दिल्ली 1 मई 2025। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम फैसले में एक पिता को अपनी आठ साल की बेटी की अंतरिम कस्टडी से वंचित कर दिया। कोर्ट ने पाया कि पिता अपनी बेटी को घर का बना पौष्टिक खाना देने में असमर्थ थे, जो बच्चे के समग्र स्वास्थ्य और विकास के लिए जरूरी है। अदालत ने यह निर्णय बच्ची के मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक भले के आधार पर लिया।
केरल हाईकोर्ट के आदेश पर जताई असहमति
यह मामला केरल हाईकोर्ट के उस आदेश से जुड़ा है जिसमें माता-पिता को हर महीने 15-15 दिन के लिए बेटी की देखभाल करने की अनुमति दी गई थी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ — जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता — ने बच्ची से बातचीत और उसके हालात का मूल्यांकन करने के बाद पाया कि पिता का वातावरण बच्ची के लिए अनुकूल नहीं है।
बेटी से लगाव के बावजूद असमर्थता बनी वजह
पिता सिंगापुर में काम करते हैं और हर महीने भारत आकर किराए के मकान में बेटी के साथ समय बिताते हैं। कोर्ट ने यह माना कि वह अपनी बेटी से सच्चा प्रेम करते हैं, लेकिन उसे वह ज़रूरी देखभाल नहीं दे पा रहे हैं। बच्ची को लगातार होटल या बाहर के खाने पर निर्भर रहना पड़ता है, जो इस उम्र में उसके स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह है।
जज का तर्क: पौष्टिक भोजन और पारिवारिक माहौल जरूरी
फैसला लिखते हुए जस्टिस संदीप मेहता ने कहा कि होटल का खाना एक वयस्क के लिए भी रोजाना उपयुक्त नहीं होता, फिर एक आठ साल की बच्ची के लिए तो यह और भी नुकसानदायक है। बच्ची को शारीरिक और मानसिक विकास के लिए नियमित, पौष्टिक घर का भोजन मिलना चाहिए, जो कि पिता की ओर से संभव नहीं हो पा रहा है।
छोटे भाई से दूरी भी चिंता का विषय
कोर्ट ने यह भी नोट किया कि बच्ची को 15 दिनों के लिए अपने छोटे भाई से अलग रहना पड़ता है, जिससे उसका भावनात्मक संतुलन बिगड़ सकता है। तीन साल की उम्र में मां से अलग किया जाना छोटे बच्चे के लिए उचित नहीं माना जा सकता, इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को अनुचित ठहराया।
मां को प्राथमिक संरक्षक माना गया
कोर्ट ने यह माना कि मां वर्क फ्रॉम होम करती हैं और उनके माता-पिता भी साथ रहते हैं, जिससे बच्चों को एक सुरक्षित, भावनात्मक और स्थिर पारिवारिक माहौल मिलता है।
पिता को सीमित अधिकार
सुप्रीम कोर्ट ने पिता को हर महीने के दूसरे और चौथे शनिवार या रविवार को बच्ची से मिलने और कस्टडी लेने की सशर्त अनुमति दी। साथ ही, सप्ताह में दो बार वीडियो कॉल के जरिए बच्चों से संवाद की भी अनुमति दी गई। यह मुलाकातें किसी योग्य बाल काउंसलर की निगरानी में होंगी और बच्ची की सहमति पर निर्भर रहेंगी।
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