल की महिलाओं पर लागू करने से रोका जा चुका था।
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टेस्ट जो बन गया विवाद का कारण
18 साल की इवाना निकोलिन ब्रॉनलुंड ग्रीनलैंड की निवासी हैं और हैंडबॉल खिलाड़ी रह चुकी हैं। इवाना ने 11 अगस्त को कोपेनहेगन के पास एक अस्पताल में अपनी बेटी अवियाजा-लूना को जन्म दिया। जन्म के केवल 60 मिनट बाद ही स्थानीय अधिकारियों ने बच्ची को उनसे अलग कर दिया।
इवाना पर ‘पैरेंटिंग कंपिटेंसी टेस्ट (FKU)’ लागू किया गया, जबकि इस टेस्ट को मई 2025 में इनुइट परिवारों पर इस्तेमाल करने से रोक दिया गया था। इसके बावजूद अधिकारियों ने अप्रैल से ही यह प्रक्रिया शुरू कर दी थी और जून में इसे पूरा किया गया। जन्म से पहले इवाना को ही बता दिया गया था कि बच्ची को जन्म के तुरंत बाद उनसे छीन लिया जाएगा।
मां-बच्ची की पहली और आखिरी मुलाकात
इवाना ने बताया कि वह डिलीवरी नहीं करना चाहती थीं, क्योंकि उन्हें पता था कि इसके बाद उनकी बेटी उनसे छीन ली जाएगी। जन्म के बाद इवाना को बच्ची से केवल एक घंटे के लिए मिलने की अनुमति मिली। इस दौरान भी वे अपनी बेटी को गोद में नहीं ले सकीं और न ही उसकी देखभाल कर सकीं, क्योंकि स्टाफ का कहना था कि बच्ची ‘थक गई’ है।
पुराना ट्रॉमा बना फैसला
अधिकारियों का कहना है कि इवाना को उनके अतीत के अनुभवों के कारण मां बनने के लिए उपयुक्त नहीं माना गया। बच्ची के पिता यौन शोषण के मामले में जेल में हैं। इसी आधार पर बच्ची को इवाना से अलग कर दिया गया। अधिकारियों ने यह भी कहा कि इवाना ‘ग्रीनलैंडिक नहीं हैं’, इसलिए बैन उनके मामले पर लागू नहीं होता।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया
इस घटना ने ग्रीनलैंड, डेनमार्क, आइसलैंड और अन्य देशों में विरोध की लहर पैदा कर दी। कई मानवाधिकार संगठन सड़कों पर उतर आए हैं। डेनमार्क की सामाजिक मामलों की मंत्री सोफी हेस्टॉर्प एंडरसन ने कहा कि स्थानीय प्रशासन को जवाब देना होगा, क्योंकि कानून स्पष्ट है और इनुइट परिवारों पर यह टेस्ट लागू नहीं होना चाहिए।
अभी इवाना को अपनी बेटी से केवल पंद्रह दिन में एक बार, दो घंटे के लिए मिलने की अनुमति दी गई है। मामला 16 सितंबर को अदालत में सुना जाएगा। कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस फैसले से मां और बच्ची दोनों को गंभीर नुकसान हो रहा है।
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