ममता बनर्जी और हिमंत सरमा के बीच बंगाली भाषी प्रवासियों और सीमा सुरक्षा को लेकर विवाद

By Hindustan Uday

🕒 Published 2 weeks ago (10:30 PM)

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा के बीच एक बार फिर जुबानी जंग तेज हो गई है। मामला बंगाली भाषी प्रवासियों को लेकर चल रही बहस और असम में बढ़ती सीमा पार घुसपैठ को लेकर है।

हाल ही में ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में केंद्र सरकार और भाजपा शासित राज्यों पर आरोप लगाया कि वे बंगाली भाषी प्रवासियों को ‘अवैध बांग्लादेशी’ या ‘रोहिंग्या’ करार देकर निशाना बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि यह रवैया न केवल भेदभावपूर्ण है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन भी है।

हिमंत सरमा की प्रतिक्रिया

ममता बनर्जी की पोस्ट का जवाब देते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने स्पष्ट किया कि असम में समस्या भाषाई या धार्मिक नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ी है। उन्होंने कहा कि असम को सीमा पार से हो रही मुस्लिम आबादी की घुसपैठ से खतरा है, जिसके चलते कई जिलों में हिंदू समुदाय अब अल्पसंख्यक बनने की कगार पर पहुंच गया है।

सरमा ने कहा कि यह कोई राजनीतिक बयान नहीं, बल्कि एक कड़वा सच है जिसे सर्वोच्च न्यायालय भी स्वीकार कर चुका है। उन्होंने ममता बनर्जी पर आरोप लगाया कि वे इस गंभीर मुद्दे का राजनीतिकरण कर रही हैं।

असम की सांस्कृतिक रक्षा की बात

हिमंत सरमा ने कहा कि असम सभी भाषाओं और समुदायों का सम्मान करता है, जिसमें असमिया, बांग्ला, बोडो और हिंदी शामिल हैं। लेकिन कोई भी संस्कृति अपनी सीमाओं और परंपराओं की रक्षा किए बिना जीवित नहीं रह सकती।

उन्होंने ममता बनर्जी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि बंगाल की सरकार ने कथित तौर पर एक खास समुदाय को तुष्ट करने की नीति अपनाई है, जो राष्ट्रीय अखंडता के लिए खतरा बन सकती है। उन्होंने कहा कि असम अपनी संस्कृति, अस्मिता और संविधान की मर्यादा की रक्षा के लिए लड़ता रहेगा।

ममता बनर्जी का आरोप

ममता बनर्जी ने अपने पोस्ट में कहा कि बांग्ला भाषा देश की दूसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है और असम में भी इसका व्यापक प्रचलन है। उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा सरकारें विभाजनकारी एजेंडा चला रही हैं और बंगाली भाषी लोगों को निशाना बनाकर उनके अधिकारों को कुचलने की कोशिश कर रही हैं।

उनका कहना है कि शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के सिद्धांत का उल्लंघन हो रहा है और मातृभाषा के संरक्षण की बात करने वालों को धमकाया जा रहा है।

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