🕒 Published 1 month ago (9:23 PM)
भारत के इतिहास का वह अध्याय, जिसे ‘लोकतंत्र पर सबसे बड़ा हमला’ कहा गया—आज उसके 49 साल पूरे हो गए हैं। 25 जून 1975 की रात से लेकर 21 मार्च 1977 तक लागू रहा यह आपातकाल भारतीय राजनीति और लोकतंत्र के इतिहास में काला अध्याय बन गया। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में लगाए गए इस आपातकाल की आज 49वीं बरसी पर भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस पर तीखा हमला बोला है।
भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि यह दिन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में काला दिन था। उन्होंने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि जिसने खुद लोकतंत्र की हत्या की, वह आज संविधान की रक्षा की बात कर रही है। भाजपा नेताओं ने दावा किया कि आपातकाल के दौरान विपक्ष की आवाज को बेरहमी से कुचला गया, लोगों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए, और प्रेस पर अभूतपूर्व सेंसरशिप लागू की गई।
क्यों लगा था आपातकाल?
आपातकाल की सबसे बड़ी वजह मानी जाती है इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह ऐतिहासिक फैसला, जिसमें इंदिरा गांधी को 1971 के चुनाव में कदाचार का दोषी ठहराया गया था। यह याचिका उनके प्रतिद्वंद्वी राजनारायण ने दायर की थी, जिन्होंने आरोप लगाया था कि इंदिरा गांधी ने चुनाव जीतने के लिए सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग किया। कोर्ट के फैसले में इंदिरा की लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई, जिसके बाद उनके राजनीतिक भविष्य पर संकट मंडराने लगा।
इसी संकट के बीच, 25 जून 1975 की रात राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल लागू कर दिया। इसके बाद शुरू हुआ एक ऐसा दौर, जिसमें जनता का अधिकार छिन गया और शासन पूरी तरह से केंद्र सरकार के हाथों में केंद्रित हो गया।
आपातकाल में क्या हुआ?
आपातकाल के दौरान देशभर में आम चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। नागरिकों के मौलिक अधिकार जैसे बोलने की आज़ादी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन का अधिकार तक निलंबित कर दिए गए। विपक्ष के दिग्गज नेताओं—जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी सहित हजारों लोगों को बिना मुकदमा चलाए जेल में डाल दिया गया।
प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई। अखबारों में सरकार की नीतियों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं छप सकता था। बिना सेंसर अधिकारी की मंजूरी के कोई खबर प्रकाशित नहीं हो सकती थी।
अंदरूनी खुलासे
इंदिरा गांधी के निजी सचिव रहे आरके धवन ने वर्षों बाद एक साक्षात्कार में बताया कि आपातकाल की योजना जनवरी 1975 में ही बनने लगी थी। पश्चिम बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री एसएस राय ने इसकी सलाह दी थी और राष्ट्रपति अहमद ने इसे तुरंत मंजूरी दे दी थी। उन्होंने बताया कि संजय गांधी द्वारा चलाए गए जबरन नसबंदी अभियान और दिल्ली के तुर्कमान गेट पर बुलडोजर की कार्रवाई से इंदिरा गांधी अनजान थीं।
धवन ने यह भी कहा कि इंदिरा इस्तीफा देने को तैयार थीं, लेकिन मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने उन्हें ऐसा न करने की सलाह दी। बाद में जब 1977 में चुनाव हुए, तो इंदिरा को करारी हार मिली। लेकिन उन्होंने हार को सहजता से स्वीकार किया और कहा, “शुक्र है, अब मेरे पास अपने लिए समय है।”
भाजपा का हमला
भाजपा ने आज के दिन को याद करते हुए कांग्रेस पर लोकतंत्र के साथ खिलवाड़ करने का आरोप लगाया। भाजपा नेताओं ने कहा कि जो पार्टी लोकतंत्र को कुचल चुकी है, वह अब संविधान की रक्षा की बातें कर रही है। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा पर पलटवार करते हुए मौजूदा सरकार पर भी संवैधानिक संस्थाओं को कमजोर करने के आरोप लगाए हैं।
49 साल बाद भी आपातकाल भारतीय राजनीति में एक अहम बहस बना हुआ है—एक ऐसा दौर जो लोकतंत्र, संविधान और जनता के अधिकारों के लिए एक कड़वा सबक बनकर रह गया है।