🕒 Published 4 weeks ago (12:40 PM)
भारत सरकार एक बार फिर से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली में बड़ा बदलाव करने की योजना बना रही है। सूत्रों के अनुसार, 12% जीएसटी स्लैब को पूरी तरह से खत्म करने पर गंभीर विचार चल रहा है। अगर यह बदलाव लागू होता है, तो आम जनता के लिए रोजमर्रा की जरूरी वस्तुएं—जैसे रेडीमेड कपड़े, मोबाइल फोन, डेयरी उत्पाद, टूथपेस्ट और जूते—सस्ते हो सकते हैं।
कौन-कौन सी चीजें आती हैं 12% स्लैब में?
वर्तमान में निम्नलिखित उत्पादों पर 12% जीएसटी लगता है:
- रेडीमेड कपड़े
- मोबाइल फोन और उनके एक्सेसरीज
- पनीर, मक्खन जैसे डेयरी उत्पाद
- टूथपेस्ट, साबुन, शैम्पू
- मिठाइयाँ और टॉफियाँ
- जूते-चप्पल
- ईंटें और संरक्षित खाद्य पदार्थ
ये सभी चीजें आम उपभोक्ताओं के जीवन का हिस्सा हैं, इसलिए इनके दामों में कोई भी बदलाव सीधे आम आदमी की जेब पर असर डालेगा।
अगर 12% स्लैब हटता है तो क्या होगा?
सरकार इन वस्तुओं को या तो 5% टैक्स स्लैब में या फिर 18% में शिफ्ट कर सकती है।
विकल्प-1: 12% से 5% स्लैब में शिफ्ट
- उत्पाद सस्ते होंगे
- उपभोक्ताओं को सीधा फायदा
- मांग में इजाफा
विकल्प-2: 12% से 18% स्लैब में शिफ्ट
- उत्पाद महंगे होंगे
- महंगाई का नया दबाव पड़ सकता है
फिलहाल सूत्रों का कहना है कि सरकार 5% स्लैब की ओर झुक रही है, जिससे आम आदमी को “सस्ता बाजार” मिलने की संभावना है।
जीएसटी काउंसिल की अगली बैठक में होगा अंतिम फैसला
सरकार इसी महीने के अंत तक जीएसटी काउंसिल की 56वीं बैठक बुला सकती है, जिसमें इस स्लैब को हटाने पर निर्णय लिया जाएगा। हालांकि अब तक कोई आधिकारिक ऐलान नहीं हुआ है, लेकिन नीति आयोग और वित्त मंत्रालय के बीच इस मुद्दे पर तेजी से चर्चा हो रही है।
विशेषज्ञों की राय
टैक्स विशेषज्ञों और अर्थशास्त्रियों का मानना है कि चार टैक्स स्लैब को घटाकर दो या तीन कर दिया जाए तो टैक्स प्रणाली सरल हो सकती है। इससे कर संग्रहण में पारदर्शिता बढ़ेगी और अनुपालन बेहतर होगा।
बदलाव का संभावित असर:
उत्पाद | वर्तमान टैक्स | संभावित नया टैक्स | असर |
---|---|---|---|
मोबाइल फोन | 12% | 5% या 18% | कीमत घट या बढ़ सकती है |
रेडीमेड कपड़े | 12% | 5% | सस्ते होंगे |
टूथपेस्ट/साबुन | 12% | 5% | सस्ते होंगे |
डेयरी उत्पाद | 12% | 5% | कीमत घट सकती है |
चुनावी राहत या आर्थिक सुधार?
चूंकि यह फैसला त्योहारी सीजन और संभावित चुनावी माहौल से ठीक पहले लिया जा सकता है, इसलिए सवाल उठता है—क्या यह चुनावी स्टंट है या आर्थिक सुधार की दिशा में एक ठोस कदम? विशेषज्ञों की मानें तो इसका असर दोनों ही मोर्चों पर पड़ सकता है—एक ओर उपभोक्ताओं को राहत मिलेगी और दूसरी ओर अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ेगी।
अब सबकी निगाहें जीएसटी काउंसिल की बैठक पर टिकी हैं, जहां इस ऐतिहासिक बदलाव पर अंतिम मुहर लग सकती है।