नई दिल्ली। भारत और अमेरिका के बीच व्यापार को लेकर तनाव लगातार गहराता जा रहा है। रूस से तेल खरीद के मुद्दे पर अमेरिका भारत को घेरने की कोशिश कर रहा है, लेकिन हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को भारतीय पत्रकार ने ऐसा सवाल कर दिया कि उनका जवाब देना मुश्किल हो गया।
जब पत्रकार ने ट्रंप से पूछा कि अमेरिका खुद रूस से यूरेनियम और उर्वरक जैसी सामग्रियां क्यों खरीद रहा है, तो ट्रंप ने कहा, “मुझे इसकी जानकारी नहीं है।” इस जवाब के बाद प्रेस वार्ता में सन्नाटा छा गया।
यह सवाल तब पूछा गया जब ट्रंप लगातार भारत पर रूस से तेल खरीद को लेकर दबाव बना रहे थे। उनका आरोप है कि भारत रूस से कच्चा तेल खरीदकर यूक्रेन युद्ध में अप्रत्यक्ष रूप से रूस का समर्थन कर रहा है।
लेकिन अब अमेरिका की नीति पर खुद सवाल उठ रहे हैं, क्योंकि वह भी रूस से ऊर्जा और रणनीतिक संसाधन खरीदता रहा है।
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भारत ने जताई सख्त आपत्ति
#WATCH | Responding to ANI’s question on US imports of Russian Uranium, chemical fertilisers while criticising their (Indian) energy imports’, US President Donald Trump says, “I don’t know anything about it. I have to check…”
(Source: US Network Pool via Reuters) pic.twitter.com/OOejcaGz2t
— ANI (@ANI) August 5, 2025
भारत सरकार ने अमेरिका की दोहरी नीति पर पहले ही तीखी प्रतिक्रिया दे दी थी। विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में स्पष्ट किया कि भारत का रूस से तेल खरीदना पूरी तरह उसके राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा से जुड़ा निर्णय है।
साथ ही यह भी कहा गया कि अमेरिका और यूरोपीय देश खुद भी रूस से कई उत्पाद खरीद रहे हैं, इसलिए भारत पर इस मामले में दबाव डालना उचित नहीं है। मंत्रालय ने यह भी बताया कि अमेरिका अभी भी परमाणु ऊर्जा के लिए रूस से यूरेनियम हेक्साफ्लोराइड, खेती के लिए उर्वरक और इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए जरूरी धातुएं रूस से आयात कर रहा है।
दोहरे मापदंड पर सवाल
डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत को चेतावनी दी गई थी कि अगर उसने रूस से तेल आयात जारी रखा, तो भारतीय सामानों पर 25 प्रतिशत से अधिक का आयात शुल्क लगाया जाएगा। लेकिन जब खुद अमेरिका की रूस पर निर्भरता सामने आई, तो अमेरिकी नेतृत्व असहज दिखाई दिया।
अब यह बहस तेज हो गई है कि क्या वैश्विक शक्तियों को अपनी आर्थिक नीतियों में समानता रखनी चाहिए या केवल छोटे और उभरते देशों पर दबाव बनाना ही उनका तरीका रहेगा।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह किसी भी बाहरी दबाव में आकर अपने फैसले नहीं बदलेगा।
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