डेस्क, नई दिल्ली, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को त्रिविक्रम,चंपक या चम्पा द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के वामन और त्रिविक्रम,श्रीकृष्ण तथा श्रीराम अवतार की विशेष पूजा की जाती है। यह द्वादशी, भक्तों के लिए विशेष आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व रखता है। इस वर्ष यह पुण्य तिथि 7 जून 2025 को आ रही है।
इस दिन भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों की पूजा की जाती है। विशेष रूप से त्रिविक्रम, वामन, राम, और कृष्ण रूपों की आराधना का विधान है। चम्पा द्वादशी को विष्णु द्वादशी, राघव द्वादशी और रामलक्ष्मण द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह दिन मोक्ष, सौभाग्य और पापों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। त्रिविक्रम अवतार वह क्षण था जब एक बौने ब्राह्मण रूप में भगवान ने दानव राजा बलि से तीन पग में संपूर्ण सृष्टि मांग ली थी। वामन रूप से ही जब भगवान ने विशाल आकार धारण कर तीनों लोक नापे तो उसे ही त्रिविक्रम कहा गया। इसका संदेश है कि जब अहंकार बढ़ जाए तो विनम्रता (वामन) और मर्यादा (त्रिविक्रम) ही समाधान है।
शास्त्रों में कहा गया है कि इस दिन व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। त्रिविक्रम द्वादशी न केवल व्रत और पूजा का पर्व है, बल्कि जीवन को सरल, सात्विक और सफल बनाने का एक मंत्र है। इस दिन की पूजा से प्राप्त पुण्य जन्म-जन्मांतर तक साथ रहता है। इस दिन का हर क्षण ईश्वर को समर्पित करने से भक्त को न केवल इस लोक में सुख, बल्कि वैकुंठ लोक की प्राप्ति भी संभव है।
इस व्रत की कथा भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को सुनाई थी। भगवान श्रीकृष्ण ने कहा कि जो भी मनुष्य चम्पा द्वादशी पर श्रीकृष्ण और श्रीराम का नाम लेकर पूजा करता है, उसको हजार गायों के दान के समान पुण्य मिलता है। जो भी पूरी भक्ति और श्रद्धा से इस व्रत को करता है, उसको वैकुंठ धाम की प्राप्ति के साथ सांसारिक इच्छाएं भी पूर्ण होती हैं। “उपवास का अर्थ केवल भूखा रहना नहीं, बल्कि इंद्रियों पर नियंत्रण और आत्मा की शुद्धि है।”
ग्रंथों के अनुसार, इस दिन पवित्र नदियों जैसे गंगा, यमुना आदि में स्नान कर तिल मिश्रित जल से स्नान और तिल, अन्न का दान करने से अश्वमेध यज्ञ जितना पुण्य प्राप्त होता है। मथुरा और वृंदावन जैसे तीर्थ स्थलों पर इस दिन विशेष भीड़ उमड़ती है। इस दिन उपवास रखते हुए भगवान विष्णु का शंख में दूध और जल भरकर अभिषेक करने का विशेष महत्व है। इस अभिषेक में तुलसी पत्र का उपयोग किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि ऐसा करने से गोमेध यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है और व्यक्ति को जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है।
त्रिविक्रम द्वादशी पर क्या करें
चंपक द्वादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का चंपा के फूलों से श्रृंगार करने की परंपरा है। चंपक द्वादशी के अवसर पर चंपा के फूलों की पूजा का विशेष महत्व है। माना जाता है कि इससे भक्त को मनचाहे फल की प्राप्ति होती है। इस दिन भोजन, वस्त्र और घृत का दान सौभाग्य और पुण्य में वृद्धि करता है। भगवान श्रीकृष्ण को चंपा के फूल अतिप्रिय हैं।
एक लोकमान्यता के अनुसार, इस फूल पर कभी भी भंवरा या मधुमक्खी नहीं बैठते। यह फूल राधा और श्रीकृष्ण के दिव्य संबंध का प्रतीक माना गया है।
“चंपा तुझमें तीन गुण – रंग, रूप और वास,
अवगुण तुझमें एक ही – भंवर न आए पास।”
इस फूल का संबंध मर्यादा, त्याग और पवित्रता से है। श्रीकृष्ण और राधा के श्रृंगार में इसका उपयोग भक्तों को विष्णु लोक की प्राप्ति में सहायक माना गया है।
चम्पा के फूलों की महिमा
चम्पा के फूल से पूजा को अत्यंत शुभ माना गया है। यह फूल न केवल श्रीकृष्ण को प्रिय है, बल्कि इसे त्याग और सात्विकता का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि इस फूल पर न मधुमक्खी बैठती है, न तितली, क्योंकि यह राधा-कृष्ण की प्रेम मर्यादा का प्रतीक है। इसलिए इस दिन भगवान का चंपा फूलों से श्रृंगार कर उन्हें अर्पित करना विशेष फलदायी माना गया है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चंपा की कथा कुछ इस प्रकार है चंपा वृक्ष एक तपस्वी कन्या का रूप था। उसने भगवान श्रीहरि से विवाह की कामना की, लेकिन भगवान ने राधा जी की मर्यादा का हवाला देकर चंपा के अनुनय को अस्वीकार किया। तब चंपा ने कठोर तपस्या करके अपने फूलों को श्रीकृष्ण को समर्पित कर दिया। इसी वजह से इस फूल को पूजा के लिए पवित्र माना गया है।
वास्तुशास्त्र में चंपा को पवित्रता, सौभाग्य, और खुशहाली का प्रतीक माना गया है। इसे घर में लगाना शुभ होता है और इससे धन, सुख और वैभव की वृद्धि होती है।इस दिन घर में चंपा के पौधे लगाएं।
चंपक द्वादशी न केवल उपवास और पूजा का पर्व है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, पुण्य अर्जन और मोक्ष प्राप्ति का अवसर भी है। इस दिन श्रीविष्णु के अवतारों का स्मरण कर और चंपा के पुष्पों से पूजन कर हम अपने जीवन को अध्यात्म की ओर ले जा सकते हैं। यह दिन भक्तों के लिए श्रीहरि को प्रसन्न करने और उनके दिव्य लोक में स्थान पाने का माध्यम बनता है।
यह व्रत नारद पुराण, पद्म पुराण, और विष्णु धर्मोत्तर पुराण में वर्णित है। शास्त्रों में कहा गया है कि “जो भक्त चंपा के पुष्पों से विष्णु की पूजा करता है, वह दस जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है।”
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