सम्मान की तलाश में टूटा ठाकरे परिवार का गठबंधन! 20 साल पहले जो टूटा था… क्या ठाकरे परिवार फिर होगा एक?

By Hindustan Uday

🕒 Published 3 months ago (5:43 AM)

महाराष्ट्र की राजनीति में एक बार फिर बड़ा बदलाव संभव है। करीब दो दशक बाद ठाकरे परिवार के दो प्रमुख चेहरे—राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे—एक बार फिर साथ आने के संकेत दे रहे हैं।

एमएनएस प्रमुख राज ठाकरे ने हाल ही में सार्वजनिक तौर पर कहा कि अब समय आ गया है कि पुराने मतभेद भुलाए जाएं और महाराष्ट्र के हित में एकजुट हुआ जाए। इस पर उद्धव ठाकरे ने भी नरम रुख अपनाते हुए कहा कि मामूली झगड़े पीछे छोड़े जा सकते हैं, अगर इससे राज्य का भला होता है।

साल 2005: जब दोनों भाइयों के रास्ते अलग हुए

18 दिसंबर 2005 को शिवाजी पार्क जिमखाना में राज ठाकरे ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर शिवसेना छोड़ने का ऐलान किया था। उन्होंने कहा था, “सम्मान मांगा था, लेकिन अपमान मिला।”
राज ठाकरे कभी शिवसेना के सबसे सक्रिय और तेजतर्रार नेता माने जाते थे, जिन्हें बाल ठाकरे का राजनीतिक उत्तराधिकारी भी माना जा रहा था। लेकिन 1995 के बाद जब पार्टी में उद्धव ठाकरे का प्रभाव बढ़ा, तो राज धीरे-धीरे हाशिये पर चले गए।

उद्धव की चढ़ती सियासी सीढ़ी, राज की नाराजगी

1997 के बीएमसी चुनावों में टिकट वितरण को लेकर पहली बार दोनों भाइयों के बीच मतभेद खुले तौर पर सामने आए। पार्टी में उद्धव की भूमिका बढ़ती गई और 2003 में राज ठाकरे ने खुद उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसने सभी को चौंका दिया। लेकिन उसके कुछ साल बाद, 2006 में, राज ने अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) का गठन कर लिया।

राज ठाकरे की पार्टी को नहीं मिल सका राज्यव्यापी जनाधार

एमएनएस ने 2009 में 13 सीटें जीतकर अच्छी शुरुआत की, लेकिन इसके बाद उसका ग्राफ गिरता चला गया। 2014 और 2019 में पार्टी एक-एक सीट पर सिमट गई और 2024 में तो खाता भी नहीं खुला।

उद्धव ठाकरे की पार्टी भी संघर्ष में

उद्धव ठाकरे को 2022 में तब बड़ा झटका लगा, जब एकनाथ शिंदे की बगावत के चलते उनकी सरकार गिर गई और पार्टी दो हिस्सों में बंट गई। चुनाव चिह्न और पार्टी का नाम भी हाथ से गया। हालांकि 2024 लोकसभा चुनाव में उन्होंने शिवसेना (UBT) के बैनर तले 9 सीटें जीतकर वापसी की कोशिश की, लेकिन विधानसभा चुनाव में प्रदर्शन निराशाजनक रहा—20 सीटों पर ही जीत मिली, वहीं शिंदे गुट ने 57 सीटें जीतीं।

राजनीतिक प्रतिस्पर्धा से पारिवारिक मेल-मिलाप तक

बाल ठाकरे के निधन (2012) के बाद ही दोनों भाइयों के बीच मेल-मिलाप की कोशिशें शुरू हुई थीं, लेकिन राजनीतिक मंच पर कभी एक नहीं हो सके। 2019 में जब आदित्य ठाकरे ने वर्ली सीट से चुनाव लड़ा, तब राज ठाकरे ने वहां से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा, मगर 2024 में उद्धव ने राज के बेटे अमित ठाकरे को शिकस्त देने के लिए अपने उम्मीदवार को मैदान में उतार दिया।

क्या दोनों ठाकरे फिर साथ आएंगे?

बीजेपी, एनसीपी और शिंदे गुट के सामने शिवसेना (UBT) और एमएनएस की राजनीतिक जमीन लगातार खिसकती जा रही है। ऐसे में दोनों भाइयों का हाथ मिलाना न केवल एक प्रतीकात्मक कदम होगा, बल्कि महाराष्ट्र की सियासत को नया मोड़ भी दे सकता है।

राजनीति में कोई दरवाजा हमेशा के लिए बंद नहीं होता—शायद यही अब ठाकरे बंधुओं के रिश्ते को नई दिशा दे।

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