न भारत डरा, न पुतिन झुका… ट्रंप की ट्रेड पॉलिसी, भारत-पुतिन दोनों पर फेल

Photo of author

By Pradeep dabas

🕒 Published 4 weeks ago (10:18 AM)

डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति में “ट्रेड” यानी व्यापार एक ऐसा हथियार है जिसे वे दुनिया की लगभग हर भू-राजनीतिक समस्या के समाधान के तौर पर पेश करते हैं। उनकी रणनीति साफ है अगर कोई देश अमेरिका के मुताबिक काम करता है, तो उसे व्यापारिक फायदे मिलेंगे, और अगर नहीं करता, तो व्यापार बंद। यही सोच ट्रंप ने रूस-यूक्रेन युद्ध और भारत-पाकिस्तान तनाव के मामले में भी अपनाई।

ट्रंप का मानना है कि टैरिफ, प्रतिबंध और व्यापार समझौते जैसे आर्थिक उपकरणों के ज़रिए किसी भी देश की नीति को बदला जा सकता है। उन्होंने दावा किया था कि उन्होंने पुतिन और जेलेंस्की दोनों से बात की है और ट्रेड को शांति का जरिया बताया है। कुछ वैसा ही भारत के मामले में भी हुआ जब उन्होंने कहा “अगर भारत युद्ध रोकता है तो अमेरिका उसके साथ बहुत सारा व्यापार करेगा।”

लेकिन यहां एक बड़ा सवाल उठता है क्या व्यापार जैसे सतही उपाय इतने गहरे और जटिल संघर्षों को सुलझा सकते हैं?

भारत-पाकिस्तान: तनाव की असली वजह क्या है?

भारत और पाकिस्तान के बीच मुख्य मुद्दा आतंकवाद है। भारत बार-बार कह चुका है कि पाकिस्तान को आतंकवाद पर कड़ा रुख अपनाना होगा। इसके अलावा, ऐतिहासिक दुश्मनी और आपसी विश्वास की कमी भी तनाव का बड़ा कारण है। वहीं पाकिस्तान कश्मीर को अपना मुख्य मुद्दा बताता है।

ट्रंप ने 2019 में जम्मू-कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता की पेशकश की थी, जिसे भारत ने साफ तौर पर खारिज कर दिया था। भारत का हमेशा से यही रुख रहा है कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है और इसमें किसी तीसरे पक्ष की भूमिका नहीं हो सकती। भारत ने यह भी स्पष्ट किया है कि अगर बात होगी, तो वो सिर्फ पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को लेकर होगी।

हाल ही में ट्रंप ने दावा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत और पाकिस्तान अमेरिका की मध्यस्थता के चलते सीजफायर पर सहमत हुए। इसके बाद उन्होंने कहा “अब हम दोनों देशों से बहुत सारा ट्रेड करेंगे।” लेकिन यह बात नजरअंदाज करती है कि ट्रंप ने भारत की आतंकवाद से जुड़ी चिंताओं पर एक शब्द भी नहीं कहा।

अगर पाकिस्तान आतंकवाद की नीति पर कायम रहता है, तो सीजफायर कितनी देर टिक पाएगा? ट्रंप की ट्रेड-डिप्लोमेसी इस सवाल का जवाब नहीं देती।

रूस-यूक्रेन युद्ध: व्यापार बनाम सुरक्षा चिंताएं

रूस-यूक्रेन संघर्ष की जड़ें भी गहरी हैं। पुतिन के अनुसार, यूक्रेन की नाटो में सदस्यता लेने की कोशिश रूस के लिए सुरक्षा खतरा है। वहीं यूक्रेन नाटो की मदद से अपनी रक्षा करना चाहता है। ट्रंप ने इस पूरे मामले में भी व्यापार को ही समाधान बताया।

उन्होंने कहा कि पुतिन और जेलेंस्की से बातचीत के बाद दोनों युद्धविराम के लिए तैयार हैं और इसके पीछे उन्होंने “ट्रेड” को मुख्य कारण बताया। ट्रंप का कहना है कि रूस अमेरिका के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार करना चाहता है और यूक्रेन को भी व्यापार के ज़रिए पुनर्निर्माण का लाभ होगा।

लेकिन सवाल फिर वही है—क्या यह रणनीति युद्ध को वास्तव में रोक सकती है?

जब प्रतिबंध भी नाकाम रहे

अमेरिका ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन इसके बावजूद रूस ने 2024 तक तेल निर्यात से $180 बिलियन कमा लिए। उसने चीन और भारत जैसे देशों के साथ व्यापार बढ़ाकर पश्चिमी दबाव को काफी हद तक बेअसर कर दिया।

ट्रंप की व्यापार-केंद्रित नीति पुतिन की सुरक्षा चिंताओं या यूक्रेन की संप्रभुता जैसे मूल मुद्दों को संबोधित करने में नाकाम रही। केवल व्यापार का वादा या प्रतिबंध इस युद्ध की जटिलताओं को नहीं सुलझा सकता।

 

यह भी पढ़े : https://hindustanuday.com/covid-19-cases-in-india/

यह भी पढ़े :  https://hindustanuday.com/operation-sindoor-indian-armys-big-action-in-operation-sindoor-64-pakistani-soldiers-killed/

Leave a Comment