नई दिल्ली। धनखड़ ने हाल ही में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खरगे और AAP प्रमुख अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की थी, जिनकी तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। ये बैठकें संसद के मानसून सत्र शुरू होने से ठीक पहले हुईं, जिससे राजनीतिक हलकों में कई अटकलें शुरू हो गईं। केजरीवाल सांसद नहीं हैं, बावजूद इसके यह मुलाकात “शिष्टाचार भेंट” बताई गई। मगर कुछ सत्तारूढ़ पक्ष के नेताओं ने इन बैठकों को लेकर सवाल उठाए कि क्या उपराष्ट्रपति विपक्ष के करीब जा रहे हैं?
धनखड़ इससे पहले मार्च में स्वास्थ्य कारणों से एम्स में भर्ती हुए थे। इसके बाद उन्होंने विपक्ष के कई नेताओं से मेलजोल बढ़ाया, जिनमें मल्लिकार्जुन खरगे, जयराम रमेश और प्रमोद तिवारी शामिल हैं। यह देखा गया कि वो अपनी छवि को संतुलित और गैर-पक्षपाती बनाने की कोशिश कर रहे थे, खासकर 2024 में जब विपक्ष ने उन पर पक्षपात के आरोप लगाए थे और महाभियोग की चेतावनी दी थी।
राज्यसभा सभापति के तौर पर धनखड़ ने कई बार संवैधानिक दायरे में रहकर फैसले लिए, लेकिन NJAC (राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग) जैसे विषयों पर उनके बयानों को सरकार से भिन्न माना गया। उन्होंने न्यायपालिका से जुड़े मामलों पर खुलकर बोलना शुरू किया, जो सरकार को असहज करने लगा। गृह मंत्री अमित शाह पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं कि NJAC को लेकर सरकार के पास कोई प्रस्ताव नहीं है।
जानकारी के अनुसार, इस्तीफे से पहले धनखड़ की एक वरिष्ठ मंत्री से फोन पर तीखी बहस हुई। मंत्री ने पूछा कि उन्होंने विपक्ष के सांसदों द्वारा न्यायाधीश यशवंत वर्मा के खिलाफ लाए गए महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार क्यों किया? इस पर धनखड़ ने अपने संवैधानिक अधिकारों का हवाला दिया।
इसी दिन शाम को उन्होंने एक अहम बैठक बुलाई, जिसमें भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय मंत्री किरण रिजिजू शामिल नहीं हुए। यह सन्देश गया कि भाजपा नेतृत्व और धनखड़ के बीच विश्वास की खाई गहराती जा रही है।
अब 60 दिनों के भीतर नए उपराष्ट्रपति का चयन होना है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार इस बार एक भरोसेमंद भाजपा नेता को इस पद पर बैठाना चाहती है ताकि राज्यसभा में कोई अस्थिरता न हो। राजनाथ सिंह और कुछ अन्य वरिष्ठ भाजपा नेताओं के नाम चर्चा में हैं।
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