Miracle of Guruvar Fast गुरुवार का व्रत, भगवान विष्णु की कृपा पाने का सरल उपाय

Photo of author

By Sunita Singh

🕒 Published 1 month ago (4:50 PM)

पौराणिक मान्यता और शास्त्रों के अनुसार गुरुवार (बृहस्पतिवार) का दिन विशेष रूप से भगवान विष्णु को समर्पित माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु और देवगुरु बृहस्पति की आराधना करने का विधान है। ऐसी मान्यता है कि गुरुवार का विधिविधान से उपवास रखने और इस उपवास की कथा सुनने और पढ़ने से भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न होते हैं। इस व्रत को रखने वाले व्यक्ति की सभी मनोकामनाएं परिपूर्ण होती है।

गुरुवार व्रत अत्यंत फलदायी

भगवान विष्णु की कथा पढ़ने के पहले स्नान आदि करके पवित्र हो जाना चाहिए। क्यों कि ज्योतिष शास्त्र में बृहस्पति ग्रह को ज्ञान, बुद्धि, शिक्षा, विवाह और धन का कारक माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और व्रत करने से कुंडली में गुरु ग्रह मजबूत होता है, जो सकारात्मक परिणाम प्रदान करता है । भगवान विष्णु को सृष्टि का पालनहार और धन-ऐश्वर्य का दाता कहा जाता है। गुरुवार का व्रत रखने से घर में सुख-शांति और समृद्धि का आगमन होता है। जो भी व्यक्ति पैसों की समस्या से जूझ रहे हैं उनके लिए यह व्रत अत्यंत फलदायी माना जाता है।

 

गुरुवार व्रत कथा (Guru Vrat Katha)

गुरुवार की व्रत कथा न केवल पढ़ने वाले बल्कि सुनने वाले के लिए भी अत्यंत फलदायी होती है। गुरुवार की व्रत कथा कुछ इस प्रकार है। प्राचीन समय की बात है। भारतवर्ष में एक राजा राज्य करता था। वह बड़ा प्रतापी और दानी था। वह गरीबों और ब्राह्मणों की सेवा-सहायता को अपना धर्म मानता था । हमेशा धर्म कर्म के रास्ते पर चलता था। वह प्रतिदिन मंदिर में भगवान के दर्शन करने के लिए भी जाता था। लेकिन रानी को यह सब अच्छा नहीं लगता था । वह राजा को इन सभी कामों के लिए रोकती थी। एक दिन राजा जंगल में शिकार खेलने वन को गए हुए थे तो रानी और दासी महल में अकेली थी। तभी राजमहल में बृहस्पतिदेव साधु भेष में पहुंचे और उन्होंने रानी से भिक्षा मांगी। रानी तो पहले ही इन कामों को पसंद नहीं करती थी । रानी ने भिक्षा देने से मना कर दिया साथ ही कहा कि इस कार्य के लिए मेरे पतिदेव ही बहुत है।


रानी ने साधु से मांगा वरदान

रानी ने साधु महाराज से विनती की कि आप कुछ ऐसा कर दें कि हमारा सारा धन नष्ट हो जाए ताकि मैं चैन से रह सकूं। साधु रूप में बृहस्पतिदेव को अचंभा हुआ और रानी से बोले देवी कैसी विचित्र बात कर रही हो क्या कोई धन और संतान से दुखी होता है। यदि तुम्हारे पास अपार धन है तो भूखों को भोजन कराओ, प्याऊ लगवाओ, ब्राह्मणों को दान दो, कुआं, तालाब, बावड़ी बाग-बगीचे आदि का निर्माण कराओ। मंदिर, पाठशाला धर्मशाला बनवाकर दान दो। गरीबों की कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ। यज्ञ आदि कर्म करो अपने धन को शुभ कार्यों में खर्च करो। ऐसे करने से तुम्हारा नाम परलोक में सार्थक होगा एवं होगा एवं स्वर्ग की प्राप्ति होगी। लेकिन रानी पर उपदेश का कोई प्रभाव न पड़ा।

जब नष्ट हो गई धन संपत्ति

रानी की बात सुनकर साधु के वेश में बृहस्पतिदेव बोले यदि तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं तुम्हें जो भी बताउं तुमको वहीं करना पड़ेगा । सात गुरुवार तक घर को गोबर से लीपना, कपड़े धोबी के यहां धुलवाना, भोजन में मांस मदिरा का सेवन करना इससे धन संपत्ति नष्ट हो जाएगी और तुम आराम से रह पाओगी, इतना कह कर साधु महाराज अंतर्धान हो गए। रानी ने साधु महाराज की बातों पर अमल करना शुरू कर दिया। इस रानी ने ऐसा सिर्फ 3 गुरुवार ही किया था कि उनकी सारी धन संपत्ति नष्ट हो गई । परिवार भोजन के लिए तरसने लगा। इतनी गरीबी आ गई कि राजा को रोजी रोटी कमाने के लिए परदेश में जाना पड़ा। परदेश में राजा जंगल से लकड़ी काटकर लाता और उसे बेचकर जीवन यापन करने लगा। इधर राजा के बिना रानी और दासी दुखी रहने लगी।

रानी को पड़ गए खाने के लाले

एक वक्त ऐसा आया कि 7 दिन तक रानी और दासी को भूखे रहना पड़ा । तब रानी ने अपनी दासी से कहा कि पास ही नगर में उसकी बहन रहती है। वह बहुत ही धनवान है तू उसके पास जा और खाने के लिए कुछ ले आ ताकि थोड़ा बहुत गुजर बसर हो जाए। दासी रानी के बहन के पास गई उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस वक्त गुरु बृहस्पति भगवान की व्रत कथा सुन रही थी। जब दासी रानी की बहन के पास गई और अपनी रानी का संदेश दिया तब रानी की बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया, तो दासी बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया।

बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं

दासी ने रानी को सारी बात बताई, तब दासी की बात सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा। उधर रानी कि बहन से सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी लेकिन मैं उससे नहीं बोली, कथा सुन कर और पूजन समाप्त कर रानी की बहन अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, मैं गुरुवार व्रत कर रही थी जब तुम्हारी दासी गई तब मैं कथा सुन रही थी। जब तक कथा होती है तब तक न उठते हैं और न ही बोलते हैं इसलिए नहीं बोली। कहो दासी क्यों आई थी, तब रानी बोली तुम हमारे बारे में सब कुछ जानती हो कि घर में खाने को कुछ भी नहीं है। अपनी बहन को अपनी व्यथा बताते हुए रानी की आंखें भर आई और उसने अपनी सभी बातें बहन को बता दी। रानी की बहन ने बोला बृहस्पति भगवान सबकी मनोकामना पूर्ण करते हैं। देखो शायद तुम्हारे घर अनाज रखा हो। बहन की बात सुनकर रानी को विश्वास नहीं हुआ। बहन के कहने पर रानी ने अपनी दासी को रसोई में भेजा तो उन्हें सचमुच एक अनाज से भरा घड़ा मिला।यह देख दासी अचंभित हो गई उसने रानी को आकर सब बता दिया और कहा कि जब हमको अनाज नहीं मिलता है तो हम व्रत करते हैं तो क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछने जाएं ताकि हम भी गुरुवार व्रत कथा करें।

व्रत के दौरान पीला भोजन करें

तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार की कथा के बारे में पूछा। रानी की बहन ने बताया कि बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का से केले की जड़ में पूजन करें, दीपक जलाएं और व्रत कथा सुने और व्रत के दौरान पीला भोजन ही करें, जिससे भगवान प्रसन्न होते हैं और मनोकामना पूर्ण करते हैं। व्रत और कथा की पूजन विधि बता कर रानी की बहन अपने घर लौट गई। एक सप्ताह बाद गुरुवार का दिन आया, तो रानी और दासी दोनों ने व्रत रखा। दासी घुड़साल में जाकर व्रत का सामान लेकर आई फिर केले की जड़ एवं विष्णु भगवान की पूजा करके कथा सुनी। दोनों ने व्रत तो रख लिया किंतु पीला भोजन कहां से आए। यह सोचकर दोनों बहुत दुखी हुई, लेकिन उन्होंने व्रत किया था इसलिए भगवान खुश थे। वह एक साधारण व्यक्ति के रूप में 2 थालों में सुंदर पीला भोजन लेकर आए और दासी को देकर बोले ये भोजन तुम्हारे लिए और तुम्हारी रानी के लिए है इसे तुम दोनों ग्रहण करना। इस प्रकार रानी और दासी गुरुवार का व्रत और पूजन करने लगी।

व्रत से रानी और दासी का यश, कीर्ति बढ़ने लगी

भगवान की कृपा से उनके पास धन संपत्ति आ गई। जिसके बाद रानी फिर से पहले की तरह आलसी हो गई तब दासी ने रानी से कहा कि पहले भी आलसी रहती थी इसलिए तुम्हें परेशानी होती थी और इसी के चलते सारा धन भी नष्ट हो गया था। अब जब फिर से धन मिला है तो आलस छोड़ दो। हमने बहुत मुसीबतें उठाने के पश्चात यह धन पाया है इसलिए इसका सदुपयोग करना चाहिए। दासी की बात रानी को समझ में आ गई और वह सभी शुभ कार्यों को करने लगी जिनसे पहले चिढ़ती थी। इस कार्यों से नगर में रानी और दासी का यश और कीर्ति बढ़ने लगी। इधर राजा दुखी होकर जंगल में पेड़ के नीचे बैठ गया और अपनी पुरानी बातों को याद करके रोने लगा। तभी गुरु भगवान साधु के रूप में लकड़हारे बने राजा के समीप आए और उनसे पूछने लगे कि किस चिंता में बैठे हो। तब लकड़हारे ने अपनी पूरी कहानी साधु को बता दी । तब साधु ने राजा को बताया कि तुम्हारी इस हालत की जिम्मेदार तुम्हारी रानी ही है। तुम्हारी रानी ने बृहस्पतिदेव का निरादर किया था । साधु ने राजा को कहा कि जीवन में सुख प्राप्ति के लिए बृहस्पतिवार के दिन व्रत कथा करो इससे तुम्हारे दुख दूर होंगे।

राजा ने किया गुरुवार व्रत

साधु महाराज ने राजा को कहा कि तुम गुरुवार के दिन चने और मुनक्का से केले के पेड़ और बृहस्पति भगवान का पूजन और व्रत कथा करो। साधु की बात सुनकर राजा चिंता में पड़ गया। राजा ने साधु महाराज को बोला मुझे लकड़ी बेचकर इतना पैसा नहीं मिलता है जिससे भोजन के उपरांत कुछ बचा सकूं। मैंने रात्रि में अपनी रानी को दुखी देखा है। मेरे पास कोई साधन भी नहीं जिससे मैं उसकी खबर जान सकूं। लकड़हारे की बात सुनकर साधु ने कहा तुम किसी बात की चिंता मत करो तुम रोजाना की तरह लकड़ी लेकर जाना, तुम्हें रोज से दोगुना धन मिलेगा जिससे पूजन के अलावा भोजन भी कर लोगे। धीरे-धीरे समय बीतता चला और गुरुवार का दिन आया राजा ज जंगल से लकड़ी काट कर शहर में बेचने गया। उसे उस दिन और दिनों से अधिक धन मिला। राजा ने सामान लाकर गुरुवार का व्रत किया, उस दिन से उसके सभी दुख दूर हुए। लेकिन जब अगला गुरुवार आया तो राजा व्रत करना भूल गया इस कारण गुरु भगवान नाराज हो गए। उस दिन उस नगर के राजा ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया था और शहर के लोगों को अपने घर में भोजन नहीं बनाने का आदेश दिया था। साथ ही यह भी कहा था कि जो भी राजा की आज्ञा को नहीं मानेगा उसे फांसी की सजा दे दी जाएगी।

जब खूंटी ने निगला हार

इस तरह राजा की आज्ञा से नगर के सभी लोग भोजन करने गए, लेकिन लकड़हारा कुछ देर से पहुंचा इसलिए राजा उसे अपने साथ ले गए और साथ में भोजन करा रहे थे। तब रानी की दृष्टि उस खूंटी पर पड़ी जिस पर उसका हार लटका हुआ था। उसे हार खूंटी पर दिखाई नहीं दिया। तब रानी ने निश्चय किया कि मेरा हार इस लकड़हारे ने चुरा लिया है। लकड़हारे को कारागार में डलवा दिया गया। कारागार में जाकर राजा बहुत दुखी हुआ और अपनी पुरानी बातों को याद करके रोने लगा।तभी साधु के रूप में बृहस्पति देव प्रकट हुए और उसकी दशा देखकर कहा तूने बृहस्पति देव की कथा नहीं की है इसी कारण तुझे यह दुख प्राप्त हुआ है। अब किसी प्रकार की चिंता मत कर गुरुवार के दिन तुझे कारागार के दरवाजे पर चार पैसे पड़े मिलेंगे उससे तू बृहस्पतिवार की कथा करना, तेरे सभी कष्ट दूर हो जाएंगे। बृहस्पतिवार के दिन उसे चार पैसे मिले उससे राजा बृहस्पति देव की कथा की । उस रात बृहस्पति भगवान उस नगर के राजा के स्वप्न में आकर कहा तूने जिस लकड़हारे को कारागार में बंद किया है उसे छोड़ देना वह निर्दोष है। अगर तू ऐसा नहीं करेगा तो मैं तेरा राज्य नष्ट कर दूंगा।

राजा अपने नगर को लौट आया

रात्रि में स्वप्न के बाद राजा प्रातकाल उठा और खूंटी पर हार लटका देकर लकड़हारे को बुलाकर क्षमा मांगी एवं सुंदर वस्त्र आभूषण भेंट कर उसे विदा किया। गुरु भगवान की आज्ञा अनुसार राजा अपने नगर को लौट गया। जब राजा नगर के निकट पहुंचा तो उसे पहले से अधिक बाग और धर्मशालाएं दिखी, तब राजा ने नगर वासियों से पूछा की यह किसने बनवाया है तो सभी ने रानी का नाम लिया। यह सुन राजा को बहुत आश्चर्य हुआ और गुस्सा भी आया। जब रानी ने यह खबर सुनी की राजा आ रहे हैं तब उसने दासी से कहा हे दासी देख राजा हमको कितनी बुरी हालत में छोड़ गए थे। राजा हमारी ऐसी हालत देखकर लौट ना जाए इसलिए तू दरवाजे पर खड़ी हो जा। रानी की आज्ञा अनुसार दासी दरवाजे पर खड़ी हो गई और जब राजा आए तो उन्हें अपने साथ ले आई। तब राजा ने तलवार निकाली और रानी से पूछा कि तुम्हें यह धन कैसे प्राप्त हुआ? तब रानी ने कहा यह सब धन संपत्ति हमें गुरु भगवान की कृपा से प्राप्त हुआ है। रानी की बात सुनकर राजा ने निश्चय किया कि हर दिन गुरु भगवान का व्रत करेगा और दिन में तीन बार कहानी कहेगा। अब हर समय राजा के दुपट्टे में चने की दाल बंधी रहती और दिन में तीन बार कहानी कहता।

बहन के घर पहुंचे राजा

एक रोज राजा ने अपनी बहन के घर जाने की सोची और घोड़े पर सवार होकर चल दिया। राजा अपनी बहन के घर पहुंच गया, बहन ने भाई की खूब आवभगत की । दूसरे रोज जब राजा जागा तो वह देखने लगा कि सब लोग भोजन कर रहे हैं, तब राजा ने अपनी बहन से पूछा ऐसा कोई मनुष्य है जिसने भोजन नहीं किया हो तब बहन बोली हे भैया यह देश ऐसा ही है पहले यहां के लोग भोजन करते हैं बाद में अन्य काम करते हैं। ऐसा कह कर बहन चली गई और सबसे पूछने लगी कि कोई ऐसा है जिसने भोजन नहीं किया हो, तब वह एक कुम्हार के घर गई जिसका लड़का बीमार था, उसे मालूम हुआ कि वहां किसी ने 3 दिन से भोजन नहीं किया है। बहन ने कुम्हार से अपने भाई की कथा सुनने के लिए आग्रह किया तो वह तैयार हो गया। राजा जाकर अपनी कथा कही जिसको सुनकर उसका लड़का ठीक हो गया। अब तो राजा की प्रशंसा होने लगी थी।

सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं भगवान

एक दिन राजा ने अपनी बहन से कहा बहन मैं अब मैं अपने घर जा रहा हूं। तुम भी तैयार हो जाओ। राजा की बहन ने अपने सास से भाई के साथ जाने की आज्ञा मांगी। तब उसकी सास बोली चली जा लेकिन अपने लड़के को मत ले जाना क्योंकि तेरे भाई की कोई संतान नहीं है। बहन ने अपने भाई से कहा हे भैया मैं तो चलूंगी परंतु कोई बालक नहीं जाएगा। तब राजा ने अपनी बहन से कहा जब कोई बालक नहीं जाएगा तो तुम ही चलकर क्या करोगी। राजा दुखी मन से नगर को लौटा और रानी को सब बात बता दिया। तब रानी ने कहा बृहस्पति भगवान ने हमें सब कुछ दिया है वह हमें संतान अवश्य देंगे। उसी रात बृहस्पति देव ने राजा को सपने में कहा हे राजा उठ सभी सोच त्याग दे तेरी रानी गर्भवती है। भगवान की बात सुनकर राजा बहुत खुश हुआ। नवें महीने में रानी के गर्भ से एक सुंदर पुत्र पैदा हुआ। तब राजा रानी से बोला हे रानी स्त्री बिना भोजन के रह सकती हैं लेकिन बिना कहे नहीं। इसलिए जब मेरी बहन आए तो तुम उसे कुछ मत कहना। रानी ने हां कर दी और जब राजा की बहन ने ये शुभ समाचार सुना तो बहुत खुश हुई और अपने भाई के यहां बधाई लेकर आई। तब रानी बोली घोड़ा चढ़कर तो नहीं आई गधा चढ़ी आई तब राजा की बहन बोली भाभी अगर मैं इस प्रकार ना कहती तो तुम्हें औलाद कैसे होती। बृहस्पति भगवान ऐसे ही हैं वो सबकी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं, जो सद्भावना पूर्वक बृहस्पतिवार का व्रत रखता है, कथा पढ़ता है, सुनता है एवं दूसरों को सुनाता है गुरु भगवान आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। कथा सुनने के बाद प्रसाद लेकर ही जाना चाहिए नहीं तो भगवान का निरादर होता है। कहते हैं कि अगर आप कथा पढ़ते समय अपना ध्यान यहां-वहां नहीं भटकाते हैं, तो माना जाता है कि आपकी अराधना सीधे भगवान तक पहुंचती है।

 

Leave a Comment