हिंदू धर्म में शंख बजाना सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान भर नहीं है, बल्कि इसके पीछे छिपा है गहरा आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्य। शंख की ध्वनि को भारतीय योगशास्त्र में ‘नादयोग’ से जोड़ा गया है। नादयोग वह विधा है, जिसमें ध्वनि के माध्यम से ध्यान, वातावरण की शुद्धि और मानसिक शांति प्राप्त की जाती है। जब शंख बजाया जाता है, तो उससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि तरंगें आसपास की नकारात्मक ऊर्जा को दूर कर वातावरण में सकारात्मकता का संचार करती हैं।
शंख की ध्वनि केवल आध्यात्मिक ही नहीं, वैज्ञानिक रूप से भी बेहद प्रभावशाली मानी गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, शंख से निकलने वाली ध्वनि अल्ट्रासोनिक फ्रीक्वेंसी उत्पन्न करती है, जो वातावरण में मौजूद सूक्ष्म रोगाणुओं और हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करने की क्षमता रखती है। यह ध्वनि घर के वातावरण को न केवल शुद्ध करती है, बल्कि उसमें मौजूद अदृश्य हानिकारक तत्वों को भी समाप्त करती है।
वास्तुशास्त्र के अनुसार भी शंख बजाना घर में सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि लाने वाला माना गया है। विशेष रूप से सुबह और शाम के समय शंख बजाने से घर का वातावरण शुद्ध होता है, मानसिक तनाव कम होता है और मन में स्थिरता आती है। यह ध्वनि हमारे मस्तिष्क की तरंगों को संतुलित करती है और एकाग्रता को बढ़ावा देती है। यही कारण है कि पूजा-पाठ के समय शंख बजाना एक परंपरा बन चुका है।
पौराणिक कथाओं में शंख को अत्यंत शुभ और शक्ति का प्रतीक माना गया है। भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी के हाथों में हमेशा शंख दिखाई देता है, जो इस बात का प्रतीक है कि शंख धन, वैभव और पवित्रता का प्रतिनिधित्व करता है। यही वजह है कि किसी भी धार्मिक अनुष्ठान या पूजा में शंख की ध्वनि से शुरुआत की जाती है। यह न केवल ईश्वरीय ऊर्जा को आमंत्रित करता है, बल्कि आसपास के वातावरण को भी सात्त्विक और शुद्ध बनाता है।
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