🕒 Published 1 week ago (3:48 PM)
नई दिल्ली। राजस्थान के झालावाड़ जिले का पिपलोदी गांव इन दिनों गहरे शोक में डूबा हुआ है। शुक्रवार को एक सरकारी स्कूल की इमारत ढहने से सात मासूम बच्चों की दर्दनाक मौत हो गई, जिनमें एक ही परिवार के दो भाई-बहन भी शामिल थे। जिस घर में कुछ दिन पहले तक बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, वहां अब मातम पसरा हुआ है। इस हादसे में अपने बेटे और बेटी को खो चुकी मां की आंखें अब भी सूखी नहीं हुई हैं। रोते हुए उन्होंने कहा, “मेरा सब कुछ चला गया। मेरे दो ही बच्चे थे, दोनों अब नहीं हैं। काश भगवान मुझे ले जाता और मेरे बच्चों को बचा लेता। अब मेरे आंगन में खेलने वाला कोई नहीं बचा।”
शनिवार सुबह जब सातों बच्चों के शव परिजनों को सौंपे गए, तो झालावाड़ के एसआरजी अस्पताल के बाहर गमगीन माहौल था। कुछ महिलाएं अपने बच्चों के शवों से लिपटकर बिलखती रहीं, जबकि कई परिजन गहरे सदमे में चुपचाप बैठे रहे। इस हादसे के बाद स्कूल प्रशासन और शिक्षकों की भूमिका पर भी सवाल उठने लगे हैं। एक महिला परिजन ने कहा, “हादसे के वक्त शिक्षक स्कूल में मौजूद थे, लेकिन खुद बाहर चले गए और बच्चों को भीतर छोड़ दिया। वे बाहर क्या कर रहे थे?”
यह हादसा न सिर्फ एक भवन गिरने की घटना है, बल्कि यह सरकारी स्कूलों की उपेक्षा और ढांचागत कुप्रबंधन की पोल भी खोलता है। ग्रामीण इलाकों में स्थित कई सरकारी विद्यालयों की इमारतें बेहद जर्जर हालत में हैं, जो बच्चों की सुरक्षा के लिए खतरा बन चुकी हैं। इस हादसे में जिन बच्चों की जान गई, उनमें सबसे छोटा बच्चा केवल छह साल का था। मृतकों की पहचान पायल (12), हरीश (8), प्रियंका (12), कुंदन (12), कार्तिक और भाई-बहन मीना (12) एवं कान्हा (6) के रूप में हुई है। यह हादसा उन परिवारों के लिए किसी काले सपने जैसा है, जो कभी नहीं भूल पाएंगे।