हनुमान चालीसा केवल एक भक्ति गीत नहीं, बल्कि एक अदृश्य रक्षाकवच है, जो खासकर रात्रि के समय बेहद प्रभावशाली माना गया है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रात का समय नकारात्मक शक्तियों, भय और तंत्र बाधाओं की सक्रियता का होता है। ऐसे में यदि कोई श्रद्धालु रात में श्रीहनुमान की स्तुति करता है, तो उसे मानसिक शांति, आत्मबल और दिव्य सुरक्षा प्राप्त होती है।
हनुमानजी को संकट मोचन और भूत-प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने वाले देवता माना गया है। विशेषकर हनुमान चालीसा की यह चौपाई – “भूत पिशाच निकट नहिं आवै, महावीर जब नाम सुनावै” – रात्रि में अत्यंत प्रभावशाली मानी जाती है। यह नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर एक सकारात्मक सुरक्षा घेरे का निर्माण करती है।
आधुनिक मानसिक दृष्टिकोण से भी हनुमान चालीसा का पाठ अत्यंत लाभकारी माना गया है। शोध बताते हैं कि इसके शब्दों की ध्वनि लहरें मस्तिष्क को शांति, संतुलन और स्थिरता प्रदान करती हैं। इससे डर, चिंता, तनाव और अनिद्रा जैसी समस्याओं में भी राहत मिलती है।
तांत्रिक मान्यताओं के अनुसार, हनुमान चालीसा एक शक्तिशाली रक्षा कवच की तरह कार्य करती है। यह टोना-टोटका, बुरी नजर और अन्य तांत्रिक बाधाओं को दूर करने में सहायक है। खासकर मंगलवार और शनिवार की रात को इसका पाठ करने से इसका प्रभाव कई गुना बढ़ जाता है।
(गोस्वामी तुलसीदास कृत)
दोहा
श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
बरनऊं रघुबर बिमल जसु, जो दायक फल चारि॥
चौपाई
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर।
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥
राम दूत अतुलित बल धामा।
अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा॥
महाबीर बिक्रम बजरंगी।
कुमति निवार सुमति के संगी॥
कंचन बरन बिराज सुबेसा।
कानन कुंडल कुंचित केसा॥
हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै।
काँधे मूँज जनेऊ साजै॥
संकर सुवन केसरी नंदन।
तेज प्रताप महा जग बन्दन॥
विद्यावान गुनी अति चातुर।
राम काज करिबे को आतुर॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया।
राम लखन सीता मन बसिया॥
सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा।
बिकट रूप धरि लंक जरावा॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे।
रामचंद्र के काज सँवारे॥
लाय सजीवन लखन जियाए।
श्रीरघुबीर हरषि उर लाए॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई।
तुम मम प्रिय भरत सम भाई॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं।
अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा।
नारद सारद सहित अहीसा॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते।
कवि कोबिद कहि सके कहाँ ते॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा।
राम मिलाय राजपद दीन्हा॥
तुम्हरो मंत्र बिभीषन माना।
लंकेश्वर भए सब जग जाना॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू।
लील्यो ताहि मधुर फल जानू॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं।
जलधि लांघि गए अचरज नाहीं॥
दुर्गम काज जगत के जेते।
सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥
राम दुआरे तुम रखवारे।
होत न आज्ञा बिनु पैसारे॥
सब सुख लहै तुम्हारी सरना।
तुम रक्षक काहू को डर ना॥
आपन तेज सम्हारो आपै।
तीनों लोक हाँक ते काँपै॥
भूत पिशाच निकट नहिं आवै।
महाबीर जब नाम सुनावै॥
नासै रोग हरै सब पीरा।
जपत निरंतर हनुमत बीरा॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै।
मन क्रम बचन ध्यान जो लावै॥
सब पर राम तपस्वी राजा।
तिन के काज सकल तुम साजा॥
और मनोरथ जो कोई लावै।
सोइ अमित जीवन फल पावै॥
चारों जुग परताप तुम्हारा।
है परसिद्ध जगत उजियारा॥
साधु संत के तुम रखवारे।
असुर निकंदन राम दुलारे॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता।
अस बर दीन जानकी माता॥
राम रसायन तुम्हरे पासा।
सदा रहो रघुपति के दासा॥
तुम्हरे भजन राम को पावै।
जनम जनम के दुख बिसरावै॥
अंतकाल रघुबर पुर जाई।
जहाँ जन्म हरि-भक्त कहाई॥
और देवता चित्त न धरई।
हनुमत सेइ सर्ब सुख करई॥
संकट कटै मिटै सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बलबीरा॥
दोहा
जय जय जय हनुमान गोसाईं।
कृपा करहु गुरुदेव की नाईं॥
जो शत बार पाठ कर कोई।
छूटहिं बंदि महा सुख होई॥
जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा।
होय सिद्धि साखी गौरीसा॥
दोहा
तुलसीदास सदा हरि चेरा।
कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥
॥ श्री हनुमान जी महाराज की जय ॥
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