Home » Blogs » दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के बाद भी नहीं बरसी बारिश, जानें पूरी प्रक्रिया और कारण

दिल्ली में क्लाउड सीडिंग के बाद भी नहीं बरसी बारिश, जानें पूरी प्रक्रिया और कारण

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को कम करने के लिए सरकार ने क्लाउड सीडिंग यानी कृत्रिम बारिश कराने की योजना बनाई थी। इसके लिए आईआईटी कानपुर ने कई महीनों की तैयारी के बाद एक प्रोजेक्ट तैयार किया। नवंबर में दिल्ली सरकार ने घोषणा की थी कि राजधानी में प्रदूषण घटाने के लिए कृत्रिम वर्षा कराई जाएगी। बीते दो दिनों से इसका ट्रायल भी हुआ, लेकिन लोगों की उम्मीदों के बावजूद बारिश नहीं हो सकी।

आईआईटी कानपुर का ट्रायल असफल रहा

मंगलवार को आईआईटी कानपुर की टीम ने ट्रायल के दौरान बादलों में 14 फ्लेयर्स दागकर क्लाउड सीडिंग की कोशिश की। इस प्रक्रिया के बाद लोगों को लगा कि जल्द ही बारिश होगी, लेकिन कोई प्रभाव नहीं दिखा। टीम ने बताया कि अभी यह केवल प्रारंभिक परीक्षण है और आने वाले दिनों में ट्रायल जारी रहेगा। हालांकि विपक्ष ने इसे लेकर सरकार पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं।

क्यों नहीं हुई बारिश

आईआईटी कानपुर के निदेशक प्रोफेसर मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि मंगलवार को बारिश नहीं होने की मुख्य वजह बादलों में नमी की अत्यंत कम मात्रा थी। उन्होंने कहा कि क्लाउड सीडिंग कोई जादुई प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह केवल तब कारगर होती है जब मौसम के अनुकूल हालात हों। यदि नमी कम है या बादल पर्याप्त गहराई वाले नहीं हैं तो बारिश कराना असंभव हो जाता है।

क्लाउड सीडिंग के लिए जरूरी शर्तें

क्लाउड सीडिंग तभी संभव है जब कुछ मौसम संबंधी शर्तें पूरी हों।

  • सभी बादल उपयुक्त नहीं होते; केवल वे बादल जिनका तापमान -10°C से -12°C के बीच हो, वे ही कारगर होते हैं।
  • बादल पर्याप्त गहराई वाले और घने होने चाहिए।
  • जिस क्षेत्र में क्लाउड सीडिंग की जानी है, वहां का कम से कम 50 प्रतिशत हिस्सा बादलों से ढका होना चाहिए।
  • हवा की गति बहुत तेज नहीं होनी चाहिए, वरना रसायन बिखर जाते हैं।
  • सापेक्ष आर्द्रता 75 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए।
  • बादलों में सुपरकूल्ड लिक्विड वॉटर यानी अति-शीतल जलकण मौजूद होने जरूरी हैं।

यदि इनमें से कोई भी शर्त पूरी नहीं होती, तो क्लाउड सीडिंग से बारिश की संभावना लगभग समाप्त हो जाती है।

पूरी प्रक्रिया कैसे होती है

क्लाउड सीडिंग एक मौसम संशोधन तकनीक (Weather Modification Technique) है। इसमें विमान या जमीन आधारित मशीनों के जरिए बादलों में कुछ विशेष रसायन या लवण छोड़े जाते हैं ताकि बादलों में जलकणों के बनने की प्रक्रिया तेज हो सके।

सबसे पहले मौसम विशेषज्ञ उपयुक्त बादलों की पहचान करते हैं। फिर विमान से सिल्वर आयोडाइड, पोटेशियम आयोडाइड, सोडियम क्लोराइड या ड्राई आइस (ठोस कार्बन डाइऑक्साइड) जैसे पदार्थ छोड़े जाते हैं। ये कण बादलों में सूक्ष्म जलकणों के इर्द-गिर्द “न्यूक्लियस” का काम करते हैं। जब कई छोटे जलकण आपस में मिलकर बड़े हो जाते हैं, तो उनका वजन बढ़ता है और वे बारिश के रूप में धरती पर गिरते हैं।

दिल्ली में आगे क्या योजना है

आईआईटी कानपुर की टीम ने अब तक तीन बार क्लाउड सीडिंग का ट्रायल किया है। आने वाले समय में 9 से 10 बार और परीक्षण किए जाएंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि हर बार परिणाम समान नहीं हो सकते क्योंकि मौसम का स्वभाव तेजी से बदलता है। सरकार का मानना है कि यदि तकनीक सफल होती है तो इसका उपयोग दिल्ली सहित अन्य प्रदूषण प्रभावित शहरों में भी किया जा सकेगा।

क्या क्लाउड सीडिंग है स्थायी समाधान?

विशेषज्ञों का कहना है कि क्लाउड सीडिंग केवल एक इमरजेंसी उपाय है, न कि प्रदूषण से निपटने का स्थायी हल। यह तभी उपयोगी हो सकता है जब मौसम अनुकूल हो और प्रदूषण असहनीय स्तर पर पहुंच जाए। वास्तविक समाधान प्रदूषण के स्रोतों को नियंत्रित करने और सतत पर्यावरणीय नीतियों को अपनाने में ही है।

अगर खबर पसंद आई हो तो इसे शेयर ज़रूर करें!
0Shares
Scroll to Top