🕒 Published 2 weeks ago (1:50 PM)
False Dowry Case Relief : Supreme Court ने दहेज प्रताड़ना के मामलों में (IPC की धारा 498A) के बढ़ते दुरुपयोग को देखते हुए एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है । Supreme Court के मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ए.जी. मसीह की पीठ ने कहा कि 13 जून 2022 को क्रिमिनल रिवीजन नंबर 1126 ऑफ 2022 में इलाहाबाद हाईकोर्ट जो फैसला दिया था । उस फैसले के पैरा 32 से 38 तक जो दिशा-निर्देश जारी किए थे वे प्रभावी रूप पूरे देश में लागू होंगे और सभी संबंधित प्राधिकरणों को इसका पालन सुनिश्चित करना होगा । सर्वोच्च अदालत के इस फैसले से अब बिना जाँच और प्रक्रिया के पति और उसके परिवार की तुरंत गिरफ्तारी नहीं हो सकेगी।
क्यों लिया गया यह फैसला ? False Dowry Case Relief
यह फैसला एक ऐसे मामले में आया, जिसमें पत्नी और उसके परिवार ने झूठे आरोप लगाकर पति और उसके पिता को जेल भिजवा दिया था। Supreme Court ने माना कि ऐसी घटनाएं बढ़ रही हैं, जहां पूरे परिवार को एक साथ फंसाने की प्रवृत्ति दिखाई देती है।
हाईकोर्ट द्वारा जारी दिशा निर्देश अब पूरे देश में होंगे लागू
- 2 महीने की “कूलिंग पीरियड” अनिवार्य
- FIR दर्ज होने के बाद दो महीने तक पुलिस गिरफ्तारी नहीं कर सकेगी। इस दौरान मामले को जिले की परिवार कल्याण समिति को सौंपा जाएगा।
- केवल चुनिंदा मामलों में ही समिति की भूमिका
- 498A और उससे जुड़ी अन्य धाराओं वाले वे ही मामले समिति को भेजे जाएंगे जिनमें अधिकतम सजा 10 साल से कम हो।
परिवार कल्याण समिति की रचना,False Dowry Case Relief
- हर जिले में कम से कम एक समिति बनेगी
- समिति के तीन सदस्य होंगे
- युवा वकील या विधि छात्र
- अनुभवी सामाजिक कार्यकर्ता
- सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी या न्यायिक-अधिकारी की शिक्षित पत्नी
समिति का कार्य और अधिकार
FIR दर्ज होने के बाद समिति दो महीने के अंदर पति-पत्नी और उनके चार-चार परिवारजनों से संवाद करेगी और विवाद को सुलझाने का प्रयास किया जाएगा । समिति एक रिपोर्ट तैयार करेगी और फिर उसे मजिस्ट्रेट और पुलिस को भेजेगी। इसी रिपोर्ट को आधार मानकर आगे की कानूनी कार्रवाई की जाएगी । इन मामलों परिवार कल्याण समिति के सदस्य अदालत में गवाही देने के लिए बाध्य नहीं होंगे।
विशेष प्रशिक्षण जरूरी
498A मामलों की जांच वही पुलिस अधिकारी करेंगे जिन्हें इस कार्य के लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया हो। अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाता है तो जिला न्यायाधीश या अन्य वरिष्ठ न्यायिक अधिकारी मामला खत्म कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट का संदेश
false dowry case relief इस फैसले से Supreme Courtने यह स्पष्ट कर दिया है कि दहेज कानून का दुरुपयोग किसी भी कीमत पर स्वीकार्य नहीं है। दहेज के नाम पर निर्दोष लोगों को झूठे मामलों में फंसाना पूरी व्यवस्था को कमजोर करता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद अब पूरे देश में दहेज प्रताड़ना के केसों में तुरंत गिरफ्तारी नहीं होगी । दहेज मामले में मध्यस्थता और न्यायिक समीक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी । इस फैसले के बाद न केवल झूठे मुकदमों पर रोक साथ ही वास्तविक पीड़ितों को भी न्याय मिल सकेगा।
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