लाल किले पर दावा: CJI ने सुल्ताना बेगम की याचिका खारिज की, कहा – फिर तो ताजमहल और फतेहपुर सीकरी भी मांग लीजिए

By Hindustan Uday

🕒 Published 3 months ago (9:41 AM)

नई दिल्ली। Claim on Red Fort: मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर (द्वितीय) की कथित वंशज सुल्ताना बेगम की उस याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने दिल्ली स्थित ऐतिहासिक लाल किले पर कब्जे की मांग की थी। मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना की बेंच ने इस याचिका को हास्यास्पद करार देते हुए सुनवाई से इनकार कर दिया और टिप्पणी की, “सिर्फ लाल किला ही क्यों, फतेहपुर सीकरी और ताजमहल भी मांग लीजिए।”

कौन हैं सुल्ताना बेगम?

सुल्ताना बेगम खुद को बहादुर शाह जफर के परपोते मिर्जा बेदर बख्त की विधवा बताती हैं। कोलकाता के पास हावड़ा में रहने वाली सुल्ताना बेगम ने पहले दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर लाल किले पर अपना कानूनी हक जताया था। हाईकोर्ट ने याचिका खारिज कर दी थी, जिसके खिलाफ उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

CJI की टिप्पणी बनी चर्चा का विषय

सुनवाई के दौरान CJI संजीव खन्ना पहले मुस्कराए और फिर सुल्ताना बेगम की याचिका को खारिज कर दिया। उन्होंने मजाकिया अंदाज में कहा, “केवल लाल किला क्यों, आप ताजमहल और फतेहपुर सीकरी पर भी दावा ठोकिए।” सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को न सिर्फ अव्यवहारिक बताया बल्कि यह भी कहा कि यह मामला सुनवाई योग्य नहीं है।

इतिहास की दुहाई और अदालत का सवाल

सुल्ताना बेगम का दावा था कि 1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके पूर्वज बहादुर शाह जफर को रंगून जेल भेजकर लाल किले पर जबरन कब्जा कर लिया था। उन्होंने कोर्ट से अपील की थी कि उन्हें लाल किले पर कब्जा देकर न्याय किया जाए। इस पर हाईकोर्ट ने भी सवाल उठाया था कि 150 साल बाद अब यह दावा क्यों किया जा रहा है?

वकील का तर्क: केवल 6000 रुपये की पेंशन में कैसे हो गुजारा?

सुल्ताना बेगम के वकील विवेक मोर ने कहा कि आजादी के बाद पंडित नेहरू ने मिर्जा बेदर बख्त की पेंशन तय की थी, जो बाद में सुल्ताना बेगम को मिलती रही। लेकिन सिर्फ ₹6000 महीना पेंशन में उनका गुजारा मुश्किल है। उन्होंने कहा कि बेगम की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है और सरकार को उनका ध्यान रखना चाहिए।

क्या था हाईकोर्ट का जवाब?

हाईकोर्ट की जस्टिस रेखा पल्ली ने भी मामले को अव्यावहारिक बताते हुए याचिका खारिज कर दी थी। उन्होंने कहा था, “इतिहास भले ही मेरा कमजोर हो, लेकिन 1857 की घटना के 150 साल बाद अदालत में दावा करना किसी भी तरह से न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता।”

सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट दोनों ने ही सुल्ताना बेगम की मांग को नकारते हुए यह स्पष्ट कर दिया है कि ऐतिहासिक स्मारकों पर वंशजों के दावों को कानूनी मान्यता नहीं दी जा सकती। मामला भले ही भावनात्मक हो, लेकिन न्यायिक दृष्टिकोण से इसका कोई आधार नहीं बनता।

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