जम्मू-कश्मीर में हालिया राज्यसभा चुनावों के नतीजे ने नेशनल कॉन्फ्रेंस (NC) के लिए अप्रत्याशित झटका दिया है। पार्टी के उम्मीदवार इमरान नबी डार चौथी सीट जीतने में नाकाम रहे। मुख्यमंत्री और एनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इस हार को ‘धोखा’ करार दिया है। यह स्थिति 14 साल बाद राजनीतिक इतिहास का दोहराव है, जब 2011 में बीजेपी विधायकों की क्रॉस-वोटिंग ने एनसी को नुकसान पहुंचाया था।
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चौथी सीट पर मिली हार
राज्यसभा चुनावों के लिए शुक्रवार को हुए मतदान में इमरान नबी डार को 22 वोट मिले। जीत के लिए जरूरी 29 वोटों से यह संख्या सात कम थी। इसके मुकाबले भाजपा के जम्मू-कश्मीर इकाई के अध्यक्ष सतीश शर्मा ने 28 विधायकों के समर्थन के बावजूद 32 वोट हासिल कर चौथी सीट अपने नाम की। चुनाव प्रक्रिया में डार के पक्ष में पड़े तीन वोट अमान्य घोषित कर दिए गए।
भाजपा को कैसे मिले अतिरिक्त वोट
जम्मू-कश्मीर विधानसभा में कुल 88 सीटें हैं। एनसी के पास अपने सहयोगी दल कांग्रेस (6), माकपा (1) और 5 निर्दलीय विधायकों के समर्थन से कुल 53 वोट थे, जिससे पहले तीन राज्यसभा सीटों पर जीत तय थी। भाजपा के पास 28 विधायक थे और गैर-भाजपा विपक्ष के पास केवल 6 वोट थे। संख्या के लिहाज से एनसी के पास पहले दो उम्मीदवारों की जीत के लिए पर्याप्त वोट थे, लेकिन चौथी सीट के लिए उन्हें सहयोगियों और निर्दलीयों का समर्थन जरूरी था।
एनसी की उम्मीदें और वास्तविकता
पार्टी को उम्मीद थी कि चौथी सीट के लिए 30 में से 29 वोट हासिल होंगे। लेकिन गिनती के बाद एनसी उम्मीदवार जीएस ओबेरॉय को 31 और इमरान नबी डार को केवल 22 वोट मिले। सात अपेक्षित अतिरिक्त वोटों में से चार भाजपा के सतीश शर्मा को मिले और तीन वोट अमान्य घोषित हुए।
उमर अब्दुल्ला की प्रतिक्रिया
चौथी सीट पर हार के बाद मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा कि यह परिणाम धोखे का नतीजा है। उन्होंने सवाल उठाया कि भाजपा को अतिरिक्त चार वोट कहां से मिले और किसने जानबूझकर वोटों का गलत इस्तेमाल किया। उनका मानना है कि अंतिम समय में एनसी को छोड़ दिया गया।
क्रॉस-वोटिंग का पुराना इतिहास
राज्यसभा चुनावों में क्रॉस-वोटिंग जम्मू-कश्मीर की राजनीति में नया नहीं है। 2011 में विधान परिषद चुनाव में भाजपा के 11 विधायकों में से 7 ने पार्टी व्हिप का उल्लंघन कर एनसी उम्मीदवार को वोट दिया था। 1996 में एनसी के दो विधायकों की गलती से भाजपा के दयाकृष्ण कोटवाल की जीत हुई थी। 2003 में त्रिलोचन सिंह वज़ीर को कांग्रेस-पीडीपी गठबंधन के विधायकों के क्रॉस-वोट का फायदा मिला।
कांग्रेस और निर्दलीय विधायकों की भूमिका
जम्मू-कश्मीर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता रविंदर शर्मा ने कहा कि यदि एनसी अपने निर्दलीय सहयोगियों के समर्थन के बावजूद वोट मैनेज नहीं कर पाई, तो कांग्रेस कैसे करती। यह बयान उस स्थिति को दर्शाता है कि राज्य में राजनीतिक सहयोग और रणनीति कितनी महत्वपूर्ण है।
आप विधायक का बयान
इस चुनावी उठापटक के बीच आप पार्टी के विधायक मेहराज मलिक ने जेल से बयान जारी किया। उन्होंने कहा कि उन्होंने एनसी के पक्ष में वोट दिया, लेकिन पार्टी के कुछ नेताओं ने उन पर सवाल उठाए। मलिक वर्तमान में जम्मू-कश्मीर पब्लिक सेफ्टी एक्ट (PSA) के तहत कठुआ जेल में हैं। उनके अनुसार, एनसी इस सीट को जीतने के लिए गंभीर नहीं थी और कुछ नेता पहले से ही भाजपा के साथ समझौता कर चुके थे।
राजनीतिक हलचल और सोशल मीडिया प्रतिक्रियाएं
मेहराज मलिक के बयान का समर्थन अपनी पार्टी के नेता जुनैद अज़ीम मट्टू ने किया और इसे शर्मनाक तथा हास्यास्पद करार दिया। इस घटना ने सोशल मीडिया और राजनीतिक हलकों में बड़ा हलचल मचा दी है।
भविष्य में राज्यसभा चुनावों पर असर
एनसी की यह हार पार्टी के लिए रणनीतिक चुनौती बन सकती है। भविष्य में पार्टी को अपनी वोट मैनेजमेंट और सहयोगियों के समर्थन पर अधिक ध्यान देना होगा। यह हार जम्मू-कश्मीर की राजनीति में एक नए अध्याय की शुरुआत कर सकती है।
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