🕒 Published 1 month ago (2:50 PM)
भारत ने किशनगंगा और रतले जलविद्युत परियोजनाओं को लेकर कोर्ट ऑफ आर्बिट्रेशन (Court of Arbitration) द्वारा दिए गए पूरक निर्णय को पूरी तरह से अस्वीकार कर दिया है। ये दोनों डैम सिंधु नदी प्रणाली की महत्वपूर्ण शाखाओं—झेलम और चिनाब—पर स्थित हैं। भारत का यह दो टूक रुख उस समय सामने आया है, जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल संधि को अस्थायी रूप से निलंबित कर दिया है।
भारत का कड़ा रुख: कोर्ट की वैधता ही नहीं मानी
विदेश मंत्रालय (MEA) ने अपने बयान में साफ कहा है कि भारत ने इस कथित मध्यस्थता अदालत को कभी भी मान्यता नहीं दी है। मंत्रालय ने इसे संधि के मूल प्रावधानों का गंभीर उल्लंघन बताया है। MEA ने कहा, “इस अदालत का गठन ही अवैध है, और भारत इसे गैरकानूनी और अमान्य मानता है। यह पाकिस्तान की एक और रणनीति है, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भ्रम फैलाना और सीमा-पार आतंकवाद से ध्यान भटकाना है।”
भारत ने इस फैसले को पाकिस्तान का नया “नाटक” करार दिया है। बयान में कहा गया है कि पाकिस्तान की यह कोशिश सिंधु जल संधि के नाम पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सहानुभूति बटोरने और भारत पर दबाव बनाने की है, जबकि असल में वह आतंकवाद का गढ़ बना हुआ है।
भारत ने क्यों रोकी सिंधु जल संधि?
MEA ने स्पष्ट किया है कि भारत ने पहलगाम हमले के बाद एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए सिंधु जल संधि को निलंबित किया है। जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद का समर्थन विश्वसनीय और स्थायी रूप से बंद नहीं करता, तब तक भारत इस संधि के किसी भी हिस्से का पालन करने को बाध्य नहीं है।
पाकिस्तान की आपत्तियां और भारत का जवाब
पाकिस्तान ने झेलम पर 330 मेगावाट की किशनगंगा और चिनाब पर 850 मेगावाट की रतले परियोजनाओं पर आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि इन डैमों से निचले इलाकों में जल की आपूर्ति पर असर पड़ेगा, जिससे उसकी कृषि व्यवस्था को नुकसान होगा।
हालांकि भारत ने इन आशंकाओं को पूरी तरह खारिज किया है। भारत ने कहा है कि ये दोनों परियोजनाएं सिंधु जल संधि के प्रावधानों के अनुरूप हैं, और इनसे पानी के प्राकृतिक प्रवाह में कोई अवैध रुकावट नहीं आती।
विश्व बैंक के न्यूट्रल एक्सपर्ट को भारत की चिट्ठी
भारत ने विश्व बैंक द्वारा नियुक्त न्यूट्रल एक्सपर्ट मिशेल लीनो को पत्र भेजकर अनुरोध किया है कि इन परियोजनाओं को लेकर चल रही प्रक्रिया को अस्थायी रूप से स्थगित किया जाए। पाकिस्तान को अगस्त में अपनी दलीलें पेश करनी थीं और दोनों देशों की बैठक नवंबर में प्रस्तावित थी, लेकिन भारत ने इस बैठक को आगे बढ़ाने की मांग की है।
जल शक्ति मंत्री का बयान
जल शक्ति मंत्री सी.आर. पाटिल ने पाकिस्तान की ओर से बार-बार भेजे जा रहे पत्रों को औपचारिकता मात्र बताया और कहा कि इन चिट्ठियों से भारत की नीति पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि पाकिस्तान के दबाव में आकर भारत अपना रुख नहीं बदलेगा।