नई दिल्ली: कच्चे तेल का खेल भारत के लिए हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है। इसे ‘तरल सोना’ कहा जाता है और वैश्विक बाजार में कीमतों और राजनीतिक दबावों के कारण भारत को कठिन निर्णय लेने पड़ते हैं। हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत पर रूस से तेल खरीदने को लेकर 50% टैरिफ लगाया, जबकि भारत ने विरोध जताया और कुछ हद तक रूस से खरीद घटाने का संकेत दिया।
भारत की बढ़ती तेल खपत और घरेलू उत्पादन
रूबिक्स इंडस्ट्रीज की रिसर्च के अनुसार भारत की ईंधन खपत लगातार बढ़ रही है। साल 2024 में यह 56.4 लाख बैरल प्रतिदिन थी, जो 2030 तक बढ़कर 66.6 लाख बैरल प्रतिदिन हो जाएगी। वहीं, घरेलू उत्पादन घटकर 2023 में 7 लाख बैरल प्रतिदिन से 2030 तक 5.4 लाख बैरल प्रतिदिन रह जाएगा। इसका मतलब है कि भारत को अपनी जरूरत का अधिकांश तेल आयात पर निर्भर रहकर पूरा करना होगा।
आयात का स्वरूप और रूस पर निर्भरता
पिछले पांच साल में भारत ने रूस से तेल का आयात बढ़ाया है। रूस, इराक, सऊदी अरब, यूएई, अमेरिका और कुवैत से भारत अपने कुल तेल आयात का 86% ले रहा है। खासकर रूस से आयात 2% से बढ़कर 35% हो गया है, क्योंकि रूस सस्ता डिस्काउंट देता है। इसके उलट, इराक और सऊदी अरब से आयात घटकर क्रमशः 18% और 14% रह गया।
रूस से सस्ते क्रूड का फायदा और निर्यात
रूस से सस्ता क्रूड खरीदने से भारत का तेल निर्यात भी बढ़ा है। पिछले वित्तवर्ष में तेल निर्यात 3.4% बढ़कर 6.51 करोड़ टन हो गया, जबकि वैश्विक कीमतों में गिरावट के कारण इसकी वैल्यू 7% कम रही। भारत ने यूरोप, खासकर नीदरलैंड में अपना निर्यात दोगुना कर 21% कर दिया। रूस से नेफ्था आयात भी बढ़ाकर 50% कर लिया गया, जिसमें प्रति टन 15 डॉलर का डिस्काउंट मिलता है।
चुनौतियां और भविष्य
अगर रूस से आयात घटाया जाता है, तो भारत को अन्य सप्लायर्स पर अधिक निर्भर रहना पड़ेगा। बढ़ती खपत और घटते घरेलू उत्पादन के बीच यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी चुनौती होगी।


