‘माफी मांगो या मणिपुर छोड़ो’
भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर एक बार फिर सुलग उठा है । मंगलवार को राज्य के कई जिलों में लोगों ने जमकर प्रदर्शन किया । प्रदर्शनकारियों ने राज्यपाल के खिलाफ ‘माफी मांगो या मणिपुर छोड़ो’ जैसे नारे लगाए। प्रदर्शनकारियों ने मंगलवार को जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया और जिला चुनाव कार्यालय को निशाना बनाया । प्रदर्शनकारियों ने कई जिलों में केंद्र सरकार के कार्यालयों पर ताले जड़ दिए । इंफाल, बिष्णुपुर, और नाम्बोल जैसे जिलों में लोगों ने ताले जड़े, मार्च निकाले और मानव श्रृंखला बनाई ।
इस बार बवाल की वजह एक गोली या हमला नहीं, बल्कि एक ‘शब्द’ है – ‘मणिपुर’। जी हां, मणिपुर जो इस राज्य की पहचान,उसकी अस्मिता, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर है। आरोप है कि सुरक्षाबलों ने कागज से ढकने को कहा था । इस घटना को मेइती बहुल इंफाल घाटी में मणिपुर की अस्मिता पर हमला माना गया । और बस यहीं से विरोध शुरू हुआ और देखते ही देखते विरोध ने उग्र रूप ले लिया। । ‘मणिपुर’ शब्द को ढकना एक छोटी घटना हो सकती है, लेकिन यह राज्य की पहचान को ढकने जैसा महसूस हुआ और यही गुस्से की असली वजह है।
दरअसल मामला 20 मई का है । उखरूल जिले में शिरुई लिली उत्सव मनाया जा रहा था । सरकार ने इस उत्सव को कवर करने के लिए पत्रकारों को बुलाया था । सभी पत्रकार एक सरकारी बस से उत्सव की कवरेज करने जा रहे थे । आरोप है कि सुरक्षाबलों ने सूचना एवं जनसंपर्क विभाग (DIPR) के कर्मचारियों को बस के शीशे पर लिखा “मणिपुर” शब्द सफेद कागज से ढकने के लिए मजबूर किया।
मणिपुर शब्द ढकने का मामला लोगों के लिए सिर्फ प्रशासनिक आदेश नहीं थी, बल्कि एक प्रतीकात्मक अपमान था । राज्य की पहचान को छिपाने की कोशिश को कई लोगों ने मणिपुर के विघटन की शुरुआत माना । कोकोमी (Coordinating Committee on Manipur Integrity) जैसे संगठनों ने इसे मणिपुर की अखंडता के खिलाफ साजिश करार दिया।
पूर्व मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने शांति और संवाद की अपील की है। उन्होंने राज्यपाल से प्रदर्शनकारियों से बातचीत की पहल करने को कहा है। कांग्रेस नेता ओकराम इबोबी सिंह ने साफ कहा है कि मणिपुर का नाम हटवाना किसी सक्षम अधिकारी के आदेश के बिना संभव नहीं। उन्होंने ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की और राज्य की ऐतिहासिक पहचान की याद दिलाई।
एक सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने गृह मंत्रालय से मिलकर सिर्फ इस घटना पर ही नहीं, बल्कि राज्य में नार्को-आतंकवाद, अवैध आप्रवासन, अफीम की खेती और कानून व्यवस्था पर भी चिंता जताई। इसका संकेत है कि राज्य में यह संकट सतही नहीं बल्कि बहुत गहराई वाला है।
क्यों बना ‘मणिपुर’ शब्द विवाद की जड़?
मणिपुर की विविधता और जातीय संघर्ष की पृष्ठभूमि पहले से ही संवेदनशील है। किसी भी प्रतीक, चाहे वह झंडा हो, भाषा हो, या नाम को छेड़ने की कोशिश तनाव को जन्म देती है। यह घटना मेइती और अन्य समुदायों के बीच पहले से चल रहे विश्वास संकट को और गहरा कर सकती है।
क्या आगे का रास्ता है?
राज्य सरकार को दमन का नहीं बातचीत का रास्ता अपनाए।
राज्यपाल और प्रशासन को अपनी भूमिका पारदर्शी और स्पष्ट रखनी चाहिए।
लोगों की भावनाओं का सम्मान करते हुए सुलह की कोशिश की जानी चाहिए।
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