30 जुलाई को रूस के कामचटका तटीय क्षेत्र में आए 8.8 तीव्रता के भूकंप ने पूरी दुनिया को चौंका दिया। इस विनाशकारी झटके के बाद मंगलवार को उसी इलाके में एक और भूकंप दर्ज किया गया जिसकी तीव्रता 6.0 थी। इतने तीव्र झटके यह दिखाते हैं कि प्रकृति की ताकत कितनी खतरनाक हो सकती है। चूंकि अब तक भूकंप की सटीक भविष्यवाणी संभव नहीं हो सकी है, ऐसे में भारत में विकसित हो रही एक तकनीक दुनिया के लिए एक नई उम्मीद बन रही है।
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भारत विकसित कर रहा है अर्ली-वार्निंग सिस्टम
भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, देश में एक अत्याधुनिक अर्ली-वार्निंग सिस्टम विकसित किया जा रहा है, जो विनाशकारी सेकंडरी वेव्स (S-Waves) के आने से पहले लोगों को सचेत कर सकेगा। यह सिस्टम तबाही से कुछ सेकंड पहले चेतावनी देने में मदद करेगा, जिससे जान-माल की रक्षा की जा सकेगी। मंत्रालय के सचिव एम. रविचंद्रन ने जानकारी दी है कि भारत का यह पहला एडवांस डिटेक्शन नेटवर्क होगा, जो पूरे देश में भूकंप की शुरुआती चेतावनी देने में सक्षम होगा। हालांकि, अभी तक भूकंप के समय, स्थान और तीव्रता की भविष्यवाणी करना वैज्ञानिकों के लिए चुनौती है, लेकिन यह प्रणाली भविष्य में भूकंप से होने वाली हानि को काफी हद तक कम कर सकेगी।
कैसे काम करता है यह सिस्टम?
भूकंप के दौरान सबसे पहले प्राइमरी वेव (P-Wave) आती है, जो कम नुकसानदायक होती है। इसके बाद कुछ सेकंड में ही सेकंडरी वेव (S-Wave) आती है, जो असली तबाही लाती है। भारत का लक्ष्य है कि P-Wave को पकड़ कर, उस छोटे अंतराल का इस्तेमाल करते हुए लोगों को अलर्ट किया जा सके। जापान में यह तकनीक पहले से मौजूद है और भारत अब उसी दिशा में तेज़ी से काम कर रहा है। इसके लिए देशभर में एक्सेलेरोमीटर और जीपीएस सिस्टम लगाए जाएंगे, ताकि ज़मीन की गतिविधियों पर रीयल-टाइम नज़र रखी जा सके। मंत्रालय का मानना है कि अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला तो आने वाले 10 वर्षों में भारत भूकंप की पूर्व चेतावनी देने में सक्षम हो जाएगा।
भारत का 59% क्षेत्र भूकंप के खतरे में
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अनुसार, भारत का लगभग 59 प्रतिशत भू-भाग भूकंप के लिहाज से संवेदनशील है। इसका मुख्य कारण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों का लगातार टकराव है। धरती के अंदर हो रही यह हलचल कभी भी भूकंप का रूप ले सकती है, और इसका पूर्वानुमान लगाना अब तक नामुमकिन है।
भारत के भूकंपीय ज़ोन
देश को चार मुख्य भूकंपीय ज़ोन में बांटा गया है:
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जोन V – सबसे ज्यादा खतरनाक (देश का 11% हिस्सा)
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जोन IV – उच्च खतरा (लगभग 18%)
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जोन III – मध्यम खतरा (करीब 30%)
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जोन II – सबसे कम खतरा
 
इस वर्गीकरण के अनुसार, भारत के कई हिस्से गंभीर भूकंपीय गतिविधियों की चपेट में आते हैं, जिनमें उत्तर भारत, पूर्वोत्तर, हिमालयी क्षेत्र और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह शामिल हैं।
निष्कर्ष:
रूस में आए भयानक भूकंप ने फिर साबित किया है कि प्राकृतिक आपदाएं कभी भी और कहीं भी आ सकती हैं। भारत द्वारा विकसित किया जा रहा अर्ली-वार्निंग सिस्टम भविष्य में लाखों लोगों की जान बचाने में मददगार साबित हो सकता है। यह एक ऐसा कदम है, जो विज्ञान और टेक्नोलॉजी के सही इस्तेमाल का बेहतरीन उदाहरण बन सकता है।


