डोनाल्ड ट्रंप की धमकी से बढ़ी डी-डॉलराइजेशन की बहस, क्यों घबरा रहे हैं ब्रिक्स देश?

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By Hindustan Uday

🕒 Published 2 weeks ago (10:26 AM)

नई दिल्ली। अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर दुनिया को चेतावनी दी है कि यदि किसी देश ने अमेरिकी डॉलर के खिलाफ साजिश रची, तो उसे भारी कीमत चुकानी होगी। खासकर ब्रिक्स देशों को निशाने पर लेते हुए ट्रंप ने स्पष्ट कहा है कि अगर इन देशों ने डॉलर पर निर्भरता घटाने की कोशिश जारी रखी, तो उनके निर्यात पर 10% अतिरिक्त शुल्क लगाया जाएगा।

क्यों चिंता में हैं ब्रिक्स देश?

ब्रिक्स गठबंधन, जिसमें ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका शामिल हैं, अब कई और देशों को भी शामिल कर चुका है — जैसे मिस्र, इथियोपिया, ईरान, सऊदी अरब और यूएई। इस समूह ने बीते समय में डॉलर के विकल्प तलाशने और व्यापार में स्थानीय करेंसी के उपयोग पर चर्चा की है। यही चर्चा अमेरिका को खटक रही है।

ट्रंप ने चेतावनी दी है कि अगर 1 अगस्त तक कोई व्यापार समझौता नहीं होता, तो वे ब्रिक्स देशों को नई टैरिफ व्यवस्था की सूचना देने वाले आधिकारिक पत्र भेजना शुरू कर देंगे।

भारत ने बनाई दूरी

भारत ने तुरंत प्रतिक्रिया देते हुए खुद को “डी-डॉलराइजेशन एजेंडे” से अलग बताया। विदेश मंत्रालय ने 17 जुलाई को कहा कि ब्रिक्स केवल सीमा पार भुगतान के लिए स्थानीय करेंसी के उपयोग की संभावनाएं तलाश रहा है, लेकिन डॉलर को हटाने की कोई कोशिश नहीं कर रहा है। इससे साफ है कि ब्रिक्स के भीतर भी इस मुद्दे पर एकराय नहीं है।

क्यों बढ़ रही ट्रंप की आक्रामकता?

ट्रंप पहले भी कई बार ब्रिक्स देशों को चेतावनी दे चुके हैं। 2024 में उन्होंने धमकी दी थी कि अगर ब्रिक्स कोई संयुक्त करेंसी लाने की योजना पर काम करता है, तो उस पर 100% टैरिफ लगाया जाएगा। उनका मानना है कि डॉलर को चुनौती देना सीधे अमेरिका की अर्थव्यवस्था और प्रभुत्व पर हमला है।

क्या है डी-डॉलराइजेशन?

डी-डॉलराइजेशन का अर्थ है – वैश्विक व्यापार और रिजर्व में अमेरिकी डॉलर की निर्भरता को कम करना। यह विचार नया नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में रूस-यूक्रेन युद्ध, ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंध और अंतरराष्ट्रीय भुगतानों में डॉलर पर निर्भरता के कारण छोटे और मध्यम देशों ने इसके विकल्प ढूंढने शुरू किए हैं।

विकल्पों की खोज शुरू

भारत और मलेशिया कुछ लेन-देन भारतीय रुपये में कर चुके हैं
सऊदी अरब ने अन्य मुद्राओं में व्यापार पर चर्चा की है
चीन और फ्रांस ने युआन में नेचुरल गैस ट्रेड का ट्रायल किया

डॉलर की मजबूती कैसे बनी?

अमेरिका ने पहले विश्व युद्ध के बाद वैश्विक शक्ति के रूप में खुद को स्थापित किया और ब्रेटन वुड्स समझौते (1944) के बाद डॉलर को दुनिया की प्रमुख रिजर्व करेंसी बना दिया गया। इसके बाद से डॉलर की पकड़ लगातार मजबूत होती गई।

क्या ट्रंप की धमकियों से बदलेगा कुछ?

ट्रंप की यह रणनीति अमेरिका की पारंपरिक मुद्रा नीति से अलग है, जिसमें आमतौर पर सहयोग और कूटनीति को तरजीह दी जाती है। हालांकि, उनकी चेतावनियों से ब्रिक्स देशों के अंदर सावधानी जरूर बढ़ी है, लेकिन एकजुटता में कमी और आंतरिक मतभेद के चलते फिलहाल डी-डॉलराइजेशन एक धीमी और लंबी प्रक्रिया बनी हुई है।

डॉलर की वैश्विक सत्ता को चुनौती देना आसान नहीं है, लेकिन ट्रंप की चेतावनियों से यह स्पष्ट है कि अमेरिका इसे हल्के में नहीं लेने वाला। ब्रिक्स देशों के लिए यह बड़ा फैसला होगा कि वे अपनी करेंसी स्वतंत्रता के लिए कितनी कीमत चुकाने को तैयार हैं।

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