🕒 Published 1 week ago (9:45 AM)
नई दिल्ली:राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत की गुरुवार को हरियाणा भवन में मुस्लिम समाज के 40 धर्मगुरुओं के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। यह बैठक ढाई घंटे से ज्यादा चली और इसमें कई संवेदनशील सामाजिक और धार्मिक मुद्दों पर खुलकर संवाद हुआ। इसमें ऑल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी समेत प्रमुख मुस्लिम बुद्धिजीवी और मौलाना शामिल हुए।
समाज को जोड़ने की दिशा में एक और प्रयास
यह बैठक आरएसएस द्वारा विभिन्न समुदायों के साथ संबंध मजबूत करने और आपसी समझ बढ़ाने के लिए जारी संवाद का हिस्सा मानी जा रही है। इस पहल का उद्देश्य दोनों समुदायों के बीच बढ़ते मतभेदों को दूर करना और सौहार्द की भावना को बढ़ावा देना है।
बैठक में क्या बोले मौलाना और मुस्लिम प्रतिनिधि
लखनऊ से आए टीले वाली मस्जिद के शाही इमाम मौलाना सैय्यद फ़ज़लुल्ल मन्नान रहमानी ने कहा कि पिछले 100 वर्षों में पहली बार इस तरह की सकारात्मक बैठक संघ प्रमुख के साथ हुई। उन्होंने बताया कि पूरी बातचीत बेहद सौहार्दपूर्ण वातावरण में हुई, जहां मोहन भागवत ने सभी की बातों को पूरी गंभीरता और धैर्य के साथ सुना।
फिरोज बख्त की स्पष्ट राय
बैठक में शामिल मुस्लिम बुद्धिजीवी फिरोज बख्त अहमद ने भी अपनी राय रखते हुए कहा कि वर्तमान में बीजेपी में जो मुस्लिम चेहरे दिखते हैं, वे मुस्लिम समाज का विश्वास हासिल नहीं कर पाए हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि आरएसएस को ऐसे मुस्लिम प्रतिनिधियों को आगे लाना चाहिए जो जमीनी स्तर पर मुस्लिम समाज की भलाई के लिए लगातार कार्य कर रहे हों और जिन्हें समाज का भरोसा भी हो।
उन्होंने मोहन भागवत के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि भारत के हिंदू और मुस्लिमों का डीएनए एक ही है। बख्त ने वक्फ बोर्ड में हुए सुधार को भी एक सकारात्मक और सराहनीय कदम बताया।
किस मुद्दे पर हुई चर्चा
बैठक में हिंदू-मुस्लिम समुदायों के बीच एकता और शांति को बनाए रखने के उपायों पर विचार किया गया। साथ ही यह भी चर्चा हुई कि समाज को बांटने वाली ताकतों को कैसे रोका जाए और एक समरस सामाजिक वातावरण कैसे बनाया जाए।
संघ के शीर्ष नेतृत्व की मौजूदगी
इस चर्चा में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के साथ संघ के सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले और राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के प्रमुख इंद्रेश कुमार भी शामिल रहे। बैठक का मुख्य उद्देश्य विभिन्न समुदायों के बीच विश्वास का माहौल तैयार करना था।
भागवत का पहले का बयान भी आया चर्चा में
बैठक से पहले मंगलवार को एक सार्वजनिक मंच से मोहन भागवत ने कहा था कि भारत में भले ही अनेक पंथ और संप्रदाय हों, लेकिन परंपरा रही है कि हमारे बीच संवाद होता है, संघर्ष नहीं। उन्होंने यह भी कहा था कि भारत में परिवर्तन कभी बलपूर्वक या शिक्षा और नीति थोपकर नहीं किया गया, यही हमारी सांस्कृतिक विशेषता है।
सामाजिक समरसता की ओर बढ़ता कदम
यह बैठक भारत के दो प्रमुख समुदायों के बीच सौहार्द, आपसी समझ और विश्वास को गहराने का एक महत्वपूर्ण प्रयास रही। ऐसा माना जा रहा है कि इस तरह की बैठकों से समाज में फैली गलतफहमियां दूर होंगी और आगे चलकर हर राज्य में ऐसे संवाद का सिलसिला जारी रहेगा।