धराली की तबाही और सवाल: उत्तरकाशी के धराली में बादलों के फटने से मचा कहर अब भी लोगों के जेहन में ताजा है। बर्बादी का मंजर इतना भयावह है कि हर कोई यही पूछ रहा है—इस विनाश का सबसे बड़ा जिम्मेदार कौन है? स्थानीय लोग मानते हैं कि यह कहानी केवल प्राकृतिक आपदा की नहीं, बल्कि सदियों पुराने लालच की भी है।
फ्रेडरिक विल्सन: धराली का खलनायक
करीब दो सौ साल पहले, ब्रिटिश आर्मी का भगोड़ा फ्रेडरिक विल्सन उत्तराखंड के हर्षिल और धराली इलाके में पहुंचा। यहां के घने देवदार के जंगलों ने उसके मन में कमाई का लालच भर दिया। उसे टिहरी के राजा सुदर्शन शाह से लकड़ी काटने का ठेका मिला, जिसके बाद उसने बड़े पैमाने पर कटाई शुरू कर दी।
देवदार की कटाई और पर्यावरण का विनाश
विल्सन ने रेलवे ट्रैक के स्लीपर बनाने के लिए हर्षिल, धराली, मुखबा और गंगोत्री के इलाकों में 600 एकड़ में फैले जंगल से करीब 2 लाख देवदार के पेड़ काट दिए। यह पेड़ न केवल पर्यावरण का संतुलन बनाए रखते थे बल्कि यहां के भूगर्भीय ढांचे को भी मजबूत करते थे।
स्थानीय लोगों की चेतावनी को नजरअंदाज
कहा जाता है कि इलाके के एक मंदिर के पुजारी ने विल्सन से देवदार की कटाई रोकने की गुहार लगाई थी, लेकिन उसने साफ कह दिया कि यह काम कानूनी है और उसे राजा की मंजूरी प्राप्त है। उसने ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम का भी हवाला देकर लोगों को चुप करा दिया।
विल्सन का लालच और पतन
लकड़ी के कारोबार से उसने अकूत दौलत कमाई, लेकिन उसका लालच यहीं नहीं थमा। उसने शिकार और जानवरों के अवैध व्यापार में भी कदम रखा। जीवन के अंतिम वर्षों में वह मसूरी चला गया, जहां एक देवदार के पेड़ के नीचे ही उसकी कब्र बनी।
आज का धराली और अतीत की गूंज
धराली में आई हालिया तबाही ने एक बार फिर फ्रेडरिक विल्सन के लालच और उसके पर्यावरण-विनाशकारी फैसलों को चर्चा में ला दिया है। स्थानीय लोग मानते हैं कि अगर देवदार के पेड़ों की अंधाधुंध कटाई न हुई होती, तो शायद धराली इस कदर बर्बाद न होता।


