नई दिल्ली, 16 अक्टूबर 2025 सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस सूर्यकांत ने विवाह संस्था को लेकर एक अहम और विचारोत्तेजक टिप्पणी की है। उन्होंने कहा कि इतिहास में अक्सर शादी को महिलाओं के दमन के औजार के रूप में इस्तेमाल किया गया, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं और कानूनों की मदद से विवाह एक समानता और सम्मान पर आधारित साझेदारी की ओर बढ़ रहा है।
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सेमिनार में जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी
यह बयान उन्होंने “क्रॉस-कल्चरल पर्सपेक्टिव्स” विषय पर आयोजित एक सेमिनार में दिया, जिसमें इंग्लैंड और भारत में पारिवारिक कानूनों के बदलते रुझानों और चुनौतियों पर चर्चा हुई । उन्होंने कहा कि “यह एक असहज सच है कि विवाह संस्था को लंबे समय तक महिलाओं के नियंत्रण और शोषण के साधन के रूप में इस्तेमाल किया गया। लेकिन अब न्यायपालिका और विधायिका मिलकर इसे एक बराबरी वाले रिश्ते में बदलने की दिशा में काम कर रहे हैं।”
भारत में विवाह की धारणा और बदलाव
- जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत में पहले विवाह को सिर्फ एक धार्मिक बंधन माना जाता था, कोई क़ानूनी अनुबंध नहीं।
- औपनिवेशिक काल से पहले पारिवारिक संबंधों को लिखित क़ानूनों से ज्यादा सामाजिक और नैतिक मानदंडों से नियंत्रित किया जाता था।
- अब समय के साथ बदलाव हो रहा है और महिलाओं के अधिकारों को क़ानूनी संरक्षण दिया जा रहा है।
विदेशी तलाक और विवाह से जुड़ी चुनौतियाँ
अंतरराष्ट्रीय विवाहों और विदेशी अदालतों द्वारा दिए गए तलाक़ पर बोलते हुए उन्होंने कहा कि
- आज की वैश्विक दुनिया में पति-पत्नी अक्सर अलग-अलग देशों में रहते हैं, जिससे विदेशी तलाक की वैधता एक जटिल मसला बन जाता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों को लेकर स्पष्ट दिशा-निर्देश जारी किए हैं।
उन्होंने स्पष्ट किया:
“अगर कोई विदेशी फैसला धोखाधड़ी, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन या भारतीय कानूनों के खिलाफ हो, तो उसे भारत में मान्यता नहीं दी जा सकती।”
बच्चों से जुड़े मामलों में विशेष सतर्कता ज़रूरी
बच्चों से जुड़े अंतरराष्ट्रीय विवादों पर जस्टिस सूर्यकांत ने कहा:
- ऐसे मामले सबसे ज्यादा संवेदनशील और जटिल होते हैं।
- अदालतों को “कॉमिटी ऑफ कोर्ट्स” के सिद्धांत को अपनाना चाहिए – यानी अलग-अलग देशों की अदालतें आपसी सम्मान और सहयोग के साथ निर्णय लें।
- बच्चे का कल्याण ही सर्वोपरि होना चाहिए, किसी देश के कानून या तकनीकी प्रक्रिया से ज्यादा।
जस्टिस सूर्यकांत की टिप्पणी केवल भारत नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर विवाह और परिवार कानूनों के बदलते स्वरूप को रेखांकित करती है। यह स्वीकार करना कि विवाह संस्था ने ऐतिहासिक रूप से महिलाओं पर नियंत्रण का काम किया है, अपने आप में एक ईमानदार और सुधारवादी सोच को दर्शाता है। भारत की न्यायपालिका अब इस संस्था को एक समानता आधारित, पारदर्शी और संतुलित संबंध में बदलने के लिए सक्रिय भूमिका निभा रही है।
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