🕒 Published 1 month ago (3:02 PM)
नई दिल्ली। पुरी में हर साल होने वाली जगन्नाथ रथ यात्रा देश और दुनिया के करोड़ों श्रद्धालुओं के लिए एक विशेष आध्यात्मिक अनुभव होता है। इस बार 2025 में यह यात्रा 27 जून से आरंभ होगी, जिसमें भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ गुंडीचा मंदिर की ओर प्रस्थान करेंगे।
इस ऐतिहासिक यात्रा के दौरान तीन भव्य रथों को भक्तगण रस्सियों के सहारे खींचते हैं, जो लगभग तीन किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। खास बात यह है कि हर भक्त चाहता है कि उसे इन रस्सियों को छूने का सौभाग्य मिले, क्योंकि यह केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि ईश्वर से जुड़ने का एक गहरा माध्यम माना जाता है।
रस्सी छूने का धार्मिक महत्व
मान्यता है कि रथ यात्रा की रस्सी को स्पर्श करना परमात्मा से सीधा संपर्क स्थापित करने जैसा होता है। यह केवल बाहरी कर्म नहीं बल्कि आंतरिक शुद्धि और प्रभु कृपा प्राप्त करने का एक मार्ग है। ऐसा विश्वास है कि इस रस्सी को छू लेने मात्र से व्यक्ति के पुराने पाप कट सकते हैं और उसे मोक्ष की दिशा में आगे बढ़ने का अवसर मिलता है।
आध्यात्मिक दृष्टिकोण से रस्सी का महत्व
रथ यात्रा में रस्सी खींचना आत्मिक विकास का प्रतीक भी है। जब कोई भक्त श्रद्धा से यह कार्य करता है तो वह न केवल भक्तिभाव में डूबता है, बल्कि उसके जीवन में आंतरिक परिवर्तन की शुरुआत भी होती है। यह अनुभव माया के बंधनों से मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है, बशर्ते यात्रा के बाद भी साधना और आत्मचिंतन का क्रम बना रहे।
तीनों रथ और उनकी खासियत
पुरी की रथ यात्रा में तीन अलग-अलग रथ होते हैं—भगवान बलभद्र का तालध्वज रथ सबसे आगे होता है, उसके बाद देवी सुभद्रा का दर्पदलन रथ और अंत में भगवान जगन्नाथ का नंदीघोष रथ आता है। ये तीनों रथ भक्तों द्वारा रस्सियों से खींचे जाते हैं और 3 किलोमीटर की दूरी तय करके गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं, जिसे भगवान की मौसी का घर कहा जाता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा केवल एक उत्सव नहीं, बल्कि आत्मा और परमात्मा के मिलन का पर्व है, जिसमें रस्सी की एक पकड़ भी मोक्ष की डोर बन सकती है।