आज देशभर में श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही निर्जला एकादशी

Photo of author

By Sunita Singh

🕒 Published 1 week ago (1:27 PM)

नई दिल्ली , डेस्क : आज देशभर में निर्जला एकादशी, जिसे भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है, श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाई जा रही है।  जगह-जगह छबील लगाकर लोगों को मीठा शरबत पिलाया जा रहा है। कहा जाता है कि इस दिन पानी की छबील लगाने से अनंत पुण्य का लाभ प्राप्त होता है। लोगों को रोक-रोककर मीठे पानी का शरबत पिलाया जा रहा है।कहा जाता है कि इस दिन पानी की छबील लगाने से अनंत पुण्य का लाभ प्राप्त होता है। निर्जला एकादशी व्रत में भक्त 24 घंटे के लिए अन्न और जल का पूर्णतः त्याग करते हैं।

निर्जला एकादशी 24 घंटे की

मान्यता है कि इस एक व्रत को करने से साल भर की सभी 24 एकादशियों का पुण्यफल प्राप्त होता है। इस बार यह व्रत दो दिन का होने की वजह से इसका महत्व और अधिक हो गया है। इस बार 6 जून को रात 2 बजकर 15 मिनट से शुरू हो गई है और एकादशी तिथि का समापन 7 जून को सुबह बह्म मुहुर्त में 4 बजकर 47 मिनट तक रहेगा। 6 और 7 जून दोनों ही दिन उदयातिथि होने के कारण निर्जला एकादशी 24 घंटे की होगी। लेकिन, व्रत के पारण का समय 7 जून को दोपहर में होने के कारण एकादशी का व्रत 32 घंटे से अधिक की लंबी अवधि का रहेगा ।

व्रत में क्या करें:

  • अन्न और जल का पूर्ण त्याग करें और भगवान विष्णु की भक्ति करें।
  • सुराही या घड़े का दान करें।
  • राहगीरों के लिए प्याऊ लगवाएं या शरबत वितरित करें।
    श्रीहरि के नाम का जप, आरती और भजन करें।
  • माता लक्ष्मी को कमल का पुष्प और केसर मिश्रित खीर अर्पित करें।
  • दिनभर विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • गरीब कन्याओं को वस्त्र व भोजन दान करें।
  • जरूरतमंदों को अनाज और कपड़े दान करें।

व्रत में क्या न करें:

  • तामसिक भोजन (प्याज, लहसुन, मांस) का सेवन न करें।
  • क्रोध, झूठ, द्वेष और अपशब्दों से बचें।
  • भारी शारीरिक श्रम से बचें ताकि उपवास में कठिनाई न हो।

हिंदू पंचांग के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत  ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में मनाया जाता है। शास्त्रों और पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। इस व्रत को विष्णु प्रिया भी कहा जाता है। निर्जला एकादशी व्रत सबसे कठिन व्रतों में माना जाता है लेकिन इसका फल मोक्ष तक की राह खोल देता है। इस व्रत के दिन पूरे दिन जल का सेवन नहीं किया जाता। इसीलिए इसे ‘निर्जला’ (बिना जल) एकादशी कहा जाता है। निर्जला एकादशी उपवास से जीवन में सुख,शांति और समृद्धि का आगमन होता है।

क्या है निर्जला एकादशी का महत्व?

बता दें कि हिंदू पंचाग के अनुसार साल में 24 एकादशी आती और सभी एकादशियों का अपना एक महत्व है लेकिन निर्जला एकादशी को सबसे अधिक महता है। मान्यता है कि अकेले निर्जला एकादशी का व्रत सभी एकादशियों का पुण्य देता है।
निर्जला एकादशी को ‘भीमसेनी एकादशी’ के साथ ही ‘पांडव एकादशी’ भी कहा जाता है। जिसके पीछे एक पौराणिक कथा भी है।

यह भी पढ़ें: ganga-dashhara 2025: गंगा घाटों पर उमड़ा श्रद्धा का सैलाब, घाटों पर गूंजे मां गंगा के जयकारे

व्रत को करने का संकल्प

कथा के अनुसार, महाभारत के वीर योद्धा भीमसेन ने इस व्रत को करने का संकल्प लिया था। कहानी के अनुसार, एक समय भीमसेन ने महर्षि वेदव्यास से कहा कि उनके सभी भाई—युधिष्ठिर, अर्जुन, नकुल और सहदेव—हर माह की दोनों एकादशियों का व्रत करते हैं। लेकिन मेरे लिए हर महीने दो बार व्रत रखना अत्यंत कठिन कार्य है। मैं भोजन और जल के बिना रह नहीं पाता। तब भीमसेन ने वेदव्यास जी से यह पूछा कि क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मैं भी पुण्य प्राप्त कर सकूं और व्रत करने का लाभ पा सकूं। इस पर वेदव्यास जी ने निर्जला एकादशी व्रत करने का सुझाव दिया। उन्होंने बताया कि यह एक ऐसा व्रत है जिसे यदि श्रद्धापूर्वक किया जाए तो वर्ष की 24 एकादशियों का पुण्य फल एक साथ मिल जाता है।

निष्कर्ष

निर्जला एकादशी का व्रत भक्ति, संयम और सेवा का अद्भुत उदाहरण है। जो भी श्रद्धापूर्वक इस कठिन व्रत को करता है, उसे वर्ष भर की सभी एकादशियों का पुण्यफल और भगवान विष्णु श्री हरि और मां लक्ष्मी की व्रतियों पर विशेष कृपा होती है।

Leave a Comment