नई दिल्ली । न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने बुधवार को भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यभार संभाल लिया। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह राष्ट्रपति भवन में हुआ, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद समेत कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद रहे।
जस्टिस गवई ने जस्टिस संजीव खन्ना का स्थान लिया, जो मंगलवार को सेवानिवृत्त हुए थे। पिछले महीने 30 तारीख को कानून मंत्रालय ने जस्टिस गवई की नियुक्ति को लेकर अधिसूचना जारी की थी। इससे पहले, 16 अप्रैल को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश जस्टिस खन्ना ने उनके नाम की सिफारिश केंद्र सरकार को भेजी थी।
वरिष्ठता के आधार पर हुई नियुक्ति
परंपरा के अनुसार, मौजूदा मुख्य न्यायाधीश अपने उत्तराधिकारी के रूप में सर्वोच्च न्यायालय में सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की अनुशंसा करते हैं। जस्टिस गवई वरिष्ठता सूची में सबसे ऊपर थे, जिस आधार पर उनकी सिफारिश की गई। कानून मंत्रालय ने उनसे उत्तराधिकारी के नाम को लेकर औपचारिक तौर पर प्रस्ताव मांगा था।
लंबा और विविधतापूर्ण कानूनी सफर
जस्टिस गवई ने 16 मार्च 1985 को वकालत की शुरुआत की थी। उन्होंने नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के लिए स्थायी वकील के रूप में कार्य किया। अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक वे बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर खंडपीठ में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक रहे। 17 जनवरी 2000 को उन्हें सरकारी वकील और लोक अभियोजक नियुक्त किया गया।
14 नवंबर 2003 को वे बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश बनाए गए और दो साल बाद 12 नवंबर 2005 को उन्हें स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किया गया। 24 मई 2019 को वे सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बने। सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान वे कई महत्वपूर्ण संविधान पीठों का हिस्सा रहे।
जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे पर ऐतिहासिक फैसला
जस्टिस गवई दिसंबर 2023 में उस पांच सदस्यीय संविधान पीठ का हिस्सा रहे, जिसने अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र सरकार के फैसले को सर्वसम्मति से सही ठहराया। इस फैसले का देश की राजनीति और कानून व्यवस्था पर गहरा असर पड़ा।
महत्वपूर्ण मामलों में फैसले
राजीव गांधी हत्याकांड (2022): दोषियों की रिहाई को मंजूरी दी गई क्योंकि राज्यपाल ने तमिलनाडु सरकार की सिफारिश पर कोई निर्णय नहीं लिया था।
वणियार आरक्षण मामला (2022): सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु सरकार के आरक्षण फैसले को भेदभावपूर्ण बताते हुए रद्द कर दिया।
नोटबंदी मामला (2023): चार जजों की बहुमत वाली पीठ ने 2016 की नोटबंदी को वैध करार दिया।
ईडी निदेशक कार्यकाल (2023): संजय कुमार मिश्रा के कार्यकाल विस्तार को अवैध बताते हुए उन्हें पद से हटाने का निर्देश दिया गया।
बुलडोजर कार्रवाई (2024): कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सिर्फ आरोप के आधार पर किसी की संपत्ति को गिराया जाना असंवैधानिक है, और ऐसा करने पर संबंधित अधिकारी को जिम्मेदार ठहराया जाएगा।
पारिवारिक पृष्ठभूमि और सामाजिक योगदान
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ। उनके पिता आरएस गवई एक प्रसिद्ध सामाजिक नेता रहे और वे बिहार तथा केरल के राज्यपाल के रूप में कार्य कर चुके हैं। जस्टिस गवई अनुसूचित जाति समुदाय से आने वाले दूसरे मुख्य न्यायाधीश हैं। उनसे पहले केजी बालाकृष्णन 2010 में इस पद पर रह चुके हैं।
जस्टिस गवई की नियुक्ति न केवल न्यायिक दृष्टि से, बल्कि सामाजिक दृष्टिकोण से भी एक अहम मील का पत्थर मानी जा रही है।
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