International Yoga Day 2025 : डिप्रेशन हो या विकार, समाधान है योग… पूरी दुनिया ने भारतीय ज्ञान परंपरा को अपनाया

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By Hindustan Uday

🕒 Published 1 month ago (9:34 AM)

21 जून को पूरी दुनिया अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मना रही है। आज यूरोप, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों के स्कूलों में भी योग को शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बना दिया गया है। पर क्या आप जानते हैं कि योग की यह वैश्विक यात्रा दरअसल भारत की आत्मा से शुरू होकर विश्व चेतना तक पहुंची है?

इसकी शुरुआत हुई 11 दिसंबर 2014 को, जब भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र में लाए गए प्रस्ताव को रिकॉर्ड समय—सिर्फ 90 दिनों में—177 देशों का समर्थन मिला और तय हुआ कि हर साल 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाएगा। 21 जून की तिथि इसलिए चुनी गई क्योंकि यह उत्तरी गोलार्ध का सबसे लंबा दिन होता है और योग का उद्देश्य भी जीवन को लंबा और संतुलित बनाना है।

योग: शरीर और ब्रह्मांड के बीच सेतु

‘योग’ शब्द संस्कृत धातु ‘युज्’ से बना है जिसका अर्थ है – जोड़ना। यानी आत्मा, शरीर और ब्रह्मांड के बीच एकता की साधना। भारतीय मनीषियों ने इसे केवल कसरत नहीं बल्कि आत्मबोध और मुक्ति की ओर बढ़ने की प्रक्रिया बताया है। महाभारत में श्रीकृष्ण को ‘योगेश्वर’ कहा गया है, जबकि पुराणों में भगवान शिव को ‘आदियोगी’।

महर्षि पतंजलि ने योगसूत्रों के माध्यम से इसे विधिवत दर्शन का स्वरूप दिया—“योगश्चित्तवृत्ति निरोधः” अर्थात चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। यानी हमारी चेतना में जो असंतुलन और विकृति उत्पन्न होती है, योग उन्हें शांत कर समभाव और आत्म-नियंत्रण की स्थिति प्रदान करता है। गीता में भी श्रीकृष्ण कहते हैं—”समत्वं योग उच्यते”, यानी समभाव ही योग है।

योग की उत्पत्ति: हिरण्यगर्भ से पतंजलि तक

अधिकतर लोग योग का श्रेय पतंजलि को देते हैं, लेकिन इसके आदि प्रवर्तक माने जाते हैं महर्षि हिरण्यगर्भ। वेदों में योग का स्पष्ट उल्लेख है, जहां हिरण्यगर्भ को योग का प्रथम वक्ता कहा गया है। बाद में पतंजलि ने उसे व्यवस्थित रूप में संकलित किया।

बौद्ध परंपरा में योग को शील, समाधि और प्रज्ञा का संगम माना गया है। ध्यान को यहां प्रमुख स्थान दिया गया। बुद्धचर्या में अष्टांग मार्ग (सम्यक दृष्टि, सम्यक संकल्प, सम्यक वाक, सम्यक कर्म आदि) भी योग के आठ अंगों की तरह हैं। योग के जरिए बुद्ध साधक मन पर नियंत्रण पाता है और निर्वाण की ओर अग्रसर होता है।

जैन दर्शन और योग

जैन परंपरा में भी योग का विशिष्ट स्थान है। त्रिगुप्ति सिद्धांत (मन, वचन और काया पर नियंत्रण) को योग की आत्मा माना गया है। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव को योग विद्या का प्रवर्तक बताया गया है। उनके उपदेश में ध्यान, तप, आसन और आत्मसंयम को प्रमुख स्थान प्राप्त है।

आधुनिक युग में योग की पुनर्प्रतिष्ठा

1893 में स्वामी विवेकानंद ने शिकागो की धर्म संसद में जब योग के दर्शन और उसकी शक्ति को प्रस्तुत किया, तब पहली बार पश्चिम ने इसे गंभीरता से सुना। 20वीं सदी में तिरुमलाई कृष्णमाचार्य, बीकेएस आयंगर, महर्षि रमण और महेश योगी जैसे गुरुओं ने इसे वैज्ञानिक और सार्वभौमिक स्वरूप दिया।

21वीं सदी की शुरुआत में बाबा रामदेव ने योग को घर-घर तक पहुंचाया। उनके प्रयासों से आम भारतीयों ने इसे अपनी दिनचर्या में शामिल किया। यही कारण रहा कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में संयुक्त राष्ट्र में योग दिवस का प्रस्ताव रखा तो उसे वैश्विक समर्थन मिला।

योग: डिप्रेशन और मानसिक असंतुलन का समाधान

आधुनिक जीवनशैली के कारण मानसिक विकार और डिप्रेशन तेजी से बढ़ रहे हैं। डॉ. अनिकेत जैन बताते हैं कि मानसिक रोगों का एक बड़ा कारण है – स्वाभाविक अभिव्यक्ति में रुकावट। योग इस अवरोध को तोड़कर व्यक्ति को सहजता, संतुलन और आत्म-समझ की दिशा में ले जाता है।

योग अब वैश्विक धरोहर

आज दुनिया भर में लाखों लोग योग को अपनाकर शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक संतुलन की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, योग ‘मानवता के लिए अमूल्य उपहार’ है। यही कारण है कि आज योग सिर्फ भारत की परंपरा नहीं, बल्कि वैश्विक संस्कृति बन चुका है।

भारत की इस अद्वितीय धरोहर ने अब विश्व को जोड़ने का कार्य शुरू कर दिया है—शरीर से मन, व्यक्ति से समाज और भारत से पूरी मानवता तक।

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