Kargil Vijay Diwas : जब भारत के जांबाज़ों ने दुश्मन को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया

By Hindustan Uday

🕒 Published 1 week ago (1:24 PM)

नई दिल्ली: 26 जुलाई का दिन भारत के उन बहादुर सिपाहियों को समर्पित है जिन्होंने 1999 में कारगिल की ऊंची चोटियों पर दुश्मन से लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए। यह दिन “कारगिल विजय दिवस” के रूप में पूरे देश में गर्व और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। इस युद्ध में भारत के 527 से अधिक जवान वीरगति को प्राप्त हुए और 1300 से ज्यादा घायल हुए। इस सैन्य अभियान को “ऑपरेशन विजय” नाम दिया गया था।

क्यों मनाया जाता है कारगिल विजय दिवस?

भारत हर साल 26 जुलाई को कारगिल युद्ध में मिली जीत और सैनिकों के बलिदान को याद करता है। 1999 में इस दिन भारत ने पाकिस्तानी घुसपैठियों को कारगिल की पहाड़ियों से पूरी तरह खदेड़ दिया था। 2025 में यह गौरवशाली दिन 26वीं बार मनाया जा रहा है।

कारगिल युद्ध की शुरुआत और पृष्ठभूमि

यह युद्ध मई से जुलाई 1999 के बीच लड़ा गया था। सर्दियों के बाद जब बर्फ पिघलने लगी थी, तभी पाकिस्तानी सेना और आतंकी संगठनों ने कारगिल की ऊंची पहाड़ियों पर चुपके से कब्जा कर लिया था। भारतीय सेना को इसकी भनक स्थानीय चरवाहों की सूचना के बाद लगी। द्रास, बटालिक और टोलोलिंग जैसे क्षेत्रों में भारी घुसपैठ की पुष्टि हुई।

भारत का जवाब: ऑपरेशन विजय और ऑपरेशन सफेद सागर

भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय और वायुसेना ने ऑपरेशन सफेद सागर शुरू कर दिया। अत्यंत विषम परिस्थियों और दुर्गम इलाकों में सेना ने अदम्य साहस दिखाते हुए दुश्मनों को एक-एक कर पीछे हटने पर मजबूर किया। भारतीय जवानों ने जान की परवाह किए बिना ऊंची पहाड़ियों पर चढ़कर अपनी भूमि को फिर से आज़ाद करवाया।

वीरों की शौर्यगाथा

इस युद्ध में कैप्टन विक्रम बत्रा, लेफ्टिनेंट मनोज कुमार पांडे, ग्रेनेडियर योगेंद्र यादव जैसे कई रणबांकुरों ने अतुलनीय शौर्य का परिचय दिया। उनके बलिदान और वीरता ने उन्हें देश का नायक बना दिया। इनकी वीरगाथाएं आज भी युवाओं को प्रेरणा देती हैं।

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