Ganga snan ka mahatva
डेस्क: नई दिल्ली : आज गंगा दशहरा का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है। गंगा दशहरे पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। वाराणसी, हरिद्वार, ऋषिकेश, प्रयागराज, काशी, गढ़मुक्तेश्वर में गंगा स्नान के लिए श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा । लाखों की संख्या में श्रद्धालुओं ने पतित पावनी मां गंगा में आस्था की डुबकी लगाई। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान का भरपूर आंनद लिया, गंगा घाटों पर हर-हर गंगे के जयकारों से पूरा वातारवरण भक्तिमय हो गया। इस मौके पर लोगों खूब पुण्य कमाया। श्रद्धालुओं ने गंगा घाटों पर गरीबों को अन्न, वस्त्र का दान किया और साथ ही भंडारे भी लगाए।
गंगा दशहरा पर्व मां गंगा के धरती पर अवतरित होने के उपलक्ष में मनाया जाता क्योंकि गंगा दशहरे के दिन मां गंगा धरती पर मैदानी क्षेत्र में उतरी थी। मां गंगा का धरती पर अवतरण इक्ष्वाकु वंश के महान राजा भगीरथ की कठोर तपस्या का परिणाम थी। अमृतदायिनी मां गंगा ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दसवीं को हरिद्वार के ब्रह्म कुंड में समाहित हुई थी ।
गंगा दशहरे का पावन पर्व ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दसवीं को मनाया जाता है । कहा जाता है कि जो भी व्यक्ति गंगा दशहरे के दिन गंगा में डुबकी लगा लेता है उसको जन्मों-जन्मों के पापों से मुक्ति तो मिलती ही है साथ ही जीवन में खुशियों और आनंद का भी संचार होता है। कहा तो यह भी जाता है कि सौ योजन से भी अगर मां गंगा का स्मरण कर ले तो अंत में विष्णुलोक प्राप्त हो जाता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरा पर्व के आरंभ की कथा मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के वंश से जुड़ी है कथा कुछ इस प्रकार है इक्ष्वाकु वंश के राजा सगर की केशिनी और सुमति दो रानियां थी दोनों ही रानियों से राजा को कोई संतान नहीं थी संतान प्राप्ति की इच्छा से राजा सगर की दोनों रानियां हिमालय में तपस्या के लिए पहुंच गई और भगवान की पूजन अर्चन में लग गई। दोनों ही रानियां कठोर तपस्या में लीन थी रानियों की तपस्या से ब्रह्मा जी के पुत्र महर्षि भृगु ने रानियों को पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया महर्षि के वरदान के अनुसार एक रानी को 60 हजार पुत्रों और दूसरी रानी को एक ही पुत्र का वरदान दिया रानी केशिनी ने एक पुत्र को जन्म दिया जबकि सुमति के गर्भ से एक पिंड का जन्म हुआ जिसमें से 60 हजार बच्चों ने जन्म लिया।
सुमति से पैदा हुए राजा सगर के 60 पुत्रों में अभिमान की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी जबकि केशिनी से पैदा हुआ बेटा अंशुमान गुणी और शालीन स्वभाव का था। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ करवाया। राजा ने यज्ञ के घोड़े को संभालने की जिम्मेदार अपने 60 हजार पुत्रों को सौंपी । देवराज इंद्र ने यज्ञ का घोड़ा धोखे से चुरा लिया और कपिल मुनि के आश्रम में बांध दिया ।
राजा सगर के बेटे घोड़े को तलाश करते जब कपिल मुनि के आश्रम पहुंचे तो वहां घोड़े को बंधा देखा। जिसको देखकर वे सभी गुस्से में भर गए और जहां उन्होने जमकर उत्पात मचाया। उस समय कपिल मुनि गहन तपस्या में लीन थे। उत्पात से कपिल मुनि की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले तो उनकी ज्वाला से राजा सगर के पुत्रों को भस्म हो गए । लेकिन सभी अस्थियां कपिल मुनि के आश्रम में ही पड़ी रही।
राजा इस बात से भली भांति परिचित थे कि उनके पुत्रों का यही हालत होनी थी । परंतु फिर भी राजा सगर चाहते थे कि उनके पुत्रों को मोक्ष प्राप्ति हो। इक्ष्वाकु वंश के सभी राजाओं ने इसके लिए बहुत प्रयास और तपस्याएं की लेकिन सफल नहीं हो पाए। राजा भगीरथ ने अपने पूर्वजों कि मुक्ति के लिए कठोर तप किया था। उस समय मां गंगा भगवान विष्णु के चरणों में विराजित थी। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार कर लिया। और गंगा को अपनी जटाओं में स्थान देकर कर पृथ्वी पर प्रवाहित किया। गंगा की प्रचंड प्रवाह को नियंत्रित करने के लिए शिवजी ने अपनी जटाओं को सात धाराओं में विभक्त कर दिया इन धाराओं का नाम हृदिनी, नलिनी, सीता, पावनी, सिंधु, चक्षुष और भागीरथी है। इन्हीं सात धाराओं में से एक ‘भागीरथी’ धारा को ही गंगा कहा गया, जिसको मोक्षदायिनी कहा गया है।
आखिर राजा भगीरथ की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर मां गंगा धरती पर अवतरित हुई। कहते हैं कि मां गंगा सबसे पहले शुक्ल पक्ष की सप्तमी के दिन हिमालय पर्वत पर आई । इसके बाद मैदानी क्षेत्र में पहुंची । मां गंगा के मैदानी इलाके में पहुंचने के बाद ही राजा सगर के पुत्रों की अस्थियों को प्रवाहित किया जा सका और उन्हें मुक्ति मिल पाई।
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